बताते हैं कि रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. दुव्वरि सुब्बाराव ने मुद्रास्फीति के मोर्चे पर ठंडी पड़ी सरकार को झटका देने के लिए ही उम्मीद के विपरीत ब्याज दरों को एकबारगी 0.50 फीसदी बढ़ाया है। पिछले 17 महीनों से थोड़ी-थोड़ी ब्याज वृद्धि का डोज काम न आने से हताश रिजर्व बैंक ने तेज झटका देकर गेंद अब सरकार के पाले में फेंक दी है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी को भी सुब्बाराव का इशारा समझ में आ गया है और उन्होंने कहा कि सरकार जरूर इस बाबत कोई न कोई रास्ता निकालेगी। हालांकि उन्होंने इसका कोई ब्यौरा नहीं दिया।
वित्त मंत्री ने राजधानी दिल्ली में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में उठाए गए कदमों को सहयोग देने के लिए सरकार की तरफ से ‘उचित कदम’ उठाए जाएंगे। असल में रिजर्व बैंक बराबर कहता रहा है कि मौद्रिक नीति का जिम्मा उसका है। लेकिन जब तक सरकार की तरफ से राजकोषीय पहल नहीं की जाती, तब तक मुद्रास्फीति पर काबू नहीं पाया जा सकता। मांग को थामने का काम रिजर्व बैंक कर सकता है। लेकिन सप्लाई बढ़ाने का काम सरकार को करना पड़ेगा क्योंकि कई वस्तुओं की मुद्रास्फीति की वजह आवश्यक सप्लाई का अभाव है।
मंगलवार को भी सुब्बाराव ने महंगाई से लड़ने की दिशा में सरकार की ढिलाई की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि अगर कीमतों पर काबू पाना है तो सप्लाई में आ रही दिक्कतों को दूर करना जरूरी है। रिजर्व बैंक चाहता है कि सरकार नीतिगत उपायों से दूध, दाल, सब्जी व कोयले जैसी महंगी होती चीजों की सप्लाई को बढ़ाने की पहल करे। साथ ही सरकार अपने खर्चों को घटाकर राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाए। चूंकि सरकार ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है, इसलिए सुब्बाराव ने बाजार या उद्योग को नही, बल्कि सरकार को चौंकाने के लिए रेपो दर को एक झटके में बढ़ाकर 8 फीसदी कर दिया है।
हालांकि वित्त मंत्री ने रिजर्व बैंक के रुख की हल्की-सी आलोचना करते हुए बुधवार को कहा, “मुझे नहीं लगता है कि हम किसी अंधी सुरंग में जा पहुंचे हैं।” लेकिन हकीकत यही है कि मार्च 2010 के बाद से 11 बार ब्याज दरें बढ़ा देने के बावजूद मुद्रास्फीति पर काबू नहीं पाया जा सका है। मई 2011 में यह 9.06 फीसदी थी तो जून 2011 में बढ़कर 9.44 फीसदी हो गई। विश्लेषकों का भी कहना है कि सरकार की ढीली राजकोषीय नीति महंगाई के बढ़ते दबाव के लिए जिम्मेदार है। कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और कृषि सुधारों ने भी महंगाई को बढ़ाने का काम किया है। इन कामों को सरकार ही कर सकती है। इसमें रिजर्व बैंक का कोई योगदान नहीं है।
अर्थशास्त्रियों के मुताबिक सरकार को अपनी राजकोषीय स्थिति संभालने की जरूरत है। एक तो इधर खाद्य से लेकर तेल सब्सिडी का बोझ बढ़ गया है। दूसरे, औद्योगिक रफ्तार में सुस्ती से उसका कर-राजस्व घट जाएगा। ऐसे में अंदेशा इस बात का है कि चालू वित्त वर्ष 2011-12 के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.6 फीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा। यह असल में 5 फीसदी से ऊपर जा सकता है।
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा कि राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के भीतर रखने के लिए अपने खर्च घटाएगी। इसके साथ राजस्व संग्रह के बढ़ने से हम लक्ष्य को हासिल करने में कामयाब रहेंगे। हालांकि वित्त मंत्री ने यह नहीं साफ किया है कि सरकारी खर्चों को कैसे और कहां से घटाया जाएगा। वैसे, केंद्र सरकार ने इसी महीने फाइव स्टार होटलों में बैठक न करने और मंत्रियों व सरकार अफसरों की विदेश यात्राओं पर बंदिश लगाने जैसे कदम उठाए हैं।