समाज का मुलम्मा भले ही लगा हो, लेकिन हमारी सारी भावनाओं का स्रोत मूलतः प्रकृति ही होती है। शरीर के रसायन और खुद को संभालने व गुणित करते जाने का प्राकृतिक नियम हमें नचाता रहता है। हमारा अहं भी प्रकृति की ही देन है।
2012-06-11
समाज का मुलम्मा भले ही लगा हो, लेकिन हमारी सारी भावनाओं का स्रोत मूलतः प्रकृति ही होती है। शरीर के रसायन और खुद को संभालने व गुणित करते जाने का प्राकृतिक नियम हमें नचाता रहता है। हमारा अहं भी प्रकृति की ही देन है।
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