कैस्ट्रॉल इंडिया का शेयर इस साल जनवरी से लेकर कल तक 26.76 फीसदी बढ़ चुका है। इसी दौरान सेंसेक्स 12.08 फीसदी बढ़ा है। लेकिन कैस्ट्रॉल शायद बाजार से आगे रहने का यह क्रम आगे जारी न रख सके। कारण, तीन दिन पहले सोमवार को घोषित मार्च तिमाही के उसके नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। इस दौरान जहां उसकी बिक्री 4.13 फीसदी बढ़कर 781.7 करोड़ रुपए पर पहुंची है, वहीं शुद्ध लाभ 10.03 फीसदी घटकर 122.9 करोड़ रुपए पर आ गया।
बता दें कि कैस्ट्रॉल इंडिया बहुराष्ट्रीय कंपनी है। इसका ताल्लुक ब्रिटेन के बीपी समूह से है। इसकी 247.3 करोड़ रुपए की इक्विटी में ब्रिटिश कंपनी कैस्ट्रॉल लिमिटेड की 70.92 फीसदी और बीपी मॉरीशस लिमिटेड की 0.11 फीसदी हिस्सेदारी है। इस तरह कंपनी में विदेशी प्रवर्तकों की कुल हिस्सेदारी 71.03 फीसदी है। बाकी एफआईआई ने इसके 7.83 फीसदी और डीआईआई ने 7.03 फीसदी शेयर ले रखे हैं। गैर-संस्थागत निवेशकों के पास इसके 14.11 फीसदी शेयर हैं जिसमें से 0.95 फीसदी शेयर कॉरपोरेट निकायों के पास हैं।
कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 66,299 है। इसमें से 64,625 यानी 97.48 फीसदी एक लाख रुपए से कम लगानेवाले छोटे निवेशक हैं जिनके पास कंपनी के 11.53 फीसदी शेयर हैं। विदेशी प्रवर्तकों से इतर कंपनी की सबसे बड़ी शेयरधारक सरकारी बीमा कंपनी एलआईसी है जिसके पास इसके 3.18 फीसदी शेयर हैं। नहीं पता कि कंपनी के 11 सदस्यीय निदेशक बोर्ड में एलआईसी का कोई प्रतिनिधि है कि नहीं क्योंकि कंपनी ने यह जानकारी सहजता से उपलब्ध नहीं करा रखी है।
कैस्ट्रॉल इंडिया का वित्त वर्ष कैलेंडर वर्ष के हिसाब से चलता है। दिसंबर 2011 में बीते साल में उसने 2981.7 करोड़ रुपए की बिक्री पर 481 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। लेकिन साल 2012 का आगाज अच्छा नहीं रहा। मार्च में खत्म पहली तिमाही में उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 20.3 फीसदी रहा है, जबकि साल भर पहले यह 24.13 फीसदी हुआ करता था। पिछली कई तिमाहियों से कंपनी का लाभ मार्जिन घट रहा है। पूरे साल 2011 में उसका ओपीएम 22 फीसदी था।
कंपनी क्या बनाती है, आप जानते ही हैं। आप यह भी जानते हैं कि उसके भी ब्रांड एम्बेस्डर सेंचुरी की सेंचुरी मारनेवाले क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर हैं। इस समय कंपनी के लुब्रिकेंट ऑयल की बिक्री का 86 फीसदी हिस्सा वाहनों से और बाकी 14 फीसदी हिस्सा गैर-वाहन सेगमेंट से आता है। मार्च तिमाही में उसके गैर-वाहन सेगमेंट की बिक्री बढ़ी है। इसके बावजूद कुल बिक्री में 4.13 फीसदी का इजाफा हो सका है। बिक्री में कच्चे माल की लागत का अनुपात भी बढ़ता जा रहा है। मार्च 2011 में यह 55.38 फीसदी था, जबकि मार्च 2012 में 58.55 फीसदी बढ़ गया। इस दौरान कंपनी का विज्ञापन खर्च भी 50.8 करोड़ रुपए से 16.34 फीसदी बढ़कर 59.1 करोड़ रुपए हो गया है।
असल में लुब्रिकेंट ऑयल कच्चे तेल की रिफाइनिंग से निकलता है। इसलिए जैसे-जैसे कच्चे तेल के दाम बढ़ते जाते हैं, कैस्ट्रॉल इंडिया का लाभ मार्जिन घटता जाता है। देश की 80 फीसदी कच्चे तेल की मांग आयात से पूरी की जाती है तो कैस्ट्रॉल इंडिया इसका कोई अपवाद नहीं है और न ही उसके पास रिलायंस इंडस्ट्रीज या ओएनजीसी की तरह भारत में कोई अपना तेल कुआं है। जानकारों के मुताबिक आनेवाली तिमाहियों में कैस्ट्रॉल इंडिया के लाभ मार्जिन पर दबाव बना रहेगा।
इस समय मार्च 2012 तक के नतीजों के आधार पर उसका ईपीएस 18.90 रुपए है। कल उसका पांच रुपए का शेयर बीएसई (कोड – 500870) में 532.50 रुपए और एनएसई (कोड – CASTROL) में 532.40 रुपए पर बंद हुआ है। इस तरह वो फिलहाल 28.17 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। इसका उच्चतम स्तर 588.35 (5 जुलाई 2011) और न्यूनतम स्तर 385.05 रुपए (15 दिसंबर 2011) का रहा है।
हो सकता है कि यह शेयर इस बार जुलाई तक 400 रुपए से नीचे चला जाए। उसी के आसपास इसे खरीदना चाहिए। हालांकि कंपनी फंडामेंटल के स्तर पर काफी मजबूत है। वह पूरी तरह ऋण-मुक्त कंपनी है और बराबर लाभांश भी देती रहती है। पूरे देश भर में उसका जबरदस्त वितरण नेटवर्क है। ब्रांड की पहचान जबरदस्त है। भारत में अंग्रेज़ों के जमाने, 1910 से घुसकर बैठी हुई है। सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल के बाद भारत के लुब्रिकेंट बाजार की दूसरे सबसे बड़ी खिलाड़ी है।