संस्कृत है खुली संस्कृति

।।मनमोहन सिंह।।

संस्‍कृत भारत की आत्‍मा है। संस्‍कृत विश्‍व की प्राचीनतम जीवित भाषाओं में से एक है। लेकिन प्रायः इसके बारे में गलत धारणा है कि यह केवल धार्मिक श्‍लोकों और अनुष्ठानों की ही भाषा है। इस प्रकार की भ्रांति न केवल इस भाषा की महत्‍ता के प्रति अन्‍याय है, बल्कि इस बात का भी प्रमाण है कि हम कौटिल्य, चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्‍त व भास्‍कराचार्य जैसे अनेक लेखकों, विचारकों, ऋषि-मुनियों और वैज्ञानिकों के कार्य के प्रति अनभिज्ञ हैं।

वास्‍तव में संस्‍कृत एक भाषा से कहीं अधिक है। यह एक पूर्ण ज्ञान प्रणाली है, जिसमें प्राचीन भारत की महान विद्या-प्रणालियों का समावेश है। जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था कि संस्‍कृत भाषा और साहित्‍य एक महान निधि है, जो भारत के पास है। यह एक शानदार विरासत है। जब तक यह रहेगी और भारतीय जनमानस को प्रभावित करती रहेगी, तब तक भारत की मूल प्रतिभा समृद्ध होती रहेगी।

संस्‍कृत में न केवल विश्‍व साहित्‍य के महान ग्रंथ हैं, बल्कि इसमें गणित, चिकित्‍सा, वनस्पति शास्‍त्र, रसायन शास्‍त्र, कला और मानविकी के ज्ञान का कोष भी है। यदि हम लुप्‍त कड़ियों की खोज कर लें और आवश्‍यक बहु-विषयक पद्धत्तियों को विकसित करें, तो संस्‍कृत के ज्ञान में इतनी क्षमता है कि वह वर्तमान समय की ज्ञान प्रणालियों और भारतीय भाषाओं को बहुत अधिक समृद्ध कर सकती है।

संस्‍कृत भाषा उन मूल्‍यों और आदर्शों का भी स्रोत रही हैं, जिसने हजारों वर्षों से भारत के अस्तित्व को कायम रखा है। भारत की महान सभ्‍यता की तरह संस्‍कृत किसी जाति वर्ग या धर्म से संबंधित नहीं है। यह एक ऐसी संस्‍कृति का प्रतीक है, जो संकीर्ण और भेदभावपूर्ण नहीं है और खुली, सहिष्‍णु तथा सर्व-समावेशी है। स्‍वतंत्र चिंतन करने वाले ऋषि-मु‍नि और विचारक, जिन्‍होंने वेदों और उपनिषदों में अपनी दूर-दृष्टि और दर्शन की व्‍याख्‍या की, वे अपने जीवन और दर्शन के प्रतिकूल पक्षों में भी संतुलन कर सकते थे। उदारवाद और सहिष्‍णुता की यही भावना है, जो संस्‍कृत में निहित है और जिसे हमें अपने आज के जीवन में अपनाना चाहिए। भारत के प्राचीन ऋषियों-मुनियों का वसुधैव कुटुम्‍बकम् अर्थात विश्‍व एक परिवार है, का संदेश आज के विश्‍व के लिए भी बहुत महत्‍वपूर्ण है।

कई आधुनिक भारतीय भाषाएं अपने शब्‍दकोष के लिए संस्‍कृत पर निर्भर करती हैं। भारत सरकार द्वारा स्‍थापित वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्‍दावली आयोग भी भारतीय भाषाओं के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में तकनीकी शब्‍दावली विकसित करने के लिए संस्‍कृत के साधनों पर निर्भर करता है। मैं उम्‍मीद करता हूं कि यह सम्‍मेलन भारतीय भाषाओं की शिक्षा के लिए बेहतर उपकरण, बेहतर अनुवाद सॉफ्टवेयर तथा भारतीय भाषाओं में अन्‍य कम्‍प्‍यूटर कार्यक्रम तैयार करने में सहायक होगा।

– 5 जनवरी 2012 में राजधानी दिल्ली में आयोजित विश्व संस्कृत सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए भाषण के संपादित अंश.

2 Comments

  1. PURN SAHMAT H HUM AAPKE LEKH SE . VARTMAN SAMAI MAI LOG JARA BHI JHUKAV NAHI DE RAHE H YEH YEH SOCHNE KI BAAT H . BACHPAN SE HI YEDI SCHOOL MAI ISKI ANIVARYTA KAR DI JAI TO HI SAHAJ HI KOMAL HRIDAY KA JURNA SURU HO SAKTA H . YEDI ABHI SE DHYAN NAHI DIYA GAYA TO USKO PADHANE WALE SHICHHAK BHI MILNE MUSHKIL HO JAINGE. MOMBATI LEKAR DHUNDANA PAREGA .PATA NAHI PRABHAVI INSHAN KIS KHOJ MAI LAGE H !!! 20 SAAL BAAD BHARAT DESH KA SWARUP KESA HOGA BHAGWAN HI JAANE . JIS TARAH PURE DESH KI NALIYO SE GANDA PANI BAHTAI HUI PAVITRA GANGA NADI MAI SAMATE JA RAHI H JESE KI PASCHIMI KUSABHYTA BAHTI HUI AA RAHI H . AB SAWAL H GANGA NADI KA AUR GANGA PUTRA KA .LAGTA H SAMAI AA GAYA H KICHAR MAI KAMAL KE PHOOL KHILNE KA !!!

  2. Aise news hame daily update karne chahiye aur

    Logo ko sanskrit ki mshanta ka parichaya dena chahiye

    Thank x

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