यूं तो यह जमाना ही अपने मुंह मियां मिठ्ठू बनने का है। लेकिन यहां मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा। बल्कि, यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि कैसे सहज बुद्धि से अच्छी कंपनियों का चयन किया जा सकता है और उनमें निवेश से फायदा कमाया जा सकता है। केवल दो उदाहरण देना चाहता हूं। एक, पेट्रोनेट एलएनजी का और दूसरा, ईसाब इंडिया का।
पेट्रोनेट एलएनजी के बारे में हमने पहली बार चौदह महीने पहले 24 मई 2010 को इसी कॉलम में लिखा था। कंपनी की मूलभूत मजबूती को देखते हुए इसमें निवेश की सलाह दी थी, एकदम सहज बुद्धि और सहजता से उपलब्ध अतीत व वर्तमान की जानकारियों के आधार पर। कहीं से कान में बताने की कोई खबर नहीं थी। किसी टेक्निकल एनालिस्ट का कोई ज्ञान नहीं था। किसी ब्रोकर की कोई टिप नहीं थी। लिखने के एक दिन पहले पेट्रोनेट एलएनजी का शेयर 83.25 रुपए था। कल शुक्रवार, 22 जुलाई 2011 को यह 179.65 रुपए पर नया शिखर बनाने के बाद 174 रुपए पर बंद हुआ है।
चौदह महीनों में 109 फीसदी का फायदा। रकम हो गई दोगुनी। सहज ज्ञान से। किसी के मल्टीबैगर के हल्ले में पड़ने की जरूरत नहीं है। बस, स्टॉक एक्सचेंजों की साइट पर कंपनी के बारे में उपलब्ध जानकारी को परखा। कंपनी की वेबसाइट पर जाकर उसके इतिहास-भूगोल और भावी योजनाओं पर गौर किया। लगा कि कंपनी का धंधा अच्छा जाएगा तो कर लिया निवेश का फैसला। अर्थकाम इसमें आपकी मदद इसलिए कर रहा है ताकि आप निवेश की सहज बुद्धि हासिल कर सकें। निवेश कोई रॉकेट-साइंस नहीं है। बहुत सीधी-सरल चीज है। बस, ऐसा करते वक्त आंख, कान, नाक अच्छी तरह खोलकर रखने की जरूरत है।
ब्रोकर बोले या कोई भी कहे कि फलांना शेयर बढ़ जाएगा तो सबसे पहले उससे पूछें कि क्यों बढ़ जाएगा? कोई पुख्ता खबर है? या, टेक्निकल चार्ट के आधार पर आप बढ़ने की बात कर रहे हैं? फिर आप खुद कंपनी के मूलभूत पहलुओं को ठोंक बजाकर देखें। तभी निवेश का फैसला करें। ध्यान रखें। सहज बुद्धि से निवेश फलता है। लेकिन सहज विश्वास का फायदा उठाकर लोग आपकी बचत पर हाथ साफ कर सकते हैं।
सहज बुद्धि के निवेश के फलने का दूसरा उदाहरण है ईसाब इंडिया का, जो ज्यादा नहीं, करीब पांच महीने पुराना है। ईसाब इंडिया में जब हमने 16 फरवरी 2011 को निवेश की सलाह दी थी, तब एक दिन पहले यानी 15 फरवरी को उसका भाव 480.30 रुपए था। कल 22 जुलाई को 558 रुपए पर बंद हुआ है। पांच महीने में 16.18 फीसदी का रिटर्न। इसमें 15 रुपए का ताजा-ताजा अंतरिम लाभांश जोड़ दें तो रिटर्न कुल 19.03 फीसदी हो जाता है। सूत्र यहां भी वही। सहज बुद्धि। शेयर 52 हफ्ते के न्यूनतम स्तर पर पहुंचा था। लेकिन उपलब्ध जानकारियों को देखा तो पता चला कि कंपनी मजबूत है। बस, बता डाला आपको। न किसी ब्रोकर की टिप, न किसी गुरु का टेक्निकल फंडा।
यह काम आप भी खुद कर सकते हैं। एक बात ध्यान रखें कि शेयर बाजार कोई हौवा नहीं है, न ही जुआ या लॉटरी खेलने की जगह। यह देश की अर्थव्यवस्था के बढ़ने के साथ बढ़ रही कॉरपोरेट जगत की समृद्धि में हिस्सेदारी का वैध व लोकतांत्रिक तरीका है। लेकिन सरकारी ढील, चालबाजों की धूर्तता और अपनी खुद की लालच ने हमें इतना जलाया है कि हम निवेश पर सर्वाधिक फायदा करानेवाले इस माध्यम से ही डरने लगे हैं। यही वजह है कि देश की आबादी 121 करोड़ हो गई है, जबकि देश में उपलब्ध डीमैट खातों की संख्या महज 1.92 करोड़ है। बहुत नाइंसाफी है यह! इसे तो 12.1 करोड़ होना ही चाहिए!!! खैर, ज्ञान के चंद अक्षत और…
- अगर हम किसी चीज को नहीं जानते तो यह हमारी अपनी सीमा है। लेकिन हर चीज को कोई न कोई तो जानता ही है और इनमें से हर अच्छी चीज वाजिब भाव भी मिलता है। कंपनियां हमारी आंखों से ओझल रहकर काम करती रहती हैं। हम अनजान रहने के कारण उनकी विकास यात्रा का फल नहीं चख पाते। लेकिन हमारे जानने या न जानने से उनकी विकास यात्रा पर कोई फर्क नहीं पड़ता। वह यात्रा सतत जारी रहती है।
- बहुत मुमकिन है कि आपने गांवों में कुंओं पर चलनेवाली रहट नहीं देखी होगी। मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे-मोती जैसे पुराने गानों में देख सकते हैं। एक चक्र में चलती है रहट। खाली कूप नीचे जाता है और पानी भरकर ऊपर आ जाता है। नीचे जाकर मूल्यवान बनने का ऐसा ही चक्र हमारे शेयर बाजार में भी चलता है। हां, यहां रहट एक जगह टिकी नहीं रहती, बल्कि वह भी कंपनी का मूल्य बढ़ने के साथ-साथ ऊपर उठती रहती है।
- यूं ही बिना किसी बात पर कोई शेयर खाक नहीं होता। ऐसा तभी होता है जब लोग उसे बेचने पर उतारू हो जाएं। और, कोई यूं ही किसी शेयर को बेचने पर उतारू नहीं होता। उसके पीछे कुछ न कुछ ज्ञात-अज्ञात कारण, कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होता है। खासकर ऐसा जब किसी स्मॉल कैप कंपनी के साथ हो तो इन स्वार्थों की शिनाख्त जरूरी हो जाती है।