फूल तो गुलाब भी है और बेला भी। अलग हैं लेकिन एक भी। यह भिन्नता प्रकृति व समाज दोनों में अपरिहार्य है। जो इसे तोड़कर एकसार बनाना चाहते हैं, वे समाज ही नहीं, प्रकृति के भी अपराधी हैं।
2012-02-07
फूल तो गुलाब भी है और बेला भी। अलग हैं लेकिन एक भी। यह भिन्नता प्रकृति व समाज दोनों में अपरिहार्य है। जो इसे तोड़कर एकसार बनाना चाहते हैं, वे समाज ही नहीं, प्रकृति के भी अपराधी हैं।
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