देश की अदालतों में इस समय चेक बाउंस के 38 लाख से ज्यादा मामले दाखिल हैं। इनसे आजिज आकर अब सुप्रीम कोर्ट ने आउट-ऑफ-कोर्ट निपटारे के लिए दिशानिर्देश बना दिए हैं। चेक बाउंस को 1989 में दंडनीय अपराध माना गया और 2002 से इसमें समरी ट्रायल का प्रावधान किया गया। अब तय हुआ है कि अगर जिसका चेक बाउंस हुआ है, वह निचली अदालत के फैसले को चुनौती देता है तो उस पर दंड की रकम बढ़ती जाएगी। वह ट्रायल कोर्ट से डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में गया तो उसे चेक की मूल रकम का 10 फीसदी, हाईकोर्ट में गया तो 15 फीसदी और सुप्रीम कोर्ट में गया तो 20 फीसदी हिस्सा दंड के बतौर देना पड़ेगा। इतना दंड न देने पर उसे जेल जाना पड़ेगा।
2010-05-04