जो होना चाहिए, वो होता क्यों नहीं?

वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक के गवर्नर दो ऐसी शख्सियतें हैं जिनका एक-एक बयान शेयर बाजार को प्रभावित कर सकता है। सावधानी हटी दुर्घटना घटी। जरा-सा गलत बयान दे दिया तो बाजार में पलीता लग सकता है। लेकिन पहले पी चिदंबरम और अब प्रणव मुखर्जी कह चुके हैं कि उन्हें बाजार का उठना-गिरना नहीं समझ में आता। पिछले हफ्ते 3 मई को करीब सवा तीन बजे शाम सालाना मौद्रिक नीति पेश किए जाने के बाद रिजर्व बैंक गवर्नर दुव्वरि सुब्बाराव से किसी महिला पत्रकार ने पूछा – आधा फीसदी ब्याज बढ़ाने से बाजार तो धराशाई हो गया है, आप क्या कहेंगे। सुब्बाराव का जवाब था – हम शेयर बाजार को ध्यान में रखकर कोई नीति नहीं बनाते।

अजीब है हमारा शेयर बाजार। आज से नहीं, बहुत पहले। खराब खबरों पर भी बढ़ जाता है और अच्छी खबरों पर ठंडा पड़ा रहता है या गिर जाता है। इस हफ्ते ऐसे अजूबे कई बार हुए। औद्योगिक उत्पादन बढ़ने की खुशखबरी आई, लेकिन बाजार पिटा पड़ा रहा। चलिए वित्त मंत्री व रिजर्व बैंक के गवर्नर भले ही न समझें, हम तो अपने शेयर बाजार की चाल को समझने की कोशिश करते हैं। पेश हैं कि इस कॉलम में लिखी गई कुछ ऐसी बातें जो अगली यात्रा के प्रस्थान में पाथेय का काम करेंगी…

  • हमारी यही सलाह है कि मल्टीबैगरों के चक्कर में न पड़ें। हम-आप जैसे आम निवेशकों को आमतौर पर इनसे कुछ नहीं मिलता। हां, इन्हें फेंकनेवालों के मनी-बैग जरूर इस दौरान मल्टी-टाइम्स बढ़ जाते हैं। शांति से, धैर्य से निवेश करना चाहिए। अगर रातोंरात धन कमाना चाहते हैं तो शुद्ध लॉटरी खेलिए। शेयर बाजार में समय क्यों बरबाद कर रहे हैं?
  • एक बात गांठ बांध लें कि शेयर बाजार में निवेश हमेशा लंबे समय में फलता है। दस साल का अंतराल लेकर चलें तो इतिहास बराबर इस सच की तस्दीक करेगा। लेकिन छोटी अवधि में सेंटीमेंट के हिसाब से घट-बढ़ होती रहती है। बिजली समेत पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर देश की अर्थव्यवस्था के लिए अपरिहार्य है। इसलिए देर-सबेर उसे बढ़ना ही है।
  • अगर केवल दिन भर की बात करेंगे तो शेयर मूल कंपनी के धंधे की परछाई होते हैं। कंपनी का आकार जस का तस रहने के बावजूद परछाई दोपहर को एकदम गायब तो शाम को एकदम क्षितिज तक लंबी हो जाती है। दूसरी तरफ, लंबे वक्त में शेयर अपनी कंपनी का आईना होते हैं। जैसा आकार, वैसा प्रकार, वैसी छवि। जो ट्रेडर हैं, उन्हें परछाई और परछाई की भी परछाई (डेरिवेटिव्स, एफ एंड ओ) में खेलने दीजिए। हम कंपनी की विकासयात्रा और भारत की विकासगाथा के साथ चलें, इसी में हमारा हित है।
  • आपके लिए फैसले हम नहीं ले सकते। आपको खुद फैसला करना है कि किस स्टॉक में निवेश करना है या नहीं क्योंकि शेयर बाजार में निवेश ताजिंदगी चलनेवाली लंबी चीज है। दीपावली की फुलझड़ी या अनार नहीं है। हम आपको सही स्टॉक चुनने में मदद भर कर सकते हैं। शेयर बाजार की गलियों में निवेश की गाड़ी को ड्राइव करना आपको सीखना ही पड़ेगा।
  • किसी चीज का दाम जस का तस रहे तो उसी स्तर पर वह महंगी से सस्ती कैसे हो सकती है? लेकिन शेयर बाजार में ऐसा खूब होता है।

मित्रों! अर्थकाम के इस कॉलम का मकसद सिर्फ इतना बताना है कि किसी शेयर में निवेश करने से पहले आपको क्या-क्या बातें देखनी-समझनी चाहिए। आप बुक वैल्यू, पी/ई अनुपात, पिछला ट्रैक रिकॉर्ड और आगे की संभावनाएं पता लगाकर ही निवेश करें। हम बाजार के खेल की भी बात करते हैं। बहुत सारे कारक हैं, जिन पर निवेश से पहले ध्यान देना जरूरी है।

मोटा-सा नियम है कि अगर कंपनी का लाभ साल भर में 15 फीसदी बढ़ता है तो उसका शेयर भी इसी हिसाब से 15-20 फीसदी बढ़ जाना चाहिए। हालांकि तुरत-फुरत ऐसा होता नहीं। फिर भी हमें अच्छे शेयरों में निवेश से इतना रिटर्न मिल सकता है जो हर हाल में बैंक एफडी से नहीं मिल सकता है।

हमारा काम आपको देश की ज्यादा से ज्यादा लिस्टेड कंपनियों से परिचित कराना है। इसलिए सोमवार से लेकर शुक्रवार तक हम हर दिन एक नई कंपनी आपके लिए पेश करते हैं। आप इन कंपनियों को देखें-भालें, खुद भी थोड़ा रिसर्च करें, अपनी जोखिम उठाने की क्षमता का आकलन करें और तभी निवेश करें क्योंकि पैसा आपकी गाढ़ी कमाई का है, मेरा या किसी और का नहीं।

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