तीन नई प्रतिभूतियां ब्याज दर वायदा में

सरकार इस बात से चिंतित है कि देश में ब्याज दर वायदा (इंटरेस्ट रेट फ्यूचर्स या आईआरएफ) का कारोबार ठंडा पड़ता जा रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने सालाना मौद्रिक नीति में प्रस्ताव रखा है कि अब आईआरएफ में 5 साल व दो साल की सरकारी प्रतिभूतियों के साथ ही 91 दिवसीय ट्रेजरी बिलों पर भी आधारित कांट्रैक्ट शुरू किए जाएं। अभी तक केवल दस साल के सरकारी बांड पर आधारित कांट्रैक्ट ही बाजार में उपलब्ध है। इन सौदों में बैंकों से लेकर अनिवासी भारतीय और एफआईआई (विदेशी संस्थागत समेत वे सभी कारोबारी भाग ले सकते हैं जो सेबी के पास करेंसी व इक्वटी डेरिवेटिव सेगमेंट में पंजीकृत हैं। हम-आप जैसे आम भारतीय भी इसमें सौदे कर सकते हैं। जैसे, होम लोन लेनेवाला कोई व्यक्ति ब्याज दर के जोखिम को आईआरएफ सौदों के कम कर सकता है।

नई प्रतिभूतियों पर आधारित आईआरएफ सौदों के स्वरूप का अंतिम रूप देन का काम रिजर्व बैंक और सेबी की तकनीकी सलाहकार समिति को सौंपा गया है। इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर देश में आईआरएफ सौदों की शुरुआत 31 अगस्त 2009 से की गई। मकसद था कि ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम को वित्तीय बाजार से जुड़े लोग इससे कम कर सकते हैं। यह भी कि कर्ज पर ब्याज की फ्लोटिंग रेट से पुराने ग्राहकों पर जो बोझ पड़ता है, उससे निपटने की जिम्मेदारी ग्राहक की नहीं, बैंकों की होगी। माना गया था कि इसमें म्यूचुअल फंडों से लेकर बीमा कंपनियां तक भाग लेंगी। लेकिन हकीकत में बैंकों के अलावा किसी ने भी इसमें खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। फिर, बैंक भी इस मामले में अपनी सक्रियता घटाते गए हैं।

इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शुरुआत के पहले महीने सितंबर 2009 में ब्याज दर वायदा में सौदों की मात्रा 1473 करोड़ रुपए की रही। लेकिन फरवरी 2010 तक घटकर यह मात्र 57 करोड़ रुपए रह गई है। मार्च में तो यह 35 करोड़ के आसपास है। ब्रोकर फर्म एसएमसी कैपिटल के एक अध्ययन के मुताबिक पहले जहां हर दिन 77 करोड़ रुपए के सौदे हुए थे, वहीं अब इनकी मात्रा 2-3 करोड़ रुपए रह गई है। इस समय नेशनल स्टॉक एक्सचेंज और एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज में आईआरएफ में ट्रेडिंग का मंच दे रखा है। एसएमसी कैपिटल के इक्विटी प्रमुख जगन्नाधम तुनगुंटला बताते हैं कि कभी-कभी तो आईआएफ में पूरे दिन में केवल 9 लाख रुपए के सौदे होते है। दूसरी तरफ स्टॉक एक्सचेंजों में इक्विटी के सौदों की रोजाना की औसत मात्रा एक लाख करोड़ रुपए के आसपास है।

ऐसी स्थिति में लग रहा था कि कहीं आईआरएफ का प्रयोग एक बार फिर न दम तोड़ दे। बता दें कि इसे एक बार जून 2003 में भी शुरू किया जा चुका है, लेकिन धीरे-धीरे इसका पूरा बाजार बेजान हो गया। जानकारों के मुताबिक दोबारा की गई शुरुआत का भी हश्र पहले जैसा न हो जाए, इसीलिए आईआरएफ सौदों में तीन नई प्रतिभूतियां जोड़ने का फैसला किया गया है। अभी दस साल के जिन सरकारी बांडों को सौदों का आधार बनाया गया है, उसमें ब्याज की दर सालाना 7 फीसदी होती है। इसमें फिजिकल सेटलमेंट होते हैं। कुछ लोग मांग कर रहे हैं कि कैश सेटलमेंट का न होना ही इस बाजार के ठहराव का मुख्य कारण है।

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में सराकारी प्रतिभूतियों के बारे में एक और अहम जानकारी दी गई है कि इसी 1 अप्रैल 2010 में सरकारी बांडों के मूलधन व ब्याज के हिस्से की अलग-अलग ट्रेडिंग शुरू कर दी गई है। यह सौदे रिजर्व बैंक के नेगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम (एनडीएस) के जरिए होते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *