बोलो-बोलो, भेद तो खोलो

बात मन में रखने के कुछ नहीं होगा। कहना जरूरी है। नहीं तो सामनेवाला अपनी दुनिया में मस्त रहेगा और हम अपनी दुनिया में। उसकी तर्क पद्धति व संस्कार भिन्न हैं। वह हमारी बात अपने-आप नहीं समझ सकता।

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