शेयर बाज़ार का स्वरूप तो दुनिया भर में कमोबेश एक-सा ही रहता है। डिमांड और सप्लाई के संतुलन में बेचने की आतुरता व झोंक ज्यादा बलवान तो शेयर गिरते हैं और खरीदने की आतुरता व झोंक अधिक तो शेयर बढ़ जाते हैं। लेकिन पिछले 10-12 साल में अपने शेयर बाज़ार की संरचना बदल गई है। पहले रिटेल या आम निवेशकों की स्थिति तिनकों या चिड़िया के टूटे पंखों की तरह थी जो हवा के झोंकों में उड़ जाया करते थे। बाज़ार की हवा विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) ही तय करते थे। अब भी एफपीआई का असर खत्म नहीं हुआ है। लेकिन छोटे, रिटेल या आम निवेशकों का मालिकाना देश की लिस्टेड कंपनियों में बढ़कर 21.5% हो गया है। यह जून 2024 तक की अद्यतन स्थिति है। यह मालिकाना 2011-12 में एक सर्वे के मुताबिक 10.74% हुआ करता था। वहीं, लिस्टेड कंपनियों में एफपीआई का मालिकाना जून 2024 की तिमाही तक घटते-घटते 17.6% पर आ गया है जो 12 सालों का न्यूनतम स्तर है। रिटेल निवेशक बाज़ार में अब सीधे ज्यादा निवेश करने लगे हैं। साथ ही वे जिस तरह म्यूचुअल फंडों की इक्विटी स्कीमों में एसआईपी कर रहे हैं, उससे बाज़ार में उनका कुल मालिकाना बढ़ गया है। अब तथास्तु में आज की कंपनी…
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