कंपनियों के तीसरी तिमाही के नतीजों के आने का सिलसिला बस शुरू ही होने को है। इसलिए शेयरों की नई खरीद-ब्रिकी का खेल अब ज्यादा दूर नहीं है। अग्रणी कंपनियों के अच्छे नतीजे और फिर उनके भावों का सही स्तर पर आना या करेक्शन होना हमारे पूंजी बाजार का नियमित पहलू है। कंपनियों की लाभप्रदता की कयासबाजी को लेकर सावधान रहिए। हम इसके बारे में आपको पहले से आगाह करना चाहते हैं। बाकी तो आप खुद ही काफी अनुभवी और जानकार हैं।
निफ्टी के लिए हमारा लक्ष्य 6280 पर बदस्तूर कायम है। यह भी निश्चित मानिए कि इस कैलेंडर वर्ष में निफ्टी 7000 के पार चला जाएगा। जिंदल सॉ गिरते-गिरते 176 रुपए तक चला गया था। फिर भी हमने आशा नहीं छोड़ी थी क्योंकि मूल्यांकन को लेकर हम अडिग थे। अब यह फिर से 207 रुपए पर वापस आ चुका है और हमारी कॉल मुनाफे का सबब बन चुकी है। ए ग्रुप के शेयरों में दी गई कॉल पर यह हमारी साख है।
रिलायंस (आरआईएल) बाजार को खींचकर आगे ले जा रहा है और पूरे साल 2011 में यह आगे-आगे ही चलता रहेगा। हमने तीन महीने पहले साफ कह दिया था कि प्राकृतिक गैस कई सालों के तेजी के चक्र में जा रही है। इसलिए अगले चार सालों तक रिलायंस में अग्रगति बनी रहेगी।
बी ग्रुप के स्टॉक्स में वोल्यूम बढ़ नहीं रहा और एक्सचेंज भी इसके लिए कुछ कर नहीं रहे। सरकार लिस्टेड कंपनियों में न्यूनतम 25 फीसदी पब्लिक होल्डिंग का नियम लागू करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इसके पालन के लिए बेचे गए शेयर अगर फिर से प्रवर्तकों के बेनामी खातों में चले गए तो इससे कोई खास मदद कैसे मिल सकती है?
सूत्रों के मुताबिक तमाम ब्रोकरों ने बहुत-सी स्मॉल कैप और मिड कैप कंपनियों में ट्रेडिंग व खरीद रोक रखी है। उनका इकलौता तर्क यह है कि इनका ट्रेडिंग वोल्यूम कम होने के बावजूद शाम तक हुए कुल कारोबार के 10 फीसदी से ऊपर चला जा रहा है। हमें इन ब्रोकरों से पता चला है कि एक्सचेंजों ने उनसे इन कंपनियों के स्टॉक्स में ट्रेडिंग घटाने को कहा है। नहीं समझ में आता है कि यह निगरानी और नियंत्रण का एक्सचेंजों का कैसा तरीका है?
सुबह-सुबह 9 बजे कैसे कोई निवेशक जान सकता है कि किसी स्टॉक में शाम को बंद होने तक कुल कितना कारोबार होगा ताकि वह 10 फीसदी खरीद की सीमा तय कर सके। इसके चलते निवेशकों ने बनावटी वोल्यूम खड़ा करने और सर्कुलर ट्रेडिंग में लगे लोगों से पूछताछ बढ़ा दी है क्योंकि बाजार के इन्हीं बिचौलियों की मदद और बोगस वोल्यूम के दम पर निवेशक कोई स्टॉक खरीद सकते हैं। फंडामेंटल जबरदस्त हों, तब भी निवेशकों को बिना इनकी मदद के मनचाही मात्रा में शेयर नहीं मिल पाते। यही बात बाजार में ऑपरेटरों की मौजूदगी को अपरिहार्य बना देती है क्योंकि उनके पास वोल्यूम खड़ा करने का पूरा तंत्र है।
शेयर बाजार नियमतः बाजार से संचालित मूल्य प्रणाली पर काम करता है। क्या निवेशक को हर घंटे देखकर वोल्यूम का 10 फीसदी खरीदना चाहिए? अगर ऐसा है तो निवेशकों को साफ-साफ बता दिया जाना चाहिए कि वे एक बार में सारी खरीद नहीं कर सकते। यह स्थिति बी ग्रुप के शेयरों में निवेशकों के भरोसे व विश्वास को ध्वस्त कर रही है और उन्हें ए ग्रुप के शेयरों में ट्रेडिंग की तरफ धकेल रही है। इसमें फंसकर ज्यादातर निवेशक मार्जिन के दबाव में अपना धन गंवा रहे हैं।
बी ग्रुप के शेयरों में वोल्यूम बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। वित्त मंत्रालय और बाजार नियामक अगर आम भारतीयों की बचत को पूंजी बाजार में लाना चाहते हैं तो उन्हें इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करना होगा।
अपने अवगुणों से हमेशा लड़ते रहें, पड़ोसियों के साथ शांति से रहें और नए साल में कोशिश करें कि आप पहले से बेहतर इंसान बन जाएं।
(चमत्कार चक्री एक अनाम शख्सियत है। वह बाजार की रग-रग से वाकिफ है। लेकिन फालतू के कानूनी लफड़ों में नहीं उलझना चाहता। सलाह देना उसका काम है। लेकिन निवेश का निर्णय पूरी तरह आपका होगा और चक्री या अर्थकाम किसी भी सूरत में इसके लिए जिम्मेदार नहीं होगा। यह कॉलम मूलत: सीएनआई रिसर्च से लिया जा रहा है)