पब्लिक इश्यू के दो प्रकार होते हैं
निश्चित मूल्य वाला इश्यू
प्रदाता कंपनी को स्वतंत्र रूप से निर्गम का मूल्य निर्धारण करने की अनुमति होती है। निर्गम मूल्य निर्धारण करने का आधार प्रस्ताव दस्तावेज़ में उल्लिखित होता है, जिसमें प्रदाता द्वारा निर्गम मूल्य को न्यायोचित ठहराने वाले गुणात्मक और मात्रात्मक कारकों के बारें में विस्तार से खुलासा होता है। इश्यू लाने वाली कंपनी के 20 प्रतिशत कीमत बैंड में (कैप में निर्धारित मूल्य, फ्लोर मूल्य से 20 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए) सेबी या कम्पनी रजिस्ट्रार के साथ अंतिम प्रस्ताव दस्तावेज़ दाखिल करने की तारीख के एक दिन पहले निर्धारित कर सकते हैं।
बुकबिल्डिंग प्रक्रिया के माध्यम से मूल्य का पता लगाना
बुकबिल्डिंग का अर्थ है प्रदाता द्वारा प्रस्तावित प्रतिभूतियों की मांग जो निगमित निकाय द्वारा जारी किए जाने और उससे हासिल करने के लिए बनाया गया हो। प्रतिभूतियों की मात्रा के लिए प्राप्त बोली के आधार पर इसका मूल्यांकन किया है। प्रतिभूति की कीमत खोजने के लिए इस विधि से बाज़ार में एक अवसर भी प्रदान किया जाता है।
इस प्रक्रिया का नाम निवेशकों द्वारा मूल्य सीमा पर आधारित बोली लगाने से ही पड़ा है। बोली के समापन के बाद निर्गम मूल्य की तारीख तय की जाती है।
एक कंपनी द्वारा आईपीओ/एफपीओ की योजना बनाने के लिए एक मर्चेंट बैंकर को बुक–रनर के रूप में नियुक्त किया जाता है। बोली अवधि के रूप में एक खास समय सीमा तय हो जाती है। बुक–रनर एक आदेश पुस्तिका होती है जो विभिन्न निवेशकों की बोली को एकत्र करती है। संभावित निवेशकों के लिए बोली लगाने की अवधि के दौरान किसी भी समय अपनी बोली को संशोधित करने की अनुमति दी जाती है। बोली अवधि के अंत में शेयरों की मात्रा और संबंधित कीमतों की पेशकश के परिणामस्वरूप आदेश पुस्तिका को बंद करने का आदेश दिया जाता है। अंतिम मूल्य का निर्धारण विभिन्न कीमतों की मांग पर आधारित होता है।
खुली बुकबिल्डिंग
बुक–बिल्ट इश्यू में यह अनिवार्य है कि मांग और बोली अवधि के दौरान बोलियों का आनलाइन प्रदर्शन किया जाए। इसे ओपेन बुक प्रणाली के रूप में जाना जाता है। (बन्द बुकबिल्डिंग के तहत, बुक सार्वजनिक नहीं होती है और बोली लगाने के लिए कॉल कर वे अन्य बोलीदाताओं द्वारा प्रस्तुत बोली पर किसी भी जानकारी के बिना एक बोली लगाने का इरादा बना सकते हैं।) सेबी के अनुसार इलेक्ट्रानिक सुविधा को इस्तेमाल करने की अनुमति केवल बुकबिल्डिंग के इश्य में दी जाती है।
मूल्य का दायरा
प्रस्ताव दस्तावेज़ में प्रतिभूतियों के सम मूल्य या कीमत बैंड दिये हो सकते हैं, जिनके भीतर निवेशक बिड कर सकते हैं। फ्लोर और शीर्ष मूल्य बैंड के बीच 20 प्रतिशत से अधिक अन्तर नहीं हो सकता है। दूसरे शब्दों में इसका मतलब यह है कि कैप फ्लोर कीमत के अधिक से अधिक 120 प्रतिशत तक हो सकता है। कंपनी परामर्श के बाद निवेश बैंकरों के साथ कीमत बैंड तय करती है, और आमतौर पर कुछ समय तक प्रमुख योग्य संस्थागत खरीददार के साथ विपणन–पूर्व अभ्यास करने के बाद मूल्य बैंड में संशोधन करती हैं। सेबी की आवश्यकतानुसार किसी भी कीमत बैंड में संशोधन के लिए शेयर बाज़ारों में व्यापक रूप से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर और प्रासंगिक वेबसाइट परिवर्तन और समूह के सदस्यों के टर्मिनलों का संकेत प्रसारित किया जाता है। जब मूल्य बैंड संशोधित किये जाते हैं तो बोली अवधि को तीन दिन की अवधि के लिए आगे बढ़ाया जा सकता है किंतु अधिक से अधिक 13 दिनों की अवधि तक ही इसे बढ़ाया जा सकता है।
फ्लोर मूल्य
फ्लोर मूल्य, कम से कम मूल्य जिस पर बोली बनाया जा सकती है।
कट-ऑफ मूल्य
