जीवन की यात्रा और उसमें हर मोड़ पर सीखना एक अटूट श्रृंखला है। हम नहीं रहते तो हमारे बाल-बच्चे इसे आगे बढ़ाते हैं। कड़ी कभी कहीं टूटती। जब तक यह सृष्टि है, तब तक यह टूटेगी भी नहीं। लेकिन अगर अगली यात्रा तक पिछली यात्रा के सबक याद न रखे जाएं तो अंत में हम खाली हाथ रह जाते हैं। बर्तन के पेंदे में छेद हो तो उसमें डाला गया सारा तरल निकलता जाता है। इसलिए मित्रों! मैंने सोचा है कि बीते हफ्ते में शेयरों में निवेश के जो भी सूत्र इस कॉलम में पेश किए गए हैं, उन्हें सप्ताहांत में एक जगह रख दिया जाए। तो, आज से यह क्रम शुरू कर रहा हूं।
- अर्थव्यवस्था का दूरगामी नजरिया अच्छा हो और कंपनी अच्छी हो तो बाजार का पिटना बड़ा अच्छा होता है क्योंकि इस चक्कर में अच्छी कंपनियों के शेयर सस्ते में मिल जाते हैं। किसी सेक्टर का डाउनग्रेड किया जाना भी कभी-कभी अच्छा होता है क्योंकि सेक्टर के बीच भी अच्छी कंपनियां होती हैं।
- अगर बहुत सारी नकारात्मक सच्चाइयों के बाद भी किसी चीज को बहुत ज्यादा चमका कर दिखाया जा रहा है, ऐसा कुछ बताया जा रहा है जिस पर सहजता से यकीन नहीं आता तो उसे ‘उस्तादों’ के लिए छोड़ देना चाहिए क्योंकि इतनी चकाचौंध हमें छलने का बहाना भी हो सकती है।
- शेयर बाजार पूंजी बाजार का हिस्सा है और पूंजी बाजार वित्तीय बाजार का। हम में से हर किसी को भविष्य के लिए बचाने की जरूरत पड़ती है। यह बचत समय के साथ ताल मिलाकर चलती व बढ़ती रही, इसका माध्यम है वित्तीय बाजार। लेकिन यह वित्तीय बाजार ही बेतरतीब और हवा-हवाई हो जाए, निहित स्वार्थों के हाथ का खिलौना बन जाए, आपसी अंतर्विरोधों का शिकार हो जाए तो हमें भविष्य के लिए बचाने का दूसरा रास्ता भी खोजना पड़ सकता है।
- किसी भी शेयर में निवेश करते समय हम यह सोचते हैं कि इससे हम कितना कमा सकते हैं। लेकिन पहले सोचना यह चाहिए कि हम इसमें कितना गंवा सकते हैं क्योंकि निवेश के सभी माध्यमों में सबसे ज्यादा जोखिम शेयरों में ही होता है। इसलिए जोखिम की पूरी मानसिक तैयारी के बिना इसमें कूद पड़ता ‘स्वास्थ्य के लिए हानिकारक’ है।
- उम्मीद पर दुनिया कायम है और शेयर बाजार भी। किसी कंपनी ने लाख अच्छा किया हो, लेकिन अगर वो बाजार की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी तो उसका शेयर गिर जाता है।
वल्लाह! जनून और तमीज का डेडली कॉम्बीनेश्न हो गुरू जी