बैंकों ने जमकर चलाया कर्ज देकर जमा लेने का चक्कर

देश के अनुसूचित वाणिज्यक बैंकों ने बीते वित्त वर्ष 2009-10 के आखिरी पखवाड़े में 1,15,549 करोड़ रुपए का ज्यादा कर्ज दिया है। यह पूरे वित्त वर्ष में बैंक कर्ज में हुई कुल 4,64,850 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी का 24.85 फीसदी है। रिजर्व बैंक की तरफ से बुधवार को जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक 26 मार्च 2010 को बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज की मात्रा 32,40,399 करोड़ रुपए है, जबकि 12 मार्च 2010 को खत्म हुए पखवाड़े में उनके कर्ज की रकम 31,24,850 करोड़ रुपए थी। इस तरह साल के आखिरी पखवाड़े में बैंक कर्ज 1,15,549 करोड़ रुपए बढ़ा है, जबकि ठीक इससे पिछले पखवाड़े में उनका कर्ज केवल 35,527 करोड़ रुपए ही बढ़ा था।

दिलचस्प बात यह है कि आखिरी पखवाड़े में बैंकों की कुल जमा में 83,631 करोड़ रुपए की शानदार वृद्धि हुई है, जबकि 12 मार्च 2010 के पखवाड़े में यह वृद्धि 39,613 करोड़ रुपए ही थी। एक सरकारी बैंक के कार्यकारी निदेशक ने अपना नाम न जाहिर करते हुए बताया कि बैंक वित्त वर्ष के अंत में कर्ज व जमा के आंकड़ों को बढ़ाने के लिए यही धंधा करते रहे हैं। पहले वे अपने ऋण खाते को फुलाने के लिए भारी-भरकम कर्ज देते हैं। फिर इसी कर्ज का बड़ा हिस्सा डिपॉजिट के रूप में वापस ले लेते हैं। इसमें खेल यह है कि कर्ज की ब्याज दर डिपॉजिट पर मिलनेवाली ब्याज दर से कम होती है। इस तरह बैंकों के ऐसे खास ‘ग्राहकों’ को बैंक के ही पैसे लेकर वापस उन्हें लौटने के खेल में ब्याज दर के अंतर के चलते अच्छी-खासी कमाई हो जाती है।

बैंक अधिकारी ने बताया कि यह बहुत पुराना चलन है और सरकारी बैंकों में ऐसा जमकर होता है। इससे बैंकों को दोहरा लाभ यह मिलता है कि एक तो उनकी लोन-बुक चमाचम हो जाती है, दूसरे डिपॉजिट खाते भी लबालब नजर आते हैं। उनका कहना था कि रिजर्व बैंक भी इस हकीकत से वाकिफ है। लेकिन उसका अंदाज यही रहता है कि सब चलता है।

गौरतलब है कि साल भर पहले 27 मार्च 2009 को बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज की राशि 27,75,549 करोड़ रुपए थी। 12 मार्च 2010 तक यह 3,49,301 करोड़ रुपए की बढ़त के साथ 31,24,850 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। लेकिन अगले ही पखवाड़े में यह रकम 3.7 फीसदी बढ़कर 32,40,399 करोड़ रुपए हो गई। इसके दम पर बैंकों ने अपने कर्ज में वित्त वर्ष के दौरान 16.75 फीसदी वृद्धि हासिल कर ली, जबकि बैंक कर्ज में वृद्धि के लिए रिजर्व बैंक का संशोधित लक्ष्य 16 फीसदी का है।

इस तरह इस कसरत से लक्ष्य के आंकड़े हासिल कर लिए। लेकिन जरूरत बीतते ही बैंकों के कर्ज देने की रफ्तार फिर एकदम सुस्त पड़ गई है। मार्च महीने में 15 तारीख के बाद रिजर्व बैंक के पास रिवर्स रेपो में वे महज चंद हजार रुपए जमा कराते रहे थे। जैसे 15 मार्च को यह रकम 4230 करोड़ रुपए तो 29 मार्च को महज 445 करोड़ रुपए थी। इस दरमियान उन्होंने कई दिन चलनिधि समायोजन सुविधा (एलएएफ) के तहत रिजर्व बैंक से रेपो के तहत महीनों बाद दो-चार दिन रकम भी उधार ली। लेकिन अब बैताल फिर पुरानी डाल पर लौट आया है। नया वित्त वर्ष शुरू होते ही उन्होंने रिवर्स रेपो में पहले की तरह भारी-भरकम राशि डालनी शुरू कर दी है। 5 अप्रैल को यह राशि 49,145 करोड़, 6 अप्रैल को 96,160 करोड़ और 7 अप्रैल को 1,19,655 करोड़ रुपए पर पहुंच गई। यानी, एक बार बैंकों के पास कर्ज लेनेवाले नहीं आ रहे हैं और उनके पास लिक्विटी या तरलता की अधिकता हो गई है। ऐसे में लगता नहीं कि रिजर्व बैंक 20 अप्रैल, 2010 को घोषित की जानेवाली मौद्रिक नीति में ब्याज दरों से कोई छेड़छाड़ करेगा।

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