हमारी निहित संभावना, आकार-प्रकार और मौजूदा भू-राजनीतिक हालात ने अमेरिका व यूरोप समेत समूचे पश्चिमी जगत की नज़र में भारत को आर्थिक व राजनीतिक रूप से चीन की जवाबी शक्ति बना दिया है। इसलिए वो भारत को चढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकते। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसका भरपूर निजी इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही में उनका रूस जाना पश्चिमी दुनिया से मोलतोल करने का ही एक तरीका था। भारत का दूसरा सबसे मजबूत पहलू यह है कि हमारी 144 करोड़ की आबादी की मीडियन या बीच की उम्र करीब 28 साल है। औसतन हमारे हर 100 कामकाजी लोगों पर निर्भर बूढ़े या बच्चे मात्र 40 हैं। अगले कुछ दशकों तक हमारे यहां हर साल कम से कम एक करोड़ नौजवान मेहनत-मशक्कत करने की स्थिति में रहेंगे। इसे ही भारत का डेमोग्राफिक डिविडेंड या वरदान कहा जाता है। यही भारत की मानव संपदा है। इसे ही ध्यान में रखकर करीब दो दशक पहले तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया था। लेकिन मोदी सरकार ने इसे वापस शिक्षा मंत्रालय बना दिया। अगर सिर्फ नाम बदला होता तो चल जाता। मगर, इस सरकार की नीयत व नीतियां वरदान को अभिशाप बनाती जा रही हैं। युवा पीढ़ी की खीझ व झल्लाहट बढ़ती जा रही है। अब शुक्रवार का अभ्यास…
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