कौन आज़ाद हुआ? न ज़मीन, ना जंगल!

अर्थव्यवस्था और उत्पादन के चार बुनियादी कारक हैं – ज़मीन, श्रम, पूंजी और उद्यमशीलता। उद्यमशीलता की अपने यहां कोई कमी नहीं है। अर्थव्यवस्था का अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र इसकी गवाही देता है, जहां देश का 94% से ज्यादा रोज़गार मिला हुआ है। नोटबंदी से पहले अर्थव्यवस्था में इसका योगदान 55-60% हुआ करता है जो जीएसटी जैसे कदमों से घटकर अब 15-20% रह गया है। लेकिन ज़मीन, श्रम व पूंजी की स्थिति दयनीय बनी हुई है। सब कुछ सरकार ने विदेशियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया है। आम लोग शक्तिहीन बनते जा रहे हैं। हाल ही में वन संरक्षण अधिनियम में ऐसा संशोधन कर दिया गया जिससे सरकार जंगलों की ज़मीन का खुल्ला अधिग्रहण इंफ्रास्ट्रक्चर व राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कर सकती है। जंगल व गांव के निवासियों से मंजूरी लेने की शर्त को अब एक सिरे से खत्म कर दिया गया है। सरकार कहती है कि सब कुछ बहुत अच्छा है। लेकिन अगर ऐसा है तो मनरेगा के मजदूर, बेरोज़गार युवा और अस्पतालों के बरामदों में दम तोड़ते मरीज़ इतने ज्यादा क्यों हैं? अब बुधवार की बुद्धि…

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