चुनाव गरज-बरस कर चले गए। कंपनियों के नतीजों का मौसम भी बीत चला। अब सारे बाजार की निगाहें मानसून की घटाओं पर लग गई हैं। मौसम विभाग की मानें तो दक्षिणी-पश्चिमी मानसून 31 मई को केरल के तट पर समय से एक दिन पहले दस्तक दे देगा। अभी तक का अनुमान यही है कि मानसून अच्छा रहेगा। मानसून के अच्छे रहने से कृषि उत्पादन अच्छा रहेगा। इससे सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के विकास को मदद मिलेगी। लेकिन यह तत्व तब तक सही प्रेरक या ट्रिगर नहीं बन सकता जब तक शेयर बाजार का मिजाज दुरुस्त नहीं होता।
इस समय विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भी भारतीय बाजार में केवल ट्रेडिंग करने में दिलचस्पी ले रहे हैं। वे हर बढ़त पर बेचने की कोशिश करते हैं। यह बात हाल के ट्रेडिंग पैटर्न में साफ देखी जा सकती है। मूल्यांकन को आधार बनाएं तो चालू वित्त वर्ष 2011-12 में बाजार के ज्यादा गिरने की गुंजाइश नहीं दिखती। फिर भी एफआईआई भारत में ट्रेडिंग के हर मौके को इस्तेमाल करने की कोशिश में लगे हैं। उन्होंने मौद्रिक नीति में ब्याज दरें बढ़ाने पर बाजार को ठोंक डाला और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के शानदार आंकड़ों के आने के बाद भी ऐसा करते रहे। लेकिन विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद उन्होंने बाजार को उठा डाला जबकि इससे केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है।
गुरुवार, 12 मई को यूरोपीय संघ में पुर्तगाल के ऋण संकट के बारे में ब्लूमबर्ग पर खबर 11.30 बजे आई। लेकिन बाजार के खिलाड़ियों ने आधा घंटा पहले से ही हड़कंप मचा रखा था। ऑप्शंस के कॉल सौदों में ओपन इंटरेस्ट 53 लाख और पुट सौदों में 20 लाख शेयरों का बढ़ चुका है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि सिंगापुर निफ्टी भारत में इसके बंद स्तर से 66 अंक नीचे चल रहा था।
हमारा मानना है कि बाजार का संकटकाल तब तक नहीं खत्म होगा, जब तक सेंसेक्स ठीकठाक वोल्यूम के साथ 200 दिनों के मूविंग औसत (डीएमए) को पार नहीं करता। तब तक ट्रेडिंग ज़ोन में खतरा बना रहेगा और मंदड़िए और एफआईआई बिकवाली का आक्रामक तेवर अपनाए रखेंगे। क्या मौजूदा स्थिति मंदड़िए और शॉर्ट सेलर्स के लिए ज्यादा माफिक हैं?
हालांकि मंदड़िए हर बढ़त का इस्तेमाल बेचने के लिए करेंगे, लेकिन साथ ही साथ तेजड़ियों के पास उठने-गिरने के चक्र में हर गिरावट पर खरीदने का वैसा ही मौका है। इसकी सीधी-सी वजह यह है कि जहां कुल गिरावट मात्र 10 फीसदी तक हो सकती है, वहीं बाजार यहां से 40 फीसदी ऊपर जा सकता है। इसलिए बाजार जब भी नीचे जाएगा, वह बहुत तेजी से वापसी भी करेगा।
हमारी दृढ़ धारणा हैं कि मंदड़ियों के जश्न मनाने का दौर अब बीत चुका है। बस उन्हें बहलाने के चंद आखिरी लम्हे चल रहे हैं। हमें यह भी लगता है कि वे जितना भी बेच रहे हैं, मजबूत हाथ उसे लपक ले रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने लेहमान संकट के बाद सेंसेक्स के 8400 पर रहने के दौरान किया था। ऐसे में निवेशकों को क्या करना चाहिए?
पंचों की राय बड़ी साफ है और वो यह कि लंबे दौर में भारतीय बाजार को नई ऊंचाई पर पहुंचना ही है। वक्त ने इराशा किया और ऐसा हो जाएगा। यह तय है। हमारा मानना है कि निफ्टी को इसी कैलेंडर वर्ष के भीतर यानी दिसंबर 2011 तक 7000 तक चले जाना चाहिए। इसका तार्किक आधार है बाजार में अलग-अलग हिस्सों – एफआईआई, डीआईआई, प्रवर्तक, ऑपरेटर, एचएनआई व रिटेल निवेशकों के निवेश की स्थिति। स्वामित्व का यह पैटर्न हमें बता रहा है कि बाजार में तेजी आनी है। लेकिन बाजार जब भी बढ़ेगा, वह स्वामित्व के सिकुड़े पैटर्न के चलते बहुत ही कम वोल्यूम के साथ बढ़ेगा।
चांदी में सट्टेबाजी का अंत हो चुका है और वो अब खुद को जमाने के दौर में चली गई है। चांदी के मूल्य का दायरा 40,000 रुपए से लेकर 68,000 रुपए प्रति किलो का रहेगा। सोना अगले छह से बारह महीनों में नीचे में 19,500 रुपए और ऊपर में 27,000 रुपए से 30,000 रुपए प्रति दस ग्राम तक जा सकता है। कच्चा तेल अपनी बढ़त को कायम रखने के लिए जूझ रहा है। इसलिए विश्व स्तर पर अब पलड़ा इक्विटी या शेयरों की तरफ वापस झुक रहा है।
इस दौरान जो समुदाय हर दिन नुकसान उठा रहा है, वह है ट्रेडर समुदाय। अधिकतम जोखिम व मुसीबत इसी के ऊपर आन पड़ी है। फिर भी हम किसी भी तरीके से उन्हें ट्रेडिंग से नहीं रोक सकते क्योंकि ट्रेड करना उनका धंधा ही नहीं, उनका जुनून भी है। छोटी अवधि की सोच वाले निवेशकों को फिलहाल बाजार से दूर रहना चाहिए और सेंसेक्स के 200 डीएमए के पार जाने तक इंतजार करना चाहिए। लंबे समय की सोच वाले निवेशकों को यकीकन स्तरीय व अच्छे स्टॉक्स को लपकते रहना चाहिए। ट्रेडरों के लिए बेहतर यही होगा कि वे गिरावट पर खरीदने की रणनीति का पालन करें।
