भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) शेयरों की तरह म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए भी डीमैट खातों को जरूरी बनाने पर विचार कर रहा है। सेबी मे इस बारे में बीते मई माह में म्यूचुअल फंडों के साझा मंच एम्फी (एसोसिशयन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया) को एक पत्र भेजकर पूछा था कि क्यों न म्यूचुअल फंड निवेश को भी डीमैट एकाउंट से जोड़ दिया जाए। एम्फी को अपने सुझाव 15 जून, मंगलवार तक सेबी के पास भेज देने थे।
सूत्रों के मुताबिक एम्फी ने अपने सदस्यों से बातचीत के आधार पर एक विस्तृत नोट सेबी के पास भेज दिया है जिसमें कहा गया है कि फिलहाल म्यूचुअल फंड निवेश के लिए डीमैट खाते को वैकल्पिक ही रखा जाए और निवेशकों की प्रतिक्रिया को देखते हुए साल भर बाद इसे अनिवार्य बनाया जा सकता है। सूत्रों का कहना है कि सेबी रिटेल निवेशकों के बीच म्यूचुअल फंडों को लोकप्रिय बनाना चाहता है। वह यह भी चाहता है कि विकसित देशों की तरह भारत में भी रिटेल निवेशक इक्विटी बाजार में निवेश म्यूचुअल के मार्फत ही करें। इसलिए वह जल्दी से जल्दी म्यूचुअल फंडों को डीमैट खातों से जोड़ देना चाहता है।
बता दें कि अभी देश भर में कुल डीमैट खातों की संख्या लगभग 1.7 करोड़ है, जबकि म्यूचुअल फंड में निवेश के खातों या पोर्टफोलियो की संख्या मई 2010 के अंत तक 4.79 करोड़ थी। वह भी तब, जब म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो की संख्या में इस साल फरवरी के बाद से करीब 4 लाख की कमी आई है। एम्फी के मुताबिक फरवरी 2010 में कुल 4.83 करोड़ म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो थे, जिसमें से 4.13 करोड़ का ताल्लुक इक्विटी स्कीमों और बाकी 70 लाख का ताल्लुक ऋण आधारित स्कीमों से था। मई 2010 में कुल म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो 4.79 करोड़ रह गए, जिसमें से 4.07 करोड़ का वास्ता इक्विटी स्कीमों और 72 लाख का वास्ता ऋण स्कीमों से था। इस तरह इक्विटी स्कीमों से जुड़े म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियों में 6 लाख की कमी आई है, जबकि ऋण स्कीमों से जुड़े पोर्टफोलियो 2 लाख बढ़े हैं।
यह सेबी के लिए चिंता का विषय है क्योंकि इक्विटी स्कीमों में ज्यादातर रिटेल निवेशक और ऋण स्कीमों में कॉरपोरेट निवेशक पैसा लगाते हैं। सेबी चाहता है कि म्यूचुअल फंड कॉरपोरेट निवेशकों के हाथ का खिलौना बनने के बजाय रिटेल निवेशक की बचत को पूंजी बाजार में लाने का माध्यम बने। इसी क्रम में उसने पिछले साल अगस्त में म्यूचुअल फंड निवेश में शुरुआत में काट लिया जानेवाला कमीशन या एंट्री लोड खत्म किया था। लाभांश की अदायगी के बारे में भी उसने म्यूचुअल फंडों को अलग प्रीमियम खाता रखने को कहा है। साथ ही कॉरपोरेट निवेश को हतोत्साहित करने के लिए वह 120 से 365 दिन के ऋण प्रपत्रों पर जुलाई 2010 से मार्क टू मार्केट का नियम लागू कर रहा है।
असल में म्यूचुअल फंड निवेश के लिए डीमैट खातों को अनिवार्य बनाना नवंबर 2009 से शुरू की गई उस प्रक्रिया का हिस्सा है, जब स्टॉक एक्सचेंजों के जरिए म्यूचुअल फंड स्कीमों को खरीदने-बेचने की सुविधा दी गई। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) अपने यहां म्यूचुअल फंड ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म शुरू कर चुके हैं। लेकिन अभी तक इनका रिस्पांस बहुत ढीला है। पूरे मई माह में बीएसई में म्यूचुअल फंड स्कीमों का कुल कारोबार मात्र 59 लाख रुपए रहा है, जबकि एनएसई में यह केवल 8.36 लाख रुपए का था।
सेबी का मानना है कि म्यूचुअल फंड निवेश के लिए डीमैट खाते जरूरी करने से जहां देश में डीमैट खातों की संख्या बढ़ जाएगी, वही एक्सचेजों के ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म की भी सक्रियता में इजाफा हो सकता है। वैसे, एम्फी भी सैद्धातिक रूप से इस पर सहमत है। एम्फी ने कॉमन ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर एक समिति बनाई थी, जिसका सुझाव था कि म्यूचुअल फंडों के लिए डीमैट खातों की शुरुआत की जाए। इससे म्यूचुअल फंड स्कीमों के वितरण का खर्च घटेगा और कामकाज में ज्यादा पारदर्शिता आएगी।