भारत को परमाणु बिजली के क्षेत्र में झाड़ पर चढ़ाने की कोशिश हो रही है क्योंकि जब बाकी दुनिया परमाणु बिजली को तौबा कर रही है तब भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हैं जो इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ने का मंसूबा पाले हुए है और बाहर से परमाणु रिएक्टर आयात कर सकता है। लेकिन भारत में आम राय इसके खिलाफ न जाए, इसलिए ऐसा दिखाने की सायास कोशिश हो रही है कि भारत इस क्षेत्र में विश्व शक्ति बन सकता है। वह परमाणु रिएक्टर निर्यात करनेवाले अमेरिका, चीन व फ्रांस जैसे चुनिंदा देशों की श्रेणी में आ सकता है।
अमेरिकी संसद से संबंद्ध कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) ने अपनी ताजा रिपोर्ट, न्यूक्लियर एनर्जी कोऑपरेशन विद फॉरेन कंट्रीज इश्यू फॉर कांग्रेस, में कहा है, “अभी केवल कनाडा, चीन, फ्रांस, जापान, रूस, दक्षिण कोरिया और अमेरिका ही परमाणु रिएक्टर का निर्यात करते हैं। भारत जल्द ही इस समूह में शामिल हो सकता है।” इसी रिपोर्ट में भारत को अमेरिका के परमाणु रिएक्टर बेचने की बात भी कही गई है। बता दें कि सीआरएस अमेरिकी संसद की एक शोध संस्था है, जो समय-समय पर सांसदों के हितों के मुद्दों पर रिपोर्ट तैयार करती है।
विश्व परमाणु संघ (वर्ल्ड न्यूक्लियर एसोसिएशन) के अनुसार, भारत निर्यात के लिए इस समय खुद बनाए गए 220 और 540 मेगावॉट क्षमता के भारी जल रिएक्टर पेश कर रहा है। लेकिन अभी तक किसी ने इन्हें खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है। [जब मानव जीवन व पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभावों के चलते हर तरफ परमाणु बिजली से हटने का दौर चल रहा हो और कहीं कोई मांग ही न हो, तब बिना किसी लॉबीइंग के भारत के रिएक्टर खरीदेगा भी कौन]
खैर, सीआरएस की रिपोर्ट में कहा गया कि केवल कुछ सीमित देश विखंडनीय पदार्थों का पुनर्संसाधन, व्यावसायिक संवर्धन व इस प्रौद्योगिकी की आपूर्ति कर सकते हैं। इस समय किसी आपूर्तिकर्ता देश की पुनर्संसाधन और संवर्धन प्रौद्योगिकी के हस्तातरण की कोई योजना नहीं है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) ने हाल ही में ईंधन चक्रीय प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति के दिशानिर्देशों में कुछ नए नियम जोड़े हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, जापान और भारत में अब व्यावसायिक पुनर्संसाधन किया जा रहा है। इसमें कहा गया कि चीन के पास एक प्रायोगिक संयंत्र है और वह बड़े संयंत्र के बारे में सोच रहा है जबकि दक्षिण कोरिया शोध व विकास कार्यक्रम चला रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जापान जैसे सीमित प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन वाले कुछ देश कहते हैं कि वे विदेशी ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता घटाने के लिए अपने इस्तेमाल किए जा चुके ईंधन का पुनर्संसाधन करना चाहते हैं। दूसरे देशों के साथ अमेरिकी परमाणु सहयोग समझौतों में भी अमेरिकी परमाणु निर्यात के जरिए अमेरिकी परमाणु उद्योग की वृद्धि को बढ़ाने में मदद की बात शामिल है।
रिपोर्ट में असली बात भी साफ-साफ कही गई है कि दुनिया भर में, खासतौर पर चीन और भारत में परमाणु ऊर्जा के संयंत्रों का इजाफा भविष्य में अमेरिकी परमाणु रिएक्टर निर्यात में वृद्धि कर सकता है। इसमें कहा गया कि भारत ने दो स्थानों पर 12 अमेरिकी परमाणु रिएक्टर लगाने की योजना के बारे में घोषणा की है। लेकिन अब तक कोई समझौता नहीं हुआ है।