पॉस्को को पर्यावरण मंत्रालय की हरी झंडी

पर्यावरण मंत्रालय ने सोमवार को लंबे समय से लटकी चली आ रही पॉस्को की स्टील परियोजना को सशर्त मंजूरी दे दी। यह परियोजना उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में लगाई जानी है। इसकी प्रस्तावित सालाना क्षमता 120 लाख टन है। पॉस्को दक्षिण कोरिया की कंपनी है और उसका प्रस्ताव इस स्टील परियोजना में 52,000 करोड़ रुपए का निवेश करना है। यह देश में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) होगा।

परियोजना के लिए कुल 1621 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है, जिसमें से 1253 हेक्टेयर वनभूमि है। पूरा इलाका आदिवासी बहुल है। इसलिए वे लोग अपनी रोजीरोटी छिनने के डर से पॉस्को की परियोजना का विरोध करते आए हैं। साथ ही तमाम एनजीओ इस परियोजना से पर्यावरण में होनेवाले अंसतुलन का मुद्दा उठाते रहे हैं। विरोध और मंजूरी के बीच तालमेल बिठाते हुए पर्यावरण मंत्रालय ने कहा है, “पॉस्को जैसी परियोजनाएं निस्संदेह रूप से देश के लिए व्यापक आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक महत्व रखती हैं। लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण व जंगल से जुड़े कानूनों पर गंभीरता से अमल करना होगा।”

मंत्रालय ने पॉस्को को दी गई मंजूरी के साथ कई शर्तें भी जोड़ी हैं। जैसे, उसे नाजुक समुद्रतटीय स्थिति और वन्यजीवों की सुरक्षा करनी होगी। लेकिन विश्लेषकों को कहना है कि पॉस्को के सामने इस तरह की शर्तें कोई बड़ी समस्या नहीं पेश करेंगी। वैसे, इससे पहले सरकार की ही एक समिति कह चुकी है कि पॉस्को की परियोजना से पर्यावरण संबंधी कोई समस्या पेश नहीं आएगी।

केंद्र की ताजा मंजूरी के बाद उड़ीसा सरकार पॉस्को के लिए फौरन जमीन का अधिग्रहण शुरू कर सकती है। दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल से जारी एक बयान में पॉस्को के प्रवक्ता ने कहा है, “इस फैसले से हमें अपनी रुकी हुई परियोजना को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी और हम दूसरी चीजों के साथ ही जमीन का अधिग्रहण फिर से शुरू कर सकेंगे।” वैसे, पॉस्को को अभी एक स्थानीय फर्म द्वारा इस परियोजना के संबंध में उड़ीसा सरकार के खिलाफ दाखिल मुकदमे से भी निपटना है। बता दें कि पॉस्को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी स्टील निर्माता कंपनी है।

कहा जा रहा है कि पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को पॉस्को की पक्षधर लॉबी के दबाव के आगे झुकना पड़ा है। उनके अपने ही साथी कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और कृषि मंत्री शरद पवार उनके तमाम कदमों का विरोध करते आए हैं। इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी भी देश में घटते एफडीआई पर चिंता जता चुके हैं। बस, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही हैं जो बड़ी परियोजनाओं से विस्थापित होनेवाले किसानों व आदिवासियों के वोट बैंक को पकड़ने के लिए चिंता जताती रही हैं क्योंकि 2014 में देश में आम चुनाव होने हैं। इसी तरह के शक्ति-संतुलन या मजबूरी में तमाम विरोध के बावजूद हाल के मंत्रिमंडल फेरबदल में जयराम रमेश के पोर्टफोलियो को नहीं छेड़ा गया। हालांकि यह भी हो सकता है कि हाथी के दांत दिखाने के और, और खाने के और हों।

पॉस्को के बारे में पर्यावरण मंत्रालय के ताजा फैसले से एल एन मित्तल, जापानी कंपनी जेएफई व निप्पन स्टील की आशाएं भारत में जगह बनाने को लेकर बढ़ जाएंगी। बता दें कि वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन के अनुसार भारत में स्टील का मौजूदा उत्पादन 670 लाख टन का है, जबकि चीन का स्टील उत्पादन 6270 लाख टन का है। भारत दुनिया में स्टील उत्पादन के मामले में अभी पांचवें नंबर पर है।

भारतीय शेयर बाजार में 15 करोड़ डॉलर का निवेश करनेवाली फर्म एफआईएम इंडिया से हेलसिंकी स्थित पोर्टफोलियो मैनेजर तैना एरजूरी का कहना है कि पॉस्को को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी बहुत अच्छी खबर है। अच्छा है कि यह मसला अब सुलझ गया। उनका कहना था, “चीन के विपरीत भारत में विदेशी कंपनियों को मंजूरी पाने में बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता है, खासकर पर्यावरण मंजूरी में बड़ी दिक्कत आती है। बहुत-सी विदेशी कंपनियां भारत आना चाहती हैं। लेकिन बहुत विनम्रता के कहें तो यह देश बड़ा नौकरशाहाना है।”

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