सुब्बु सब जानता है। बचत खाते की 6 फीसदी ब्याज दर पर कोटक महिंद्रा बैंक का यह विज्ञापन आपने देखा ही होगा। शेयर बाजार के बारे में भी यही कहा जाता है कि वह सब जानता है। आप उसे चौंका नहीं सकते क्योंकि उसे पहले से सब पता रहता है। लेकिन यह आंशिक सच है, पूरा नहीं। ज़िंदगी की तरह बाजार में भी चौंकने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। बाजार हमेशा वर्तमान को पचाकर और भविष्य का हरसंभव आकलन करके चलता है। इसीलिए अक्सर अच्छे नतीजों की घोषणा के बावजूद उस दिन कंपनी के शेयर के भाव गिर जाते हैं। लेकिन भविष्य को पूरी तरह नाप लेना किसी के लिए भी संभव नही। इसलिए कुछ अनपेक्षित घट जाने पर बाजार भी छोटे बच्चे की तरह चिंहुक जाता है।
असल में शेयर बाजार किसी भी वक्त दो में से एक चीज करता है। एक, अगले कुछ महीनों में क्या होने जा रहा है, इसका वह अनुमान लगाकर चलता है। जैसे, इस समय 16 मार्च को आनेवाले बजट व उत्तर प्रदेश के चुनावों के नतीजों का हिसाब-किताब लगाया जा रहा है। जो पहले से पता है, जैसे एविएशन सेक्टर में 49 फीसदी निवेश की इजाजत विदशी एयरलाइंस को दी जानी है, इसका असर वह जज्ब करते चलता है। दो, बाजार के अनुमान के विपरीत जब चौंकानेवाली चीजें हो जाती हैं तो बड़ी तेज़ प्रतिक्रिया दिखाता है। जैसे, बजट में माल व सेवा कर (जीएसटी) पर अमल एक साल और टाल दिया गया तो बाजार ठंडा रुख दिखाएगा। लेकिन इसे 1 अप्रैल 2012 से लागू कर दिया गया तो वह चौंककर से उछल जाएगा। आइए देखते हैं, इस हफ्ते हमने पूंजी बाजार के स्वभाव के बारे में और क्या जाना-समझा…
- जिस तरह गहरा पानी शांत बहता है, कम गहरा पानी थोड़ा ज्यादा और ज्यादा छिछला पानी कुछ ज्यादा ही उछलता है, उसी तरह का हाल शेयर बाजार में लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप स्टॉक्स का रहता है। यह बाजार का ऐसा स्वभाव है जिसे हम बदल नहीं सकते। समझदारी इसी में है कि इसी स्वभाव के मद्देनज़र निवेश और रिटर्न का हिसाब-किताब बैठाया जाए। इसी से फैसला किया जाए कि कहां लंबे समय का निवेश रखना है, कहां छह महीने या साल भर का नजरिया रखना है और कहां खटाक से कमाके निकल जाना है। लेकिन यह भी ध्यान रहे कि आज की स्मॉल कैप या मिड कैप कंपनियां ही कल की लार्ज कैप कंपनियां बनती हैं।
- प्राइमरी बाजार ही वह चौराहा है, वो दहलीज है, जहां निवेशक पहली बार कंपनी से सीधे टकराता है। प्रवर्तक पब्लिक इश्यू (आईपीओ या एफपीओ) के जरिए निवेशकों के सामने अपने जोखिम में हिस्सेदारी की पेशकश करते हैं। निवेशक खुद तय करके अपने हिस्से की पूंजी दे देता है। फिर कंपनी सारी पूंजी जुटाकर अपने रस्ते चली जाती है और निवेशक अपने रस्ते। निवेशक की पूंजी चलती रही, कहीं फंसे नहीं, तरलता बनी रहे, कंपनी के कामकाज़ को सही ढंग से दर्शाते हुए बढ़ती रहे; आगे का यह सारा काम सेकेंडरी बाजार या शेयर बाजार करता है। शेयर बाजार में लिस्टेड किसी स्टॉक में हम जो निवेश करते हैं, उससे कंपनी को सीधे कुछ नहीं मिलता। बस, एक माहौल बनता है, साख बनती है और कंपनी का बराबर मूल्यांकन होता रहता है, जिससे कंपनी को भविष्य में धन जुटाना आसान हो जाता है।
- कोई शेयर अगर अपनी बुक वैल्यू से लगभग आधे भाव पर ट्रेड हो रहा तो आप क्या करेंगे? ऊपर से शेयर दस से नीचे के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा तो हर कोई कहेगा – लूट लो, यह शेयर तो साल भर में दोगुना हो ही सकता है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या बुक वैल्यू का ज्यादा होना ही निवेश का पर्याप्त मानदंड है? क्या कम पी/ई का मतलब उस शेयर में बढ़ने की भरपूर संभावना होता है? इसका जवाब है – शायद नहीं। कम से कम हमारा अपना अनुभव तो यही कहता है।