स्टॉक एक्सचेंजों की 51% हिस्सेदारी पब्लिक की, ब्रोकर नहीं होंगे बोर्ड में

पूंजी बाजार नियामक संस्था, सेबी ने स्टॉक एक्सचेंजों से लेकर क्लियरिंग कॉरपोरेशन और डिपॉजिटरी तक के स्वामित्व व स्वरूप पर अपनी अंतिम नीति जारी कर दी है। सेबी के बोर्ड ने सोमवार को अपनी बैठक में बिमल जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर नीतिगत फैसले लिए हैं। तय हुआ है कि किसी भी स्टॉक एक्सचेंज की 51 फीसदी इक्विटी हिस्सेदारी पब्लिक के पास होगी। कोई भी स्टॉक एक्सचेंज अपने यहां खुद को लिस्ट नहीं करा सकता। और, स्टॉक एक्सचेंज के निदेशक बोर्ड में कोई भी ट्रेडर सदस्य शामिल नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों में कोई भी ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज के बोर्ड का सदस्य नहीं बन सकता।

अभी नियम है कि स्टॉक एक्सचेंज में किसी भी निवेशक के पास 5 फीसदी से ज्यादा इक्विटी नहीं हो सकती, जबकि खुद स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉजिटरी व क्लियरिंग कॉरपोरेशन उसमें सामूहिक रूप से 15 फीसदी स्वामित्व रख सकते हैं। ट्रेडिंग सदस्य या ब्रोकर 49 फीसदी हिस्सेदारी रख सकते हैं। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा 26 फीसदी और एफआईआई निवेश की सीमा 23 फीसदी है। नए नियम के मुताबिक किसी भी एक निवेशक की इक्विटी भागीदारी 5 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती। लेकिन स्टॉक एक्सचेंज, क्लियरिंग कॉरपोरेशन, बैंकिंग कंपनी या सार्वजनिक वित्तीय संस्थान 15 फीसदी तक इक्विटी रख सकते हैं। इसका सीधा-सीधा फायदा इक्विटी ट्रेडिंग के लिए प्रयासरत एमसीएक्स-एसएक्स को मिल सकता है।

स्टॉक एक्सचेंज की न्यूनतम नेटवर्थ 100 करोड़ रुपए होनी चाहिए। वहीं क्लियरिंग कॉरपोरेशन की न्यूनतम नेटवर्थ 300 करोड़ और डिपॉजिटरी की न्यूनतम नेटवर्थ 100 करोड़ रुपए होनी चाहिए। मौजूदा संस्थाओं को न्यूनतम नेटवर्थ की शर्त पूरी करने के लिए तीन साल का वक्त दिया जाएगा। वक्त की गिनती सेबी के नए फैसलों की अधिसूचना जारी होने की तारीख से की जाएगी। सेबी ने यह भी तक किया है कि क्लियरिंग कॉरपोरेशन की कम से कम 51 फीसदी हिस्सेदारी स्टॉक एक्सचेंजों के पास होनी चाहिए। लेकिन क्लियरिंग कॉरपोरेशन में किसी एक एक्सचेंज की हिस्सेदारी 51 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती।

सेबी ने तय किया है कि स्टॉक एक्सचेंज के निदेशक बोर्ड के आधे निदेशक जनहित का प्रतिनिधित्व करनेवाले होंगे। वहीं क्लियरिंग कॉरपोरेशन में ऐसे सदस्यों की संख्या निदेशक बोर्ड में दो-तिहाई होगी। लेकिन बड़े अचंभे की बात है कि स्टॉक एक्सचेंजों के बोर्ड में कोई भी ट्रेडिंग सदस्य या ब्रोकर निदेशक नहीं बन सकता। दूसरे शब्दों में ब्रोकरों का कोई प्रतिनिधि स्टॉक एक्सचेंज के निदेशक बोर्ड में नहीं होगा। हां, उनके अनुभव का फायदा उठाने के लिए एक्सचेंज एक सलाहकार समिति बनाएंगे जिसमें ट्रेडिंग सदस्य/क्लियरिंग सदस्य शामिल होंगे। इस सलाहकार समिति की सभी सिफारिशें निदेशक बोर्ड की आनेवाली बैठक में रखी जाएंगी।

बता दें कि सेबी के पूर्व चेयरमैन सी बी भावे ने शेयर बाजार के इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित संस्थाओं (एमआईआई) के स्वामित्व व स्वरूप का निर्धारण करने के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में एक समिति फरवरी 2010 में बनाई थी, जिसने अपनी रिपोर्ट नवंबर 2010 में सौंप दी थी। समिति ने कहा था कि स्टॉक एक्सचेंजों का लाभ सरकारी बांडों की ब्याज दर से थोड़ा ही ज्यादा होना चाहिए। अब सेबी के बोर्ड ने तय किया है कि स्टॉक एक्सचेंजों को अपने लाभ का 25 फीसदी हिस्सा क्लियरिंग कॉरपोरेशन के सेटलमेंट गारंटी फंड (एसजीएफ) में डाल देना होगा। वहीं डिपॉजिटरी को अपने लाभ का 25 फीसदी हिस्सा निवेशक संरक्षण कोष (आईपीएफ) में डालना होगा। सेबी बोर्ड ने सोमवार को वैकल्पिक निवेश फंडों (एएनएफ) के नियमन पर दिशानिर्देश जारी किए।

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