अगर आप शेयरों की ट्रेडिंग में दिलचस्पी रखते हैं तो डब्बा ट्रेडिंग का नाम ज़रूर सुना होगा। हर गैर-कानूनी काम की तरह यह भी हल्के-फुल्के मुंगेरीलाल टाइप लोगों को खूब खींचता है। कोई लिखा-पढ़ी नहीं, रिकॉर्ड नहीं, सारा लेनदेन कैश में, सारी कमाई काली। फिर इनकम टैक्स देने या रिटर्न भरने का सवाल ही नहीं। सारे सौदे स्टॉक एक्सचेंज के बाहर होते हैं तो सिक्यूरिटी ट्रांजैक्शन का सवाल ही नहीं उठता। साथ ही कोई दिक्कत आने या ठगे जाने पर एक्सचेंज या थाना-पुलिस से इसमें भाग लेनेवालों को कोई मदद नहीं मिल सकती। भारत सरकार ने डब्बा ट्रेडिंग को न तो मान्यता दे रखी है, न ही किसी रूप में इसे बढ़ावा देती है। लेकिन दशकों से यह धंधा इंदौर से लेकर सूरत, लुधियाना, कानपुर व रांची जैसे छोटे शहरों में बराबर चल रहा है।
जब हमारे स्टॉक एक्सचेंजों में इंट्रा-डे से लेकर डेरिवेटिव ट्रेडिंग तक की पूरी सहूलियत है, तब आखिर लोगबाग डब्बा ट्रेडिंग जैसे गलत व गैर-कानूनी काम करते ही क्यों हैं? इसके कुछ बड़े साफ कारण हैं। पहला तो यह कि डब्बा ट्रेडिंग करानेवाला ऑपरेटर गैरकानूनी ट्रेडिंग कर रहा है तो वह ट्रेड करनेवालों से कोई स्पैन मार्जिन, मार्क टू मार्केट रकम वगैरह नहीं लेता, न ले सकता है। वो बहुत हुआ तो लोगों ने मोटामोटी सांकेतिक या. टोकन सिक्यूरिटी डिपॉजिट ले लेता है और उन्हें जैसा चाहें, वैसा ट्रेड करने का मौका दे देता है। ट्रेड एक्सचेंज के बाहर होता है तो एसटीटी या किसी भी तरह का कोई दूसरा टैक्स वगैरह नहीं लगता। इसलिए थोड़ा पैसा बचाने और ज्यादा कमाने की लालच में आकर लोगबाग फंस जाते और उलझते जाते हैं।
अपने शेयर बाज़ार में सक्रिय डब्बा ऑपरेटर दो तरह के होते हैं। एक जो आपके ट्रेड को एक्सचेंज के प्लेटफॉर्म पर ले जाता है। लेकिन आप से सारी रकम कैश में लेता है। अपने खाते में अपने नाम से ही ट्रेड करता है। स्पैन से लेकर मार्क टू मार्केट मार्जिन तक देता है। यह ऑपरेटर चूंकि रिस्क ले रहा है तो इसके एवज में वो डब्बा ट्रेडर से पूरा ब्रोकरेज लेता है। दूसरा डब्बा ऑपरेटर वो है जिसके सौदे एक्सचेंज के सर्वर में जाते ही नहीं। वह बाहर ही बाहर ट्रेड करता है। डब्बा ट्रेडर के सामनेवाली पार्टी बन जाता है। डब्बा ट्रेडर को खरीदना हो तो ऑपरेटर बेचता है और बेचना हो तो खरीदता है। इस तरह ट्रेड पूरा कर लेता है। आधार स्टॉक एक्सचेंज के सौदे ही होते हैं। लेकिन सब कुछ एक्सचेंज के बाहर भरोसे पर सेटल होता है।
जो डब्बा ऑपरेटर स्टॉक एक्सचेंज के जरिए और ब्रोकर को शामिल करके आपके डब्बा ट्रेड को अंजाम देता है, वह यकीनन गैर-कानूनी काम करता है। लेकिन जो डब्बा ऑपरेटर एक्सचेंज का सहारा नहीं लेता, वह इससे कहीं ज्यादा खतरनाक है। वह चूंकि एक्सचेंज या किसी ब्रोकर को शामिल नहीं करता तो उसे न किसी तरह का मार्जिन देना होता है और न ही कोई ब्रोकरेज, इसलिए आपसे बहुत कम शुल्क लेता है। लेकिन वह अपनी कोई पूंजी नहीं लगाता और केवल आपकी पूंजी से खेलता है। आप जो भी डब्बा ट्रेड करते हैं, उसमें सामने की पार्टी वो डब्बा ऑपरेटर खुद होता है। आपका फायदा उसका नुकसान और आपका नुकसान ही उसका फायदा होता है। इसलिए उसके जरिए डब्बा ट्रेड करना अपना सिर शेर के मुंह में डाल देने जैसी मूर्खता है।
