आखिर शेयर बाज़ार के इक्विटी डेरिवेटिव सेगमेंट (ईडीएस) पर इतनी भारी तादाद में व्यक्तिगत निवेशक पतंगों की तरह जलकर मर जाने के लिए क्यों टूटे पड़े हैं? इसकी सबसे बड़ी वजह है लीवरेज या कम लगाकर काफी ज्यादा पाने की गुंजाइश। निफ्टी ऑप्शंस का न्यूनतम लॉट अब 75 का है। किसी ने 24,950 के स्ट्राइक मूल्य के निफ्टी-50 का पुट ऑप्शंस 26.05 रुपए के भाव से खरीदे तो उसे 75 के लॉट के लिए 1953.75 रुपए देने होंगे। निफ्टी-50 अगर एक्सपारी के दिन 24,950 या इससे ऊपर हुआ तो उसके 1953.75 रुपए + ब्रोकरेज़ वगैरह डूब जाएगा। लेकिन निफ्टी-50 अगर 24,850 हो गया तो उसे 100 x 75 = 7500 रुपए का फायदा हो जाएगा। इसीलिए लॉट साइज़ बढ़ जाने के बावजूद तमाम रिटेल ट्रेडर निफ्टी व बैंक निफ्टी के साथ ही स्टॉक्स में कॉल व पुट ऑप्शस का खेल खेलते हैं। मगर, 90% से ज्यादा सौदों में उनका सारा प्रीमियम डूब जाता है। अंधी लालच में डूबे इन रिटेल ट्रेडरों को कौन समझाए कि फ्यूचर्स व ऑप्शंस जैसे डेरिवेटिव्स म्यूचुअल फंड, बैंकों, हेज फंड और एफआईआई जैसी बड़ी संस्थाओं के लिए निवेश का रिस्क संभालने का साधन हैं। यह आम ट्रेडरों के लिए ब्लाइंड खेलने का कार्ड नहीं। वैसे भी आम ट्रेडरों के पास बाज़ार को प्रभावित करनेवाले कारकों का कोई रीयल-टाइम डेटा भी नहीं होता। इसलिए अक्सर वे जैसा सोचते हैं, वैसा होता नहीं। अब बुधवार की बुद्धि…
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