पूरा चुनावी बजट, गरीब मतदाता खींचे, मशीनरी चुस्त, ग्रीस की कोई कमी नहीं

हर तरफ हल्ला है। अखबारों से लेकर टीवी चैनलों और कॉरपोरेट क्षेत्र में तारीफ-दर-तारीफ हो रही है कि एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट होने के बावजूद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नए वित्त वर्ष 2023-24 के बजट को लोकलुभावन होने से बचा लिया। विकास पर ही पूरा ध्यान रखा। साथ ही राजकोषीय अनुशासन का पूरा पालन किया। सरकार की उधारी नहीं बढ़ने दी और राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.9% तक सीमित रखा। यही नहीं, पूंजीगत व्यय को चालू वित्त वर्ष 2022-23 के 7,28,274 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान से 37.44% बढ़ाकर 10,00,961 करोड़ रुपए कर दिया है। वित्त मंत्री सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देते हुए कहती हैं कि उन्होंने कहा था कि हमें ग्रोथ का मोमेंटम बनाए रखना चाहिए।

बजट दस्तावेजों के मुताबिक अगर पूंजीगत व्यय में पूंजी आस्तियां बनाने के लिए सहायता अनुदान को भी जोड़ दें तो कुल पूंजीगत खर्च का बजट अनुमान इस बार 13,70,949 करोड़ रुपए है। वैसे, इसमें मनरेगा का आवंटन भी शामिल है। यह चालू वित्त वर्ष 2022-23 के 10,53,862 करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान से 30.09% ज्यादा है। विपक्ष भी सरकार के पूंजी खर्च आवंटन बढ़ाने पर कुछ नहीं कह पा रहा है। कांग्रेस के प्रमुख नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम बस इतना कह पाते हैं कि आवंटन करने से क्या होता है, असली बात तो वास्तविक खर्च है। तथ्य भी यह है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 में पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान 7,50,246 करोड़ रुपए था, जबकि वास्तविक व्यय का संशोधित अनुमान इससे 21,972 करोड़ रुपए या 2.93% कम 7,28,274 करोड़ रुपए है। अखबार भी यही बता रहें कि कुल पूंजीगत खर्च का बजट अनुमान 10,67,889 करोड़ रुपए था, जबकि संशोधित अनुमान 1.31% कम 10,53,862 करोड़ रुपए ही रहा है।

इससे ज्यादा कुछ नहीं। विपक्ष या मीडिया इससे ज्यादा बोल-बता भी नहीं सकता। विपक्ष तो एकदम नहीं क्योंकि सरकार में रहने पर उसका धंधा भी वही रहता है जो मौजूदा सरकार कर रही है। हमें ध्यान देना होगा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बार अपने बजट भाषण के शुरू में कहा था, “कोविड-19 की महामारी के दौरान हमने सुनिश्चित किया कि किसी को भूखा न सोना पड़े। हमने 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त अनाज की स्कीम चलाई। खाद्य व पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपनी प्रतिबद्धता को जारी रखते हुए हम 1 जनवरी 2023 से सभी अन्त्योदय व प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अगले एक साल तक मुफ्त अनाज देना जारी रखेंगे। इसका करीब 2 लाख करोड़ रुपए का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी।”

इस तरह भाजपा सरकार ने अपना वही शस्त्र धारण कर लिया है जिसके दम पर उसने ‘हमारा नमक खाया है’ कहकर पिछले साल उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीता था और अगले साल के लोकसभा चुनावों में 80 करोड़ गरीब व आम भारतीयों को नैतिक आधार पर भाजपा को ही वोट देने की फांस में बांध लेगी। राम मंदिर का ट्रम्प कार्ड उसके पास पहले से ही तैयार है। राम मंदिर 1 जनवरी 2024 तक बनाकर हर हाल में तैयार कर लिया जाएगा। इस तरह लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भावनात्मक और नैतिक आधार तैयार है। इसके बाद बचता है अपनी चुनाव मशीनरी को चाक-चौबंद रखने और उसमें ग्रीस लगाने का कांम तो यह भी मोदी सरकार ने नए वित्त वर्ष में पूंजीगत खर्च को लगभग एक तिहाई बढ़ाकर पूरा कर लिया है।

आपको याद होगा कि कुछ महीने पहले ही कर्नाटक की भाजपा सरकार के एक मंत्री ने सरकारी योजनाओं में 40% कमीशन की बात कह दी थी तो हर तरफ हंगामा मच गया। चूंकि विपक्ष भी सत्ता में रहने पर खुद यही करता है तो मामला धीरे-धीरे दफ्न हो गया। भारतीय समाज, राजनीति व सत्ता की ज़मीनी