पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का खास अंदाज था कि वे देश की हर समस्या के पीछे विदेशी हाथ बता देती थीं। अब हमारे ताजा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी लगता है कि वही शॉर्टकट अपना लिया है। उन्होंने साइंस पत्रिका में शुक्रवार को छपे एक इंटरव्यू में कहा है कि भारत में परमाणु संयंत्रों को लगाने के विरोध के पीछे अमेरिका के अ-सरकारी संगठनों (एनजीओ) का हाथ है।
आपको याद ही होगा कि महाराष्ट्र के जैतापुर के बाद तमिलनाडु के कुडांकुलम के परमाणु बिजली संयंत्र का लोग जमकर विरोध कर रहे हैं। वहां रूस के बने परमाणु रिएक्टर को आंदोलनकारियों सुरक्षा के भय से पहुंचने नहीं दिया है। असल में पिछले साल जापान में फुजियामा के परमाणु संयंत्र हादसे के बाद भारत समेत सारी दुनिया में परमाणु बिजली को लेकर डर बैठ गया है। जर्मनी जैसे देश तक ने अपने सारे परमाणु बिजली संयंत्र बंद कर दिए हैं।
प्रधानमंत्री ने साइंस पत्रिका में छपे इंटरव्यू में कहा है, “परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम इन एनजीओ के चलते समस्या में पड़ गया है। इन एनजीओ में से अधिकांश अमेरिका के हैं। वे बिजली सप्लाई बढ़ाने की हमारे देश की जरूरत को नहीं समझते।” यही नहीं, मनमोहन सिंह ने देश में जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड) फसलों के विरोध को अमेरिका व यूरोप के खास देशों से प्रोत्साहन दिए जाने का आरोप लगाया।
इस बीच कुंडांकुलम संयंत्र के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों ने इस बात से इनकार किया है कि उन्हें विदेश से कोई धन मिलता है। उन्होंने इस संदर्भ में गृह मंत्रालय की उस जांच का भी हवाला दिया जिसमें इन आंदोलनकारी संगठनों के खातों में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई है।