इस ज़माने में पैरों से नीचे की ज़मीन इतनी तेज़ी से खिसक रही है कि अपनी सुध खुद नहीं ली तो दूसरे को आपकी परवाह की फुरसत नहीं। न सरकार को जनता की सुध है और न ही संतों को। यहां तो हर किसी को अपनी ज़मीन बचाने की पड़ी है।
2012-07-09
इस ज़माने में पैरों से नीचे की ज़मीन इतनी तेज़ी से खिसक रही है कि अपनी सुध खुद नहीं ली तो दूसरे को आपकी परवाह की फुरसत नहीं। न सरकार को जनता की सुध है और न ही संतों को। यहां तो हर किसी को अपनी ज़मीन बचाने की पड़ी है।
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Dhan ki sab maya h….har kisi ko khinchta h….iske bina to niche se jamin ghiskegi hi ..aur ghisak gai to kabar bhi tayyar h samaane ke liye ……kash bahut sara DHAN hota fir furshat mai dharm aur samajik kaaryo mai bhar bhar ke hissa lete …. par kya!!! apni jamin bachau ya kud kud ke dusre ke jamin mai so jau ……..kya karu kya karu !!!