अब 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में यूलिप विवाद पर सुनवाई का कोई मतलब नहीं रह गया है क्योंकि सरकार ने इससे जुड़े चार के चार कानूनों – आरबीआई एक्ट 1934, इश्योरेंस एक्ट 1938, सेबी एक्ट 1992 और सिक्यूरिटीज कांटैक्ट रेगुलेशन एक्ट 1956 में संशोधन कर दिया है। शुक्रवार 18 जून को देर रात राष्ट्रपति की तरफ से इन संशोधनों को अध्यादेश के रूप में जारी करवा दिया गया है। जब तक संसद के दोनों सदन किसी अध्यादेश को खारिज नहीं करते तब तक वही कानून होता है। और, सुप्रीम कोर्ट या कोई भी कोर्ट कानून के दायरे में ही अपना फैसला सुना सकता है, उसके बाहर जाकर नहीं।
वित्त मंत्रालय के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक सरकार को अध्यादेश लाने का फैसला इसीलिए करना पड़ा क्योंकि पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी यूलिप के निवेश हिस्से पर अधिकार को लेकर बेहद मजबूत स्थिति में थी। यूलिप में जमाराशि के 98 फीसदी हिस्से के पूंजी बाजार में निवेश और निवेशकों के हितों की शीर्ष संरक्षण संस्था होने के नाते सुप्रीम कोर्ट हर हाल में यही फैसला सुनाता कि यूलिप (यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसी) के निवेश हिस्से का पंजीकरण सेबी के पास कराया जाना सही है। इसीलिए 17 जून को कैबिनेट बैठक के एजेंडा में न होने के बावजूद ‘सिक्यूरिटीज एंड इंश्योरेंस लॉज (अमेंडमेंट एंड वैलिडेशन) ऑर्डिनेंस 2010’ नामक अध्यादेश मंजूर कराया गया और फौरन इसे राष्ट्रपति कार्यालय भेजा गया ताकि इसे जारी किया जा सके।
अध्यादेश के जरिए उक्त चारों कानूनों में यह बात जोड़ी गई है कि जीवन बीमा व्यवसाय में यूलिप या वैसा हर प्रपत्र शामिल है। इंश्योरेंस एक्ट 1938 में संशोधन कर बीमा की परिभाषा में यूलिप को शामिल किया गया है। सिक्यूरिटीज कांट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट 1956 में संशोधन कर स्पष्ट किया गया है कि सारी यूनिट लिंक्ड पॉलिसियां बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) की निगरानी में रहेंगी। इसके बाद सेबी एक्ट 1992 में व्याख्या जोड़ी गई कि सामूहिक निवेश स्कीमों में यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस पॉलिसियां शामिल नहीं हैं। रिजर्व बैंक एक्ट में संशोधन का पता नहीं चल सका है। अब संसद के मानसून सत्र में अध्यादेश को पास कराके स्थाई कानून बना लिया जाएगा। इस तरह 9 अप्रैल से यूलिप पर अधिकार क्षेत्र को लेकर दो नियामक संस्थाओं सेबी और इरडा में शुरू हुई खींचतान पर अब पूर्णविराम लग गया है।
आगे निवेश व बीमा के मिले-जुले उत्पाद पर कोई और विवाद खींचतान का कारण बने, इसके लिए केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति बनाई गई है। इसके सदस्यों में वित्तीय क्षेत्र के चारों नियामक संस्थाओं – सेबी, इरडा, रिजर्व बैंक और पेंशन फंड रेगुलेटरी डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएफआरडीए) के प्रमुखों के साथ-साथ भारत सरकार के वित्त सचिव और वित्तीय सेवा विभाग के सचिव शामिल रहेंगे। यह समिति बजट में घोषित वित्तीय स्थायित्व व विकास परिषद (एफएसडीसी) से अलग होगी। बता दें कि वित्तीय क्षेत्र के नियामकों के बीच समन्वय के लिए पहले ही रिजर्व बैंक गर्वनर की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति, एचएलसीसी बनी हुई है।
वैसे, यूलिप पर छाया ग्रहण अभी खत्म नहीं हुआ है क्योंकि प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में केवल संपूर्ण बीमा उत्पादों को ही हर स्तर पर कर-मुक्ति की ईईई (एक्जेम्प, एक्जेम्प, एक्जेम्प) श्रेणी में रखा गया। इस प्रावधान ने जीवन बीमा उद्योग की नींद उड़ा दी है और जीवन बीमा परिषद के महासचिव एस बी माथुर के मुताबिक उद्योग का एक प्रतिनिधिमंडल इसी हफ्ते केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) और राजस्व सचिव से दिल्ली में मुलाकात करेगा। बता दें कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 8 जून को भारतीय बीमा संस्थान के एक समारोह में कहा था कि यूलिप पर सेबी और इरडा का विवाद जल्द ही सुलझा लिया जाएगा। लेकिन उन्होंने जरा-सा भी संकेत नहीं दिया था कि इसे इस तरह अध्यादेश लाकर सुलझाया जाएगा।
दिक्कत यह है कि यूलिप प्लान पर किसी भी तरह का भ्रम या विवाद सरकार गवारा नहीं कर सकती। इस समय जीवन बीमा पॉलिसियों में आनेवाले 2.60 लाख करोड़ रुपए के प्रीमियम का आधे से ज्यादा हिस्सा यूलिप से आता है। इसमें से अगर सरकारी जीवन बीमा कंपनी एलआईसी को निकाल दें तो निजी कंपनियों का 70-80 फीसदी प्रीमियम यूलिप से आता है। इस रकम का बड़ा हिस्सा शेयर बाजार में आता है। इसलिए भी वित्त मंत्रालय पर इस विवाद पर पूर्णविराम लगाने का काफी दबाव था।