इंड-स्विफ्ट लिमिटेड और इंड-स्विफ्ट लैबोरेटरीज दोनों ही एक समूह से वास्ता रखती हैं। चंडीगढ़ इनका मुख्यालय है। दवाएं बनाती हैं। लेकिन अलग-अलग लिस्टेड हैं। इंड-स्विफ्ट 1986 में बनी तो इंड-स्विफ्ट लैब्स 1995 में। धंधा दोनों का दुरुस्त चल रहा है। इंड-स्विफ्ट लिमिटेड ने बीते वित्त वर्ष 2010-11 में 894.16 करोड़ रुपए की आय पर 43.45 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया था। वहीं इंड-स्विफ्ट लैब्स ने इस दौरान 1031.21 करोड़ रुपए की आय पर 87.62 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया। लेकिन बाजार में दोनों ही कंपनियों के शेयर पिटे पड़े हैं।
इंड-स्विफ्ट का शेयर इस समय 2.53 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। उसका दो रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 524652) में 30.20 रुपए और एनएसई (कोड – INDSWIFTLTD) में 30.15 रुपए पर बंद हुआ है, जबकि शेयर की बुक वैल्यू ही 76.62 रुपए है। इसका पिछले 52 हफ्तों का उच्चतम स्तर 49.30 रुपए (24 सितंबर 2010) और न्यूनतम स्तर 23.40 रुपए (22 अगस्त 2011) का रहा है।
इसी तरह इंड-स्विफ्ट लैब्स का शेयर फिलहाल 3.49 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है। उसका दस रुपए अंकित मूल्य का शेयर कल बीएसई (कोड – 532305) में 83.75 रुपए और एनएसई में 84.45 रुपए पर बंद हुआ है, जबकि शेयर की बुक वैल्यू ही 137.32 रुपए है। इसका पिछले 52 हफ्ते का उच्चतम स्तर 158 रुपए (8 नवंबर 2010) और न्यूनतम स्तर 74.50 रुपए (22 अगस्त 2011) का रहा है।
ऐसा भी नहीं कि इस बार दोनों की पहली तिमाही खराब रही हो। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की जून तिमाही में इंड-स्विफ्ट की बिक्री 34.77 फीसदी बढ़कर 240.43 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 39.20 फीसदी बढ़कर 15.34 करोड़ रुपए हो गया। उसका ठीक पिछले बारह महीनों (टीटीएम) का ईपीएस (प्रति शेयर मुनाफा) 11.89 रुपए है। वहीं इंड-स्विफ्ट लैब्स की बिक्री इस साल जून तिमाही में 34.28 फीसदी बढ़कर 266.70 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 16.69 फीसदी बढ़कर 17.34 करोड़ रुपए हो गया। उसका टीटीएम ईपीएस अभी 23.95 रुपए है।
दवा कंपनियों को निवेश के लिए सबसे मुफीद माना जाता है। जब भी बाजार में उथल-पुथल होती है, निवेशक दवा जैसे क्षेत्रों का रुख करते हैं। लेकिन धंधा ठीकठाक होने और धंधे में अच्छी बरक्कत होने के बावजूद इंड-स्विफ्ट समूह की दोनों कंपनियों के शेयर क्यों इस समय इस कदर पिटे हुए हैं? इस सवाल का जवाब पाने के लिए मुझे तो काफी छानबीन करनी पड़ेगी जिसमें वक्त भी लगेगा, जो आज मेरे पास नहीं है। आप में से किसी के पास जवाब तो जरूर लिख भेजिए। मैं बस कुछ तथ्य पेश करके आज सवाल ही सामने रख सकूंगा।
दोनों कंपनियों में बुनियादी अंतर यह है कि इंड-स्विफ्ट तैयार दवाएं बनाकर बाजार में पेश करती है। वहीं इंड-स्विफ्ट लैब्स बल्क दवाओं व एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट) के धंधे में है। इंड-स्विफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रिंटिंग पैकेजिंग व स्टेशनरी, शिक्षा और मीडिया पब्लिकेशन तक में पैर फैला रही है। वहीं इंड-स्विफ्ट लैब्स ने अगले 18 महीनों में 180 करोड़ रुपए के पूंजी व्यय की योजना बना रखी है। शेयर बाजार की हालत सुधरी तो वह नए शेयर भी जारी कर सकती है। कंपनी के निदेशक बोर्ड ने बाजार से 500 करोड़ जुटाने का प्रस्ताव पास कर दिया है। यह धन राइट्स इश्यू या क्यूआईपी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) से जुटाया जा सकता है।
इंड-स्विफ्ट की इक्विटी 8.44 करोड़ रुपए है। इसमें से पब्लिक के पास 56.4 फीसदी और प्रवर्तकों के पास 43.6 फीसदी हिस्सा हैं। प्रवर्तकों ने कंपनी का कोई शेयर गिरवी नहीं रखा है। एफआईआई ने इसके 1.80 फीसदी शेयर खरीद रखे हैं, जबकि डीआईआई ने 2.61 फीसदी। दूसरी तरफ इंड-स्विफ्ट लैब्स की इक्विटी 34.45 करोड़ रुपए है। इसमें भी पब्लिक के पास 56.31 फीसदी और प्रवर्तकों के पास 43.69 फीसदी हिस्सा है। प्रवर्तकों ने इसका भी कोई शेयर गिरवी नहीं रखा है। एफआईआई ने इसके 4.91 फीसदी और डीआईआई ने 0.21 फीसदी शेयर खरीद रखे हैं। इंड-स्विफ्ट मे बीते वित्त वर्ष 2010 के लिए दो रुपए के शेयर पर 40 पैसे यानी 20 फीसदी और इंड-स्विफ्ट लैब्स ने दस रुपए के शेयर पर एक रुपए यानी 10 फीसदी लाभांश दिया है।
सब कुछ ठीकठाक। फिर भी शेयर क्यों हैं इतने पिटे? विक्रम-वैताल की कथा के अंदाज में कहूं तो हे विक्रम! तूने अगर तूने जानते हुए भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया तो तू खंड-खंड होकर बिखर जाएगा। लेकिन आप भी जानते हैं और मैं भी जानता हूं कि हर कहानी में विक्रम के पास वैताल के हर सवाल का जवाब होता है और वैताल को दोबारा पेड़ की डाल पर जाकर जम जाना होता है। तो हम तो पहले ही चले अपने पेड़ पर ठेहा जमाने। धन्यवाद।