डब्बा ट्रेडिंग में ऐसे भी मामले होते हैं कि एक्सचेंज के सर्वर पर कोई सौदा होता ही नहीं। क्लाएंट को घाटा हो रहा होता है, फिर भी वह सौदा नहीं काटता। वह घाटे पर सौदा काट भी दे तो ऑपरेटर उसे क्रेडिट दे देता है। दरअसल, उसका सारा तंत्र हवा-हवाई होता है। बिना किसी सौदे के उसे क्लाएंट को चूना लगाना होता है। आपसे धन लेना होगा तो ऑपरेटर आपके घर रिकवरी एजेंट भेज देगा। लेकिन उसको धन देना होगा तो वह साफ बोल देगा कि नहीं देता, तू क्या कर लेगा मेरा, जो करना हो, कर ले। और, सचमुच आप उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि सौदे की कहीं कोई लिखत-पढ़त है नहीं। इसलिए न स्टॉक एक्सचेंज, न पूंजी बाज़ार नियामक सस्था सेबी और न ही कोई सरकारी महकमा ऑपरेटर के खिलाफ आपकी मदद कर सकता है।
शेयर बाज़ार में हो रही गैर-कानूनी डब्बा ट्रेडिंग से ट्रेड करनेवाले क्लाएंट को कोई फायदा नहीं होता। इसमें ऑपरेटर ही कमाते हैं। वे अपने जाल में कमज़ोर हैसियत वाले लोगों को फांसते हैं और उन्हें निचोड़ डालते हैं। अगर क्लाएंट ने कभी कमा भी लिया तो ऑपरेटर उसे भुगतान नहीं करता। फिर भी सेबी की सख्ती के बावजूद डब्बा ट्रेडिंग चल रही है तो इसकी वजह है मूर्ख लोगों की लालच और मक्कार ऑपरेटर का जाल। निष्कर्ष साफ है कि न तो आपको कभी डब्बा ट्रेडिंग करनी चाहिए और न ही किसी जान-पहचान वाले को ऐसा करने देना चाहिए। शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग करनी है तो सेबी और एक्सचेंज़ के नियमों का पालन करते हुए आधिकारिक रूप से उपलब्ध सुविधा का उपयोग करें। इसमें लागत थोड़ी ज्यादा है, लेकिन सुरक्षा पूरी है।
क्या शेयर बाज़ार में चल रही डब्बा ट्रेडिंग से स्टॉक्स के भावों पर कोई असर पड़ता है? य़ह पता लगाना बेहद मुश्किल है क्योंकि कोई नहीं जानता कि इस गैर-कानूनी बाज़ार का टर्नओवर क्या है, इसमें कितना आता और निकलता है। हां, इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि डब्बा ट्रेडिंग का जो हिस्सा ऑपरेटर एक्सचेंज पर ले जाते हैं, उसका थोड़ा असर स्टॉक्स के भावों पर पड़ता होगा। बताते हैं कि डब्बा ट्रेडिंग में शुक्रवार को मार्क टू मार्केट सिस्टम के हिसाब से भुगतान होता है। उसी दिन पता चलता है कि आपको लेना है या देना है। लेकिन जिन सौदों में डब्बा ऑपरेटर ही काउंटर पार्टी होता है, उससे यकीनन बाज़ार पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि रेत पर डंडा पीटने से समुंदर की लहरों पर कोई असर कैसे पड़ सकता है!
उम्मीद है कि डब्बा ट्रेडिंग पर दी गई जानकारी से आपकी जिज्ञासा शांत हुई होगी और इस गैर-कानूनी ट्रेडिंग का तिलिस्म टूट गया होगा। साफ समझ लें कि हम-आप ईमानदारी से टैक्स देनेवाले आम नागरिक हैं। हमें शेयर बाज़ार में निवेश या ट्रेडिंग के लिए मान्यता-प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों को ही चुनना चाहिए। आज तो इनका तंत्र ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए देश के कोने-कोने तक फैल चुका है। सौदे की लागत में ब्रोकरेज से लेकर, एक्सचेंज व सेबी के शुल्क और एसटीटी (सिक्यूरिटीज़ ट्रांजैक्शन टैक्स) को जोड़कर देखें। फिर गिनें कि कितना कमाने पर आपको फायदा होगा। हमेशा नियम-कायदों का पालन करते हुए सौदे करें। बाज़ार ने कमाने के लिए भरपूर मौके दे रखे हैं। वहां कोई अंधेरगर्दी नहीं। पूरा नियमन है और बाकायदा बाज़ार का नियामक है।