वोडाफोन को 12,000 करोड़ की राहत का राज़

सुप्रीम कोर्ट में जिस कंपनी की पैरवी देश के पूर्व सोलिसिटर जनरल हरीश साल्वे और कांग्रेस के प्रवक्ता व जानेमाने वकील अभिषेक मनु सिंघवी कर रहे हों, उसका जीतना कोई मुश्किल नहीं था। वह भी तब, जब मामला किसी विदेशी कंपनी का हो और हमारी सरकारी विदेशी निवेश को खींचने के लिए बेताब हो। इन दोनों प्रख्यात वकीलों की तगड़ी पैरवी की बदौलत वोडाफोन ने सुप्रीम कोर्ट में वह मामला जीत लिया जिसमें उसे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में मुंह की खानी पड़ी थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वोडाफोन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए इनकम टैक्स विभाग को आदेश दिया कि वह कंपनी को 2500 करोड़ रुपए ब्याज समेत लौटा दे।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि 12,000 करोड़ रुपए की देनदारी का मामला आयकर विभाग के अधिकार में ही नहीं आता। कोर्ट ने कहा कि हचिसन और वोडाफोन के बीच यह डील देश से बाहर हुई थी। लिहाजा यह आयकर विभाग का मसला नहीं है। बता दें कि इन दो बड़ी टेलीकॉम कंपनियों के बीच हुई डील के बाद आयकर विभाग ने वोडाफोन पर लगभग 12,000 करोड़ रुपए (11,800 करोड़ रुपए) का टैक्स लगाया था, जिसका विरोध करते हुए कंपनी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला आयकर विभाग के पक्ष में दिया था जिसके खिलाफ वोडाफोन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। देश की सर्वोच्च अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए वोडाफोन से अंतिम फैसला आने तक 2500 करोड़ रुपए आयकर विभाग के पास जमा कराने को कहा था। अब अंतिम फैसले में वोडाफोन की जीत हो गई है।

कहा जा रहा है कि इससे विदेशी निवेशकों के बीच अच्छा संकेत जाएगा। फैसले के बाद हरीश साल्वे ने कहा कि विदेशी निवेश को लेकर छाई अनिश्चितता अब छंट जाएगी। अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया और कहा कि इसे देश ही नहीं, विदेश तक में बतौर संदर्भ लिया जाएगा। उनकी खुशी और उत्साह को इसलिए भी समझा जा सकता है कि कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार इस समय हर हालत में विदेशी निवेश खींचने में लगी हुई है। वह नहीं चाहती कि किसी भी तरह से विदेशी निवेशकों के बीच कोई नकारात्मक संकेत जाए।

असल में यह सारा मामला विदेशी निवेशकों को देश में नाजायज छूट देने का है। वोडाफोन से हचिसन की जिस संपत्ति की बोली लगाई थी, वह संपत्ति भारत में थी। इसलिए उस संपत्ति का मूल्य बढ़ने पर हुई पूंजी प्राप्ति पर टैक्स लगाना लाजिमी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने ऐसे ही तर्कों पर आयकर विभाग के दावे को सही ठहराया था। लेकिन असली खामी भारत सरकार की नीतियों में है जिसका फायदा वोडाफोन ने बड़े वकीलों की मदद से उठा लिया।

सरकार ने दोहरा कराधान निषेध संधि के तहत तय कर रखा है कि केमैन आइलैंड की किसी भी कंपनी द्वारा भारत में की गई कमाई पर टैक्स नहीं लगेगा। वोडाफोन मूलतः ब्रिटेन की कंपनी है और उसका मुख्यालय लंदन में है। वही हचिसन हांगकांग की कंपनी है। लेकिन हचिसन जिस कंपनी के जरिए भारत में एस्सार समूह के साथ मिलकर मोबाइल सेवा का कारोबार रही थी, उसका गठन केमैन आइलैंड में हुआ था। उस कंपनी ने भारत की आस्तियां वोडाफोन को बेचकर कमाई की और वोडाफोन को भी इससे भारी फायदा हुआ। लेकिन चूंकि सारी डील केमैन आइलैंड के पते वाली कंपनी के जरिए हुई और वहां की कंपनियों पर भारत में टैक्स नहीं लगता, इसलिए वोडाफोन को 12,000 करोड़ रुपए की राहत मिल गई। कोई देखना चाहे तो यह साफ-साफ कानून का फायदा उठाने के लिए वोडाफोन व हचिसन की तरफ से किया गया फर्जीवाड़ा था।

सवाल यह भी उठता है कि सरकार खुद अपने खजाने में छेद क्यों कर रही है? देश का कोई बाशिंदा अपनी जिस कमाई पर टैक्स नहीं देता, वह कालाधन बन जाती है। लेकिन सरकार एफआईआई समेत वोडाफोन जैसी विदेशी कंपनियों को भारत में की गई कमाई पर टैक्स न देने की कानूनी सहूलियत दे रही है। उनकी कमाई बिना टैक्स दिए सफेद है और हमारी कमाई टैक्स न देने पर काली कैसे हो जाती है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *