वायेथ लिमिटेड का शेयर 2 जून से 30 जून के बीच 875 रुपए से 965 रुपए पर पहुंच गया। लेकिन महीने भर में 10.28 फीसदी बढ़ जाने के बावजूद यह बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों में सबसे सस्ता शेयर है। फिलहाल 18.52 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। हालांकि नोवार्टिस का शेयर इससे भी कम 18.15 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, लेकिन वो कंपनी तो विदेशी प्रवर्तक की 76.42 फीसदी इक्विटी हिस्सेदारी के साथ डीलिस्टिंग की तरफ बढ़ रही है, जबकि वायेथ पूरी तरह भारत में जमी रहेगी। इसमें प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 51.12 फीसदी है।
बाकी बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों में फाइजर का शेयर इस समय 27.2, अवेंटिस फार्मा का 28.6, एस्ट्राजेनेका फार्मा का 53.2 और ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन फार्मा का शेयर 38.4 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। लेकिन वायेथ का शेयर (बीएसई – 500095, एनएसई – WYETH) पिछले साल कमोबेश हर महीने 30 से ज्यादा पी/ई पर ट्रेड होने के बाद फिलहाल 20 से कम पी/ई पर चल रहा है। इसलिए इसका शेयर अपने समकक्षों से ही नहीं, खुद अपनी तुलना में भी इस समय सस्ता मिल रहा है। कल वह एनएसई में 960.30 रुपए और बीएसई में 960.20 रुपए पर बंद हुआ है।
दरअसल वायेथ अक्टूबर 2009 में अपनी मूल अमेरिकी कंपनी के फाइजर की पूर्ण स्वामित्व वाली सब्सिडियरी वैगनर एक्विजिशन कॉरपोरेशन में मिल जाने के बाद फाइजर की सब्सिडियरी बन गई है। हालांकि फाइजर और वायेथ भारत में अलग-अलग कंपनियों की तरह की काम कर रही हैं। भारत में वायेथ का इतिहास 20 सितंबर 1947 से शुरू होता है जब उसका गठन लेडरले लैबोरेटरीज (इंडिया) लिमिटेड के नाम से किया गया। अक्टूबर 1962 में उसका नाम साइनामिड इंडिया कर दिया गया।
1998 में वायेथ लैबोरेटरीज, जॉन वायेथ (इंडिया), वायेथ (इंडिया) प्रा. लिमिटेड को साइनामिड इंडिया लिमिटेड के साथ मिला दिया गया और इस तरह बनी नई कंपनी का नाम वायेथ लेडरले लिमिटेड हो गया। 2003 में इसमें ज्यॉफ्रे मैनर्स एंड कंपनी लिमिटेड का विलय हो गया और तब से पूरी कंपनी वायेथ लिमिटेड बनी हुई थी। 2009 के बाद से यह फाइजर की कंपनी बन गई क्योंकि फाइजर ने इसके प्रवर्तक को ही खरीद लिया तो भारतीय कंपनी में वायेथ एलएलसी अमेरिका, वायेथ होल्डिंग कॉरपोरेशन अमेरिका और जॉन वायेथ एंड ब्रदर लिमिटेड ब्रिटेन की 51.12 फीसदी हिस्सेदारी उसकी हो गई।
कंपनी की 22.72 करोड़ रुपए की इक्विटी दस रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में बंटी है। इसमें पब्लिक के 48.88 फीसदी हिस्से में से एफआईआई के पास 4.02 फीसदी और घरेलू निवेशक संस्थाओं के पास 14.53 फीसदी शेयर हैं। कंपनी के कुल शेयरधारकों की संख्या 22,721 है। उसके बड़े शेयरधारकों में अतुल लिमिटेड (6.03 फीसदी), बजाज एलियांज लाइफ (5.45 फीसदी), एलआईसी (2.89 फीसदी), रिलायंस कैपिटल ट्रस्टी (2.30 फीसदी), यूटीआई (2.02 फीसदी) और एसबीआई म्यूचुअल फंड (1.67 फीसदी) शामिल हैं। नोट करने की बात है कि कंपनी जबरदस्त लाभांश देती रही है। उसने दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर पर 2008 में 30 रुपए (300 फीसदी), 2009 में 32.50 रुपए (325 फीसदी), 2010 में 20 रुपए (200 फीसदी) और 2011 में 22 रुपए (220 फीसदी) लाभांश दिया है। शेयर के बाजार भाव को देखते हुए उसका लाभांश यील्ड 2.29 फीसदी बनता है।
कंपनी इतना लाभांश इसीलिए दे पा रही है क्योंकि वह अच्छा-खासा लाभ कमा रही है। मार्च 2011 की तिमाही में वायेथ की आय 106.92 करोड़ रुपए से 58.31 फीसदी बढ़कर 169.27 करोड़ रुपए हो गई, जबकि परिचालन लाभ 43.30 करोड़ से 49.65 फीसदी बढ़कर 64.80 करोड़ और शुद्ध लाभ 26.65 करोड़ रुपए से 78.01 फीसदी बढ़कर 47.44 करोड़ रुपए हो गया। कंपनी के वित्त वर्ष में थोड़ा घालमेल रहा है। अब इसे वह अप्रैल से मार्च तक का कर रही है। फिलहाल उसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस 51.85 रुपए है। पिछली पांच तिमाहियों में कंपनी की आय औसतन 38 फीसदी और परिचालन लाभ 111 फीसदी की दर से बढ़ा है।
कंपनी की उत्पादन इकाई गोवा में है। वह फोलिक एसिड, ओरल कंट्रासेप्टिव और हेयर रिमूवर या डिपीलेटरी क्रीम में देश की अग्रणी कंपनी है। देश में कई नई थिरैपी शुरू कर चुकी है और हारमोन थिरैपी लानेवाली पहली कंपनी है। एचआई-बी (हीमोफिलस इनफ्लूएंजा टाइप-बी) का वैक्सीन उसी ने पेश किया है। दुनिया के पहले ग्लाइसिल साइक्लाइन एंटीबायोटिक, टाइगेसिल को पेश करने का श्रेय वायेथ इंडिया को ही जाता है। कंपनी का 70 फीसदी धंधा फॉर्मेलेशन से आता है। उसके अन्य उत्पादों की झलक हम उसकी वेबसाइट पर देख सकते हैं। वह 70 फीसदी आय घरेलू बाजार और 30 फीसदी आय निर्यात से हासिल करती है।
अंत में बस इतना कि दवा कंपनियों को निवेश के लिए काफी सुरक्षित माना जाता है। उसमें भी वायेथ लिमिटेड का इतिहास लंबा है। दुनिया तक पहुंच है। लोकप्रिय दवाएं बनाती है। शेयर औरों से सस्ता है। इसलिए इसमें लंबे समय की सोच के साथ निवेश किया जा सकता है। इसका 52 हफ्ते का न्यूनतम स्तर 751 रुपए (29 दिसंबर 2010) और उच्चतम स्तर 973.80 रुपए (18 अप्रैल 2011) का है। कहां तक बढ़ेगा, यह हम क्या कोई भी सटीक तौर पर नहीं बता सकता। हां, इसे साल-दो साल में बढ़ना ही है, इसमें कोई दो राय नहीं है।