शेयर बाजार या किसी खास शेयर में बढ़त के दो ही आधार होते हैं। एक, अर्थव्यवस्था या कंपनी के मजबूत होते फंडामेंटल। दो, बढ़ी हुई तरलता, यानी खरीदने के लिए ज्यादा रकम का आना। इस साल जनवरी से लेकर अब तक चली तेजी की बड़ी वजह है विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) द्वारा किया गया 7.03 अरब डॉलर (34,900.80 करोड़ रुपए) का शुद्ध निवेश। सेबी के मुताबिक इसमें से केवल फरवरी में किया गया निवेश 4.96 अरब डॉलर (24,369 करोड़ रुपए) का रहा है। लेकिन कल भी तो उन्होंने 329.09 करोड़ रुपए की शुद्ध खरीद की थी। फिर क्यों सेंसेक्स 477.82 फीसदी लुढ़क गया। इसलिए कि कल घरेलू निवेशक संस्थाओं ने जमकर मुनाफावसूली की और उनकी शुद्ध बिकवाली 699.14 करोड़ रुपए की रही। इसलिए, लकीर के फकीर की तरह गिरावट का सारा दोष हमेशा एफआईआई पर डालना गलत है।
खैर, अब आज की ठोस चर्चा। इनडैग रबर करीब तीन दशकों से टायरों की री-ट्रीडिंग के धंधे में है। उसकी दो उत्पादन इकाइयां हिमाचल के नालागढ़ और राजस्थान के भिवाडी में हैं। री-ट्रीडिंग में पुराने टायरों पर नया रबर चढ़ाकर उन्हें चौकस बना दिया जाता है। इससे उपभोक्ता का खर्च 25 से 30 फीसदी बच जाता है। वैसे तो देश में इस धंधे का 80 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र का है। लेकिन कंपनी ने गुणवत्ता के दम पर अपनी अलग जगह बना ली है। उसने बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 150.27 करोड़ रुपए की आय पर 10.75 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था और उसका परिचालन लाभ मार्जिन (ओपीएम) 11.12 फीसदी था।
चालू वित्त वर्ष 2011-12 के दौरान उसका ओपीएम जून तिमाही में 12.39 फीसदी, सितंबर तिमाही में 14.09 फीसदी और दिसंबर तिमाही में 13.48 फीसदी रहा है। दिसंबर तिमाही में साल भर पहले की बनिस्बत उसकी बिक्री 54.6 फीसदी बढ़कर 57.45 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 85.01 फीसदी बढ़कर 5.31 करोड़ रुपए हो गया।
अच्छे नतीजों की आंच में उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर इसी महीने 15 फरवरी 2012 को 188 रुपए के शिखर पर चला गया। इसका 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर 82 रुपए का है जो इसमें पिछले साल 11 जुलाई 2011 को हासिल किया था। इसका शेयर केवल बीएसई (कोड – 509162) में लिस्टेड है। कल यह 3.26 फीसदी गिरकर 163 रुपए पर बंद हुआ है।
यह स्मॉल कैप कंपनी है और इसका बाजार पूंजीकरण मात्र 85 करोड़ रुपए है। कंपनी की इक्विटी मात्र 5.25 करोड़ रुपए है। इसका भी 77.05 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। एफआईआई के पास इसके 0.65 फीसदी और डीआईआई के पास 0.04 फीसदी शेयर हैं। जाहिरा तौर पर इसका फ्लोटिंग स्टॉक बहुत कम है। लेकिन इसके शेयरों में तरलता की ज्यादा दिक्कत नहीं है। ठीकठाक ट्रेडिंग होती है।
ज्यादा कुछ न कहकर बस इतना कहना है कि इस कंपनी में लंबे समय के लिए निवेश लाभप्रद हो सकता है। कंपनी का दिसंबर 2011 तक के बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 34.32 रुपए है। इस आधार पर उसका शेयर फिलहाल 4.74 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। चार साल पहले फरवरी 2008 में यह 13.09 के पी/ई पर ट्रेड हो चुका है। चार साल बाद 2016 में अगर यह दस के भी पी/ई तक पहुंच गया तो आपकी पूंजी दोगुनी से ज्यादा हो सकती है। लेकिन फैसला खुद जांच-परख कर कीजिए। वैसे भी, आज मैं खुलकर इस पर लिख नहीं सका हूं।