बुकबिल्डिंग इश्यू के लिए यह आवश्यक है कि प्रदाता रेड हेरिंग सूची में मूल्य बैंड या फ्लोर मूल्य अंकित करे। वास्तविक खोज से निर्गम मूल्य कीमत बैंड में किसी भी कीमत या फ्लोर मूल्य से ऊपर नहीं हो सकती है। इस मूल्य को कटौती मूल्य’’ कहा जाता है। प्रदाता और अग्रणी प्रबन्धकों द्वारा बुक और स्टॉक के लिए निवेशकों की आवश्यकता पर विचार के बाद फैसला किया जाता है। सेबी (डीआईपी) के दिशा–निर्देशों में अनुमति दी जाती है कि केवल खुदरा व्यक्तिगत निवेशकों के लिए कटौती मूल्य लागू करने का विकल्प हो।
अंतिम इश्यू मूल्य
कीमत बैंड के भीतर विभिन्न स्तरों पर कीमत मांग नामित शेयर बाज़ारों की वेबसाइटों पर पूरे कार्यकाल और के दौरान अंतिम मूल्य प्रदाता द्वारा निर्धारित निवेशकों की जानकारी के लिए उपलब्ध करायी जाती है।
दिनों की न्यूनतम संख्या, जिनके लिए आईपीओ/आईएफओ अंशदान सूची खुली रहती है।
निर्धारित कीमत इश्यू के मामले में जनता के इश्यू के लिए सदस्यता सूची कम से कम 3 और अधिक से अधिक 10 कार्यकारी दिनों के लिए खुली रहती है।
बुकबिल्डिंग इश्यू के मामले में, न्यूनतम और अधिकतम अवधि तक बोली लगाने के लिए 3 से 7 कामकाजी दिनों के मूल्य बैंड में संशोधन के मामले में अवधि 3 दिन तक बढ़ायी जा सकती है।
अतिरिक्त बुक बिल्डिंग प्रणाली के रूप में शुद्ध नीलामी
सेबी ने फॉलो-ऑन सार्वजनिक प्रस्तावों (एफपीओ) में शुरुआत करने के लिए बुक बिल्डिंग की एक अतिरिक्त कार्यप्रणाली शुरु करने का निर्णय लिया है। इसमें इश्यू लाने वाली कम्पनी फ्लोर मूल्य निर्धारित करेगी और कम्पनी रेड हैरिंग विवरणिका में भी फ्लोर मूल्य का उल्लेख कर सकती है। यदि फ्लोर मूल्य रेड हैरिंग विवरणिका में फ्लोर मूल्य नहंी दिया गया है, तब कम्पनी को बिड करने से कम से कम एक दिन पूर्व उन सभी समाचार–पत्रों, जिनमें इश्यू–पूर्व विज्ञापन प्रकाशित किया गया था, में फ्लोर मूल्य की घोषणा करनी चाहिए।
योग्य संस्थागत खरीदार (क्यूआईबी) फ्लोर मूल्य से उपर ही बोली लगाते हैं। सबसे अधिक मूल्य की बोली लगाने वाले खरीददारों को ही बोली लगाये गये शेयर आबंटित किये जाते हैं, उसके बाद दूसरे सबसे अधिक मूल्य की बोली लगाने वाले को शेयर दिये जाते हैं। इसी तरह यह क्रम तब तक जारी रहता है, जब तक सभी निर्धारित शेयर आंबटित न हो जायें। योग्य संस्थागत खरीददारों को मूल्य प्राथमिकता आधार पर आबंटन किया जाना चाहिए। खुदरा व्यक्तिगत निवेशकों, गैर–संस्थागत निवेशकों एवं कम्पनी के कर्मचारियों को आनुपातिक तौर पर शेयरों का आवंटन किये जाते हैं। लेकिन यदि शेयरों की उपलब्ध संख्या से अधिक शेयरों के लिए अधिक मूल्य पर बोली लगायी जाती है, तब आबंटन आनुपातिक आधार पर किया जाना चाहिए। खुदरा व्यक्तिगत निवेशकों, गैर–संस्थागत निवेशकों और कम्पनी के कर्मचारियों को सेबी आईसीडीआर नियमन 2009 के नियम 29 के वाक्य (डी) में वर्णित प्रावधानों के अनुसार फ्लोर मूल्य पर विशिष्ट प्रतिभूतियां आंबटित की जानी चाहिए।
फास्ट ट्रैक इश्यू
सफल, स्थापित और योग्य सूचीबद्ध कम्पनियों की प्राथमिक भारतीय बाजार में सार्वजनिक प्रस्तावों और राइट इश्यू के माध्यम से कम से कम समय में पहुंच आसान बनाने के उद्देश्य से सेबी ने नवम्बर 2007 में फास्ट ट्रैक इश्यू की विचारधारा का सूत्रपात किया। फास्ट ट्रैक इश्यू के लिए सेबी ने कुछ निश्चित शर्तों में ढील दी है, जैसे कि कम्पनी की सार्वजनिक शेयरहोल्डिंग का औसत बाजार पूंजीकरण 10000 करोड़ से घटाकर 5000 करोड़ करना और जिन कम्पनियों में निर्गमित पूंजी के 15 प्रतिशत से कम सार्वजनिक शेयरहोल्डिंग है, उनके वार्षिक व्यापार कारोबार को आधार बनाना। निदेशक मण्डल के गठन से सम्बन्धित नियमों की दशा में, उन्हें एक या दो तिमाही में बाध्य नहीं किया जाता है। कम्पनियों को स्टॉक एक्सचेंज /कम्पनी रजिस्ट्रार के पास प्रस्ताव प्रपत्र जमा करते समय ऐसी जरूरी जानकारियां प्रदान करने की छूट दी जाती है।