जब कंपनी के शेयर में निवेश करते हैं तो दोहरा रिस्क उठाते हैं। एक उस कंपनी के बिजनेस का रिस्क और दूसरा खुद शेयर बाज़ार का रिस्क। रिस्क कभी बताकर नहीं आते। आप कितनी भी रिसर्च कर लें, मुद्रास्फीति का हिसाब लगा लें, बिजनेस पर हो रहे नीतियों के प्रभाव का आकलन कर लें, उद्योग में होड़ की जांच-परख कर लें, कंपनी के अतीत को तार-तार समझकर भविष्य का आकलन कर लें। लेकिन अचानक कहीं से दुनिया में वित्तीय संकट छा लेता है, कोरोना टपक पड़ता है या ट्रम्प जैसा दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका का राष्ट्रपति टैरिफ की तबाही ले आता है। इतिहास साक्षी है कि ऐसा कुछ होने पर चक्रवृद्धि रिटर्न की सारी गणना हवा हो जाती है। सालों-साल का रिटर्न देखते ही देखते गायब हो जाता है। भावी आकस्मिकता के लिए बनाया गया घोसला तिनका-तिनका बिखर जाता है। तब लगता है कि अपना सारा धन बैंक की एफडी या पीपीएफ में रखना ही सही होता। लेकिन शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग ही नहीं, निवेश के लिए भी अनिश्चितता की लागत और उसको नाथने की समझ बनानी पड़ती है। अगर बीच में ही घबराकर निकल गए तो अनिश्चितता में कूदने का रिटर्न नहीं पा सकते। परेशानी ही रिटर्न की लागत है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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