स्वीडन से निकले और ब्रिटेन में जमे ईसाब समूह की भारतीय सब्सडियरी ईसाब इंडिया के बारे में हमने सबसे पहले यहां करीब तेरह महीने 16 फरवरी 2011 को लिखा था। तब इसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर 480.30 रुपए तक चल रहा था। करीब सात महीने बाद 14 सितंबर 2011 को यह 591.30 रुपए तक चला गया। सात महीने में 23 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न। लेकिन उसके बाद गिरते-गिरते 20 दिसंबर 2011 को 422 रुपए की तलहटी पर पहुंच गया।
इधर कंपनी ने दस दिन पहले ही 12 मार्च को अपने शेयरों को वापस खरीदने का ओपन ऑफर घोषित किया है जिसमें वह अपने 26 फीसदी शेयर अधिकतम 550.10 रुपए के मूल्य पर वापस खरीदने को तैयार है। ओपन ऑफर सोमवार, 19 मार्च को खुल चुका है और सोमवार, 2 अप्रैल तक खुला रहेगा। सवाल उठना स्वाभाविक है कि ईसाब इंडिया में बने रहा जाए या कंपनी के माथे पर ही उसके शेयर मारकर निकल लिया जाए? वैसे भी हमें तो सवा साल में 14.5 फीसदी से ज्यादा का रिटर्न मिल जाएगा। इतना टैक्स-फ्री रिटर्न क्या बुरा है?
लेकिन हम तो इससे नहीं निकलने की ही सलाह देंगे। कारण, जो शेयर चार-पांच साल में 1000 रुपए तक पहुंचने की सामर्थ्य रखता हो, उससे 550 रुपए में क्यों बेचना? फिर ओपन ऑफर में निर्धारित मूल्य अधिकतम मूल्य होता है। जरूरी नहीं कि कंपनी उसी भाव पर सारे शेयर खरीद ले। इस ओपन ऑफर के शुरू होने के बाद भी शेयर में कोई तेजी नहीं आई है। 12 मार्च को यह 535.80 रुपए पर था। 19 मार्च को 535.85 रुपए पर बंद हुआ। और, कल बीएसई (कोड – 500133) में यह 537 रुपए और एनएसई (कोड – ESABINDIA) में 536.40 रुपए पर बंद हुआ है। इस स्तर पर न तो इसे बाजार में बेचना वाजिब है और न ही कंपनी को वापस बेचना। आइए समझते हैं क्यों?
अमेरिकी कंपनी कोलफैक्स कॉरपोरेशन ईसाब इंडिया की पैतृक कंपनी चार्टर इंक को पूरी तरह खरीद रही है। चूंकि मालिकाने में बदलाव में हो रहा है, इसलिए वैधानिक रूप से कोलफैक्स के लिए ईसाब इंडिया के 26 फीसदी शेयर खरीदना जरूरी हो गया है। दिसंबर 2011 तक की स्थिति के अनुसार ईसाब इंडिया की 15.39 करोड़ रुपए की इक्विटी में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 55.65 फीसदी है जो अब पूरी तरह कोलफैक्स समूह की हो जाएगी। उसे अगर बायबैक में 26 फीसदी शेयर और मिल जाते हैं तो कंपनी में उसकी कुल हिस्सेदारी 81.65 फीसदी हो जाएगी।
कोलफैक्स ने कहा है कि वह भविष्य में ईसाब इंडिया में न्यूनतम पब्लिक शेयरधारिता को 25 फीसदी के निर्धारित स्तर पर ले आएगी। लेकिन इसके लिए उसे और शेयर जारी कर पड़ सकते हैं जिससे इक्विटी बढ़ेगी और नतीजतन उसका प्रति शेयर लाभ (ईपीएस) घट जाएगा। कोई कह सकता है कि इससे उसके शेयर का भाव भी भविष्य में घट जाएगा। लेकिन बहुत मुमकिन है कि ऐसा न हो।
कम से कम कंपनी के फंडामेंटल पहलू तो यही कहते हैं। वह पूरी तरह ऋण-मुक्त कंपनी है। कंपनी का वित्त वर्ष कैलेंडर वर्ष के हिसाब से चलता है। यह सच है कि दिसंबर में बीते वित्त वर्ष 2011 में उसकी बिक्री मात्र 7.14 फीसदी बढ़कर 536.08 रुपए पर पहुंची, जबकि उसका शुद्ध लाभ 19.54 फीसदी घटकर 47.44 करोड़ रुपए पर आ गया। लेकिन अब भी उसका ईपीएस 30.83 रुपए है। इस आधार पर उसका शेयर फिलहाल 17.41 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है जिसे किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के लिहाज कम ही माना जाएगा। यह भी सच है कि पिछले तीन सालों में कंपनी की बिक्री और लाभ में अच्छी वृद्धि नहीं हुई है। लेकिन उसका नियोजित पूंजी पर रिटर्न 49.72 फीसदी और नेटवर्थ पर रिटर्न 32.92 फीसदी है।
नई अमेरिकी मालिक कंपनी कोलफैक्स ने ऑन-रिकॉर्ड कहा है कि वे ईसाब इंडिया के धंधे को लेकर काफी उत्साहित हैं। हो सकता है कि 80 फीसदी से ऊपर इक्विटी हासिल कर लेने के बाद कोलफैक्स ईसाब इंडिया को डीलिस्ट कराने की सोचे। लेकिन तब की तब देखी जाएगी। वैसे भी यह कंपनी लाभांश जबरदस्त देती रही है। 2009 से लेकर अब तक दस पर दस कम से कम, नहीं तो 15 से 20 रुपए यानी 100, 150 और 200 फीसदी का लाभांश देती रही है। ऐसी कंपनी को सस्ते में छोड़ने का कोई तुक नहीं है।