दूध, फल और दालों की कीमते बढ़ने से खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति की दर 27 मार्च को खत्म हुए हफ्ते में 17.70 फीसदी हो गई, जबकि इससे पिछले हफ्ते में यह 16.35 फीसदी थी। इस आधार पर कहा जा रहा है कि रिजर्व बैंक 20 अप्रैल को घोषित की जानेवाली सालाना मौद्रिक नीति में ब्याज दरें बढ़ा सकता है। लेकिन सिस्टम में लिक्विडिटी की अधिकता को देखते हुए इसकी संभावना कम ही लगती है।
असल में बैंकों के पास तरलता या लिक्विडिटी कितनी अधिक है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे पिछले कई दिनों से भारी-भरकम रकम रिजर्व बैंक की चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएफ) के तहत रिवर्स रेपो में जमा करा रहे हैं। रिवर्स रेपो में बैंक रिजर्व बैंक के पास अपनी रकम जमाकर सरकारी प्रतिभूतियां खरीदते हैं। यह निवेश एक या दो-तीन दिन का ही होता है। लेकिन इससे पता चलता है कि हर दिन शाम को उनके पास कितनी नकदी बची रह जाती है। यह मात्रा सिस्टम में लिक्विडिटी का संकेतक होती है।
8 अप्रैल को बैंकों ने रिजर्व बैंक के पास रिवर्स रेपो में 1,18,665 करोड़ रुपए जमा कराए हैं। इससे एक दिन पहले 7 अप्रैल को उन्होंने इस खिड़की में 1,19,655 करोड़ रुपए जमा कराए थे। इससे पहले 6 अप्रैल को यह राशि 96,160 करोड़ रुपए और 5 अप्रैल को को 49,145 करोड़ थी। जाहिर-सी बात है कि जब बैंकों के पास इफरात पैसे पड़े हुए हैं तो उसे और महंगा कर रिजर्व बैंक आर्थिक गति को धीमा करने का जोखिम नहीं उठाएगा। वैसे भी, खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति की मूल वजह सिस्टम में नोटों की अधिकता या मुद्रा की सस्ती उपलब्धता नहीं, बल्कि सप्लाई का कम होना है। रबी की फसल आने से इसमें सुधार होगा। यह मुद्रास्फीति सीजनल है और इसे ब्याज दरें बढ़ाकर रोकना मुमकिन नहीं है।