सरकार ने मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) का फैसला तब तक टाल दिया है, जब तक इससे जुड़े सभी पक्षों में सहमति नहीं बन जाती। सरकार ने बुधवार को सुबह सर्वदलीय बैठक के बाद यह घोषणा की। इसके बाद नौ दिन से हंगामे की शिकार संसद की कार्यवाही सामान्य तरीके से चल पड़ी।
सीपीआई नेता गुरुदास दासगुप्ता ने बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में कहा, “यह रिटेल व्यापार में एफडीआई को लागू करने के फैसले को वापस लेने के बराबर है और हम संसद के काम को आगे बढ़ने देंगे। हम सरकार से भी ज्यादा चाहते हैं कि संसद का काम चलता रहे।”
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने लोकसभा में ऐलान किया कि सरकार एफडीआई पर फैसला तब तक के लिए टाल रही है, जब तक सभी संबद्ध पक्षों के बीच आम सहमति नहीं बन जाती। राज्यसभा में इसी तरह का बयान वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने दिया। मुखर्जी ने कहा कि संबद्ध पक्षों में राजनीतिक दल और राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे, जिन्हें शामिल किए बिना यह फैसला लागू नहीं किया जा सकता। विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने इस घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि सरकार जनता की इच्छा के आगे झुकी है और जनता की इच्छा के आगे झुकना हार नहीं है।
हालांकि संसदीय मामलों के राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा है कि सरकार विपक्ष के सामने झुकी नहीं है. उन्होंने कहा, “एक लोकतंत्र में विचार-विमर्श करना जरूरी है। इसलिए सरकार ने विपक्ष को इस बैठक के लिए बुलाया। सारी पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी और वामपंथी दलों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार किया है।”
लेकिन इसे यूपीए सरकार के लिए बड़ी कमजोरी व झटका माना जा रहा है। उद्योग जगत ने इसे पीछे की ओर जाने वाला कदम करार दिया है। उद्योग संगठन फिक्की अध्यक्ष हर्ष मरीवाला ने एक बयान में कहा कि सरकार का मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसदी और सिंगल ब्रांड में 100 फीसदी विदेशी निवेश के फैसले को रोकने का निर्णय पीछे की ओर ले जाने वाला कदम है। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि हमें उम्मीद है कि इस फैसले को वापस नहीं लिया गया है। हमें भरोसा है कि जल्द इस पर सहमति बनेगी। एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि इससे विदेशी निवेशकों को नकारात्मक संदेश जाएगा।