सरकार तक का काम खुद कैसे नौकरशाही के मकड़जाल में फंस जाता है, इसका ताज़ा उदाहरण है इसी हफ्ते सोमवार, 1 सितंबर को लॉन्च हुई मुंबई से सिंधुदुर्ग तक की रो-रो फेरी। यह प्रोजेक्ट 2014-19 में फडणवीस के पिछले कार्यकाल में पेश किया गया था। लेकिन केंद्रीय जहाजरानी मंत्रालय और राज्य बंदरगाह विभाग से 147 मंजूरियां लेने में दस साल यूं ही निकल गए। सरकारी भ्रष्टाचार व वसूली से आम लोग ही नहीं, निजी उद्योग भी त्रस्त हैं। पीडब्ल्यूसी के ग्लोबल क्राइम सर्वे 2024 के मुताबिक तब से पीछे के दो सालों में 59% भारतीय उद्यमों को आर्थिक फ्रॉड का सामना करना पड़ा। लोकल सर्कल्स के 2024 के सर्वे से पता चला कि पिछले साल 66% बिजनेस इकाइयों को सरकार से काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी। रीयल एस्टेट क्षेत्र में तो बिना रिश्वत खिलाए कोई काम होता ही नहीं। ऑटोमेशन ने रिश्वतखोरी की दक्षता और मात्रा, दोनों को बढ़ा दिया है। स्थानीय अधिकारियों से लेकर उच्च-स्तरीय प्रशासन तक छाया भ्रष्टाचार संसाधन निगल जाता है। आधार और डिजिटाइजेशन से सामाजिक लाभ और सब्सिडी का भारी लीकेज़ खत्म होना था। लेकिन तमाम राज्यों में मनरेगा के फर्जी लाभार्थियों और ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रमों से लेकर स्कॉलरशिप व नियुक्तियों तक में फूटते घोटालों ने साफ कर दिया है कि लीकेज बदस्तूर जारी है। अब गुरुवार की दशा-दिशा…
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