लालच बहुत लगता है कि जब किसी कंपनी का 10 रुपए का शेयर 8.60 रुपए में मिल रहा हो और यह उसका 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर भी हो। दिल्ली के नारायणा इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1 की कंपनी ब्रशमैन (इंडिया) लिमिटेड यही लालच फेंक रही है। यह कंपनी किसी की भी नजर में चढ़ सकती है क्योंकि वह देश में पेंट ब्रश बनानेवाली प्रमुख कंपनी है। अपनी श्रेणी में देश की इकलौती लिस्टेड कंपनी है। उसके पास 2200 वितरकों और 1000 सब-डीलरों का नेटवर्क है। इस नेटवर्क का फायदा उठाने के लिए उसने कुछ विदेशी कंपनियों से गठजोड़ किया है और धीरे-धीरे उनके हेयरकेयर, ब्यूटी, कॉस्मेटिक व लाइफस्टाइल उत्पाद भारत, श्रीलंका व नेपाल में बेचने लगी। हेयर सैलूनों तक उसकी खास पहुंच है। उसके विदेशी सहयोगियों में दो प्रमुख नाम हैं – ब्रिटेन की कंपनी डेनमैन इंटरनेशनल और हॉलैंड की कंपनी क्यूने हेयर कॉस्मेटिक्स।
कंपनी के दावे उसके काम से भी बहुत-बहुत बड़े हैं। लेकिन हकीकत जानने की कोशिश करने पर कुछ नहीं, काफी कुछ गड़बड़ लगने लगता है। बीएसई की वेबसाइट से पता चलता है कि इस कंपनी के प्रबंध निदेशक कोई कपिल कुमार नाम के शख्स हैं। कंपनी ने वित्त वर्ष 2008-09 में 62.99 करोड़ रुपए के धंधे के बावजूद 19.86 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा उठाया था। दिसंबर 2009 की तिमाही में उसकी आय 7.83 करोड़ रुपए रही है, जबकि घाटा 2.75 करोड़ रुपए का है। इस दौरान उसका परिचालन लाभ मार्जिन (-) 13.49 फीसदी से सुधरकर (+) 9.21 फीसदी हो गया। लेकिन शुद्ध लाभ मार्जिन की हालत पहले से बिगड़ गई है। बैंकों से लिए गए कंपनी के बहुत सारे कर्ज एनपीए बन चुके हैं।
बाजार में जोरदार चर्चा है कि किसी के पास इस कंपनी के 46 लाख शेयर हैं जो इन्हें निकाल रहा है। इसी अप्रैल माह में 9 से 15 तारीख के बीच कंपनी के करीब 4.85 शेयर बल्क डील में बेचे गए हैं। बल्क खरीद का इकलौता सौदा 75,000 शेयरों का 15 अप्रैल को हुआ है। कहा जा रहा है जब यह थोक निवेशक अपने शेयर निकाल लेगा तो इसके बढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। मजे की बात है कि कंपनी के कुल जारी शेयरों की संख्या एक करोड़ 47 लाख 60 हजार है। इस तरह इस थोक निवेशक के पास कंपनी के 30 फीसदी से ज्यादा शेयर हैं। यह प्रवर्तक में नहीं शामिल है क्योंकि वे तो पहले ही साल भर में कंपनी में अपना हिस्सा 20.38 फीसदी से घटाकर 5.09 फीसदी कर चुके हैं।
कंपनी के 23.24 फीसदी शेयर कस्टोडियन के पास पड़े हैं। बाकी 71.67 फीसदी शेयर पब्लिक के पास हैं। एक और तथ्य जानने योग्य है कि सितंबर 2009 से दिसंबर 2009 के बीच कंपनी में एफआईआई (विदेशी संस्थागत निवेशकों) ने अपनी हिस्सेदारी 2.24 फीसदी से बढ़ाकर 5.49 फीसदी कर दी है। इन सारी बातों को देखकर लगता है कि कंपनी में कुछ लोचा चल रहा है। दिक्कत यह भी है कि कंपनी ने अपनी वेबसाइट से प्रवर्तकों व निदेशकों से लेकर वित्तीय नतीजों तक की जानकारी हटा दी है। जान लें कि जब भी कोई कंपनी या व्यक्ति मुंह चुराता है, जानकारी छिपाता है तो यकीकन कोशिश किसी बड़ी गड़बड़ी की परदादारी की होती है।
हालांकि कुछ लोग बताते हैं कि कंपनी के पास 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की एसेट है। लेकिन मुझे लगता है कि जहां पारदर्शिता ही न हो, उस घर में झांकने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। वैसे, कुछ लोग होते हैं जो कचरे के पहाड़ पर भी दांव लगा देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस कचरे के ढेर में कुछ टन रेडियम निकलेगा जिसकी कीमत अकूल होगी। तो, ब्रशमैन पर निगाह रखिए। देखिए, समझिए। बाकी आपकी मर्जी। लालच में नहीं, ठोंक बजाकर, जोखिम को समझते हुए फैसला कीजिए। शायद यह शेयर एकाध साल में मुनाफा करा दें। या हो सकता है पूंजी ही डुबो दे।