अगस्त महीने में देश का व्यापार घाटा 13.06 अरब डॉलर रहा है। यह अक्टूबर 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट शुरू के बाद से अब तक का सबसे बड़ा घाटा है। इससे 23 महीने पहले सितंबर 2008 में हमारा व्यापार घाटा 15.35 अरब डॉलर रहा था। वाणिज्य मंत्रालय की तरफ से बुधवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त 2010 में देश से कुल 16.64 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है जो अगस्त 2009 की तुलना में 22.5 फीसदी अधिक है। लेकिन इसी दौरान हमारा आयात 32.6 फीसदी बढ़कर 29.7 अरब डॉलर हो गया।
वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने इन आंकड़ों के जारी होने के बाद राजधानी दिल्ली में मीडिया से बातचीत के दौरान स्वीकार किया कि मार्च 2011 तक इस साल का व्यापार घाटा 135 अरब डॉलर तक जा सकता है जबकि पहले अनुमान 120 अरब डॉलर का ही था। यह पहले से काफी ज्यादा है। इसलिए स्वाभाविक रूप से यह चिंता का मसला है। लेकिन खुल्लर ने यह भी कहा कि बढ़ता व्यापार घाटा अब तक समस्या नहीं बना है और इसे फाइनेंस किया जा सकता है।
वाणिज्य सचिव जिस फाइनेंसिंग की बात कर रहे हैं, वह यह है कि व्यापार को चालू खाते में गिना जाता है जहां हमें घाटा हो रहा है। लेकिन देश में बाहर से आनेवाला धन पूंजी खाते में गिना जाता है जिसमें हम अधिशेष या सरप्लस की अवस्था में हैं। सरकार कर यह रही है कि चालू खाते के घाटे को पूंजी खाते के सरप्लस से फाइनेंस या बराबर कर ले रही है। लेकिन इसे अच्छा नहीं माना जाता। यह उसी तरह की बात है कि बिजनेस करनेवाला पति धंधे में लगे घाटे की भरपाई नौकरी करनेवाली पत्नी की कमाई से करे। देश की अर्थव्यवस्था के लिए व्यापार घाटे को विदेशी पूंजी के प्रवाह से भरना स्वस्थ लक्षण नहीं है।
असल में बढ़ते व्यापार घाटे से चालू खाते पर दबाव बढ़ता है जिसके चलते देश में विदेशी पूंजी खींचने की बाध्यता बढ़ जाती है। विदेशी पूंजी ज्यादा आती है तो रुपया महंगा होने लगता है जिसका असर मुद्रास्फीति के बढ़ने के रूप में सामने आता है और इस तरह निर्यात मोर्चे पर लगे धक्के का असर आम आदमी तक को भी झेलना पड़ता है।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2010-11 में अप्रैल से अगस्त तक भारत का कुल निर्यात 85.27 अरब डॉलर रहा है जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 28.6 फीसदी अधिक है। इसी दौरान हमने 141.89 अरब डॉलर का आयात किया है जो पिछले वित्त वर्ष के इन्हीं पांच महीनों से 33.2 फीसदी ज्यादा है।
वैसे, वाणिज्य सचिव खुल्लर ने भरोसा जताया कि चालू वित्त वर्ष के लिए तय 200 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य पूरा कर लिया जाएगा। इस समय कॉटन यार्न, आइरन ओर, जेम्स-ज्वैलरी, प्लास्टिक व लिनोलियम और लेदर इंजीनियरिंग का निर्यात धंधा अच्छा चल रहा है। बता दें कि भारत इस समय एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। इस साल निर्यात में 15 फीसदी वृद्धि का लक्ष्य है, जबकि बीते वित्त वर्ष में वैश्विक आर्थिक संकट के चलते हमारे निर्यात में 4.7 फीसदी की कमी आई थी।