इस बार के बजट में कर प्रस्तावों को पेश करते वक्त वित्त मंत्री प्रणब ने कौटिल्य का एक वाक्य उद्धृत किया था कि एक बुद्धिमान महा-समाहर्ता राजस्व संग्रह का काम इस प्रकार करेगा कि उत्पादन और उपभोग पर नुकसानदेह असर न पड़े… वित्तीय समृद्धि दूसरी बातों के साथ लोक समृद्धि, प्रचुर पैदावार और व्यवसाय की समृद्धि पर निर्भर करती है।
लेकिन इसके अलावा कौटिल्य या चाणक्य ने कर संग्रह के बारे में एक और दिलचस्प बात कही है। वह यह कि महा-समाहर्ता को राजस्व संग्रह में बादलों की तरह होना चाहिए। बादल जहां से पानी लेते हैं, उसे समुद्र के अलावा बाकी धरती पर बरसाते हैं, जहां से पानी बहता-बहता दोबारा समुद्र तक पहुंच जाता है। इसी तरह शासक को संपन्न लोगों से राजस्व लेकर उसे आम जन पर व्यय करना चाहिए, जहां से वह फिर से अपने उद्गम समूहों तक पहुंच जाता है।
हमें सोचना चाहिए कि क्या वित्त मंत्री ने कौटिल्य के इस लोक कल्याणकारी सिद्धांत पर अमल किया है?