केंद्र सरकार नए वित्त वर्ष में बाजार से लिए जानेवाले उधार का बड़ा हिस्सा सितंबर 2010 तक जुटा लेगी। रिजर्व बैंक द्वारा घोषित कैलेंडर के मुताबिक पहली छमाही में 2.87 लाख करोड़ रुपए के सरकारी बांड जारी किए जाएंगे। बता दें कि इन बांडों में वैसे तो आम निवेशक भी पैसा लगा सकते हैं। लेकिन अभी तक तकरीबन सारा निवेश बैंक, बीमा कंपनियां या म्यूचुअल फंड व कॉरपोरेट इकाइयां ही करती रही है।
रिजर्व बैंक की तरफ से दी गई सूचना के मुताबिक अप्रैल में 49,000 करोड़, मई में 52,000 करोड़, जून में 50,000 करोड़, जुलाई में 53,000 करोड़, अगस्त में 49,000 करोड़ और सितंबर में 34,000 करोड़ रुपए के सरकारी बांडों की नीलामी की जाएगी। इन बांडों की परिपक्वता अवधि पांच से लेकर 20 सालों की होगी और इनमें पहले से तय ब्याज दर के साथ ही फ्लोटिंग ब्याज दर वाले बांड भी होंगे।
बता दें कि नए वित्त वर्ष में सरकार का लक्ष्य बाजार से कुल 4.57 लाख करोड़ रुपए का उधार जुटाने का है। इसमें से पुराने बांडों के विमोचन वगैरह के बाद सरकार की शुद्ध बाजार उधारी 3.45 लाख करोड़ रुपए की बनती है। वित्त वर्ष 2009-10 में सरकार की कुल बाजार उधारी 4.51 लाख करोड़ और शुद्ध बाजार उधारी 3.98 लाख करोड़ रुपए की रही है। सरकार का कहना है कि वह अपने बाजार उधार का करीब 63 फीसदी हिस्सा पहली छमाही में इसलिए जुटा लेना चाहती है ताकि निजी क्षेत्र के लिए बाजार में ऋण संसाधनों की तंगी न हो सके। इस साल भी सरकार की कमोबेश यही रणनीति रही थी। वैसे भी, कंपनियों के लिए कर्ज की बड़ी मांग का सिलसिला अक्टूबर के बाद बिजी सीजन से शुरू होता है।
सरकार की घोषणा और रिजर्व बैंक की विज्ञप्ति के बाद बांड बाजार से थोड़ी राहत की सांस ली है और दस साल के सरकारी बांडों पर यील्ड की दर 7.85 फीसदी से घटकर 7.76 फीसदी हो गई। यील्ड के घटने का मतलब बांड के दाम का बढ़ना होता है। पहले धारणा यह थी कि बांड की सप्लाई अधिक रहेगी तो उनके दाम घट रहे थे और नतीजतन यील्ड बढ़ रही थी। अब धारणा सुधरी है और लग रहा है कि बांड की सप्लाई ज्यादा नहीं होगी तो बांड के दाम बढ़ गए और उन पर उसी अनुपात में यील्ड घट गई।