अचानक उल्लास और उत्साह के बीच आर्थिक मोर्चे से दो बुरी खबरें मिली हैं। जून महीने में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्धि दर 13 महीनों के न्यूनतम स्तर 7.1 फीसदी पर पहुंच गई है। यह पिछले साल जून में आर्थिक सुस्ती के बावजूद 8.3 फीसदी थी। दूसरे, कुछ हफ्तों से इकाई में आ गई खाद्य मुद्रास्फीति की दर 31 जुलाई को खत्म सप्ताह में बढ़कर 11.4 फीसदी हो गई है।
हालांकि इन दोनों ही नकारात्मक खबरों पर शेयर बाजार ने कोई खास तवज्जो नहीं दी और बीएसई सेंसेक्स व एनएसई निफ्टी लगभग पुराने स्तर पर बने रहे। अर्थशास्त्री भी इसे ऐसा रुझान नहीं मानते जो आगे जारी रहेगा। सरकार की तरफ से योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोटेंक सिंह आहलूवालिया ने भरोसा जताया है कि औद्योगिक विकास दर के घटकर 7.1 फीसदी रह जाने के बावजूद इस साल अर्थव्यवस्था की विकास दर 8.5 फीसदी रहेगी।
उन्होंने राजधानी दिल्ली में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि, “जीडीपी में 8.5 फीसदी की विकास दर हासिल करने के लिए जरूरी नहीं है कि पूरे साल भर यह (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की वृद्धि दर) दहाई अंकों में बनी रहे। लेकिन हम दहाई अंकों की औद्योगिक वृद्धि तो चाहते ही हैं।” पिछले नौ महीनों से ऐसा पहली बार हुआ है, जब औद्योगिक उत्पादन में विकास की दर किसी महीने में इकाई अंक में रही है। वैसे अप्रैल से जून तक की तिमाही को देखें तो आईआईपी में पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 11.6 फीसदी वृद्धि हुई है।
जून 2010 में औद्योगिक उत्पादन धीमा पड़ने की खास वजह लेदर व फर उत्पादों में आई 9.9 फीसदी और लकड़ी व उसके उत्पादों और फर्नीचर उद्योग में आई 7 फीसदी गिरावट है। इस दौरान 17 में से 13 उद्योग वर्गों में वृद्धि दर्ज की गई है। इसमें सबसे ज्यादा वृद्धि मेटल उत्पाद (62.1 फीसदी), जूट व अन्य वनस्पति टेक्सटाइल (30 फीसदी) और ट्रांसपोर्ट उपकरण (24.6 फीसदी) में हुई है। जून 2009 की तुलना में इस बार माइनिंग में 9.5 फीसदी, मैन्यूफैक्चरिंग में 7.3 फीसदी और इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर के उत्पादन में 3.5 फीसदी वृद्धि हुई है।
प्रमुख उद्योग संगठन फिक्की के महासचिव अमित मित्रा का कहना है कि वैसे तो मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में इस तरह धीमापन आना अपेक्षित था। लेकिन जून के आईआईआई का पिछले साल से कम रह जाना चिंता का विषय है। इससे यही संकेत मिलता है कि मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र अभी तक विकास का आवेग नहीं पकड़ सका है। लेकिन ऑटोमोबाइल व कंज्यूमर ड्यूरेबल जैसे क्षेत्रों की मजबूत वृद्धि दिखाती है कि उपभोक्ता मांग बनी हुई है जिसका असर आगे पूरे उद्योग क्षेत्र पर नजर आएगा।
आर्थिक मोर्चे की दूसरी बुरी खबर यह है कि 31 जुलाई को खत्म सप्ताह में मुद्रास्फीति की दर 11.4 फीसदी रही है। यह ठीक इससे पिछले हफ्ते में 9.53 फीसदी थी। इस बार इस दर के बढ़ने की वजह अनाज, फल और दूध के थोक मूल्यों में हुई वृद्धि है। हालांकि जुलाई के दो हफ्तों में इकाई अंक में रहने के अलावा बाकी साल यह दहाई अंक में ही रही है। जानकारों का कहना है कि खाद्य मुद्रास्फीति का दहाई अंक में लौटना अपेक्षित था। अच्छे मानसून से बेहतर खरीफ उत्पादन के बाद ही इस दर में स्थाई कमी आएगी।
बता दें कि रिजर्व बैंक और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद, दोनों ने ही चालू वित्त वर्ष में 8.5 फीसदी आर्थिक विकास का अनुमान लगाया है। पिछले साल जीडीपी की विकास दर 7.4 फीसदी रही है। लेकिन औद्योगिक उत्पादन का धीमा पड़ना थोड़ी चिंता पैदा करता है। दूसरी तरफ, मुद्रास्फीति के ज्यादा रहने से रिजर्व बैंक फिर ब्याज दरें बढ़ा सकता है जिससे धन महंगा हो जाएगा और उद्योग क्षेत्र की भी मुश्किल बढ़ सकती है, रफ्तार धीमी पड़ सकती है।