सुप्रीम कोर्ट में सहारा समूह और पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी का मुकदमा लंबा खिंचता जा रहा है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह की दो कंपनियों – सहारा इंडिया रीयल एस्टेट कॉरपोरेशन (वर्तमान नाम – सहारा कमोडिटी सर्विसेज कॉरपोरेशन) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन से कहा है कि वे तीन हफ्ते में तय कर लें कि ओएफसीडी (ऑप्शनी फुली कनवर्टिबल डिबेंचर) के 2.3 करोड़ निवेशकों के धन को कैसे सुरक्षित करेंगी। इनमें से अधिकांश निवेशक ग्रामीण या कस्बाई इलाकों के हैं। कोर्ट ने सहारा समूह की कंपनियों को दो विकल्प दिए। या तो वे इस निवेश के लिए पर्याप्त बैंक गारंटी दें या इसके अनुरूप अचल संपत्ति कोर्ट के सामने कुर्क कराने के लिए पेश करें।
मुख्य न्यायाधीश एस एच कापड़िया की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सहारा समूह की कंपनियों और सेबी को एक साथ मिलकर बैठकर यह सुनिश्चित करने को कहा कि ओएफसीडी के निवेशकों को अपना धन न गंवाना पड़े। सुप्रीम कोर्ट इस मुकदमे पर अपना औपचारिक फैसला तीन हफ्ते बाद सुनाएगा। बता दें कि इस मामले में सिक्यूरिटीज अपीलीय ट्राइब्यूनल (सैट) ने सेबी के आदेश को सही ठहराते हुए सहारा समूह कंपनियों को ओएफसीडी से जुटाए गए 17,400 करोड़ रुपए उसके करीब 2.3 करोड़ निवेशकों को लौटाने का आदेश दिया था। इसके खिलाफ सहारा ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है।
सुप्रीम कोर्ट में सहारा समूह ने अपना पक्ष रखने के लिए जाने-माने अधिवक्ता फली एस नरीमन को नियुक्त किया है, जबकि सेबी की तरफ से अरविंद दातार पैरवी कर रहे हैं। शुक्रवार को हुई जिरह में नरीमन ने कहा कि सेबी के हर सवाल का जवाब दिया जा चुका है। अभी तक कोई डिफॉल्ट नहीं हुआ है। यहां तक समय से पहले कंपनियां डिबेंचरों का विमोचन करने लगी हैं। निवेशकों ने भी कोई शिकायत नहीं की है।
उन्होंने जब कहा कि कंपनियों के पास इतनी अचल संपत्ति है कि ओएफसीडी की सारी देनदारी आसानी से निपटाई जा सकती है, तब न्यायाधीशों की तरफ से आशंका उठाई गई है कि यह संपत्ति तीसरे पक्ष या थर्ड पार्टी की देनदारी भी हो सकती है। सिक्योर व अनसिक्योर उधारकर्ता भी हो सकते हैं जो समूह की कंपनियों पर दावा ठोंक सकते हैं। इसलिए कंपनियों को सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास ओएफसीडी के निवेशकों का धन लौटाने के लिए पर्याप्त संपदा है।
सेबी के वकील अरविंद दातार ने सहारा समूह पर हमला बोलते हुए कहा कि इसकी 64 शहरों में 64 कंपनियां हैं जिनके मार्फत समूह लोगों से रकम जुटाता है। समूह द्वारा दाखिर आयकर रिटर्न की जांच-पड़ताल से साफ होता है कि इसका सारा धंधा एकदम अस्पष्ट है। वह आंकड़ों में ऐसा उलटफेर कर देता है कि करयोग्य आय ही शून्य हो जाती है। दातार ने कहा कि समूह के कामकाज का निरीक्षण मुश्किल है। कुछ मामलों में उसके पास प्रॉपर्टी को केवल डेवलप करने का अधिकार है और जमीन उसकी नहीं है। समूह की कोई भी कंपनी दीवालिया हो सकती है। इसके अलावा पार्टनरों की मौजूदगी की वजह से मामला और पेंचीदा हो सकता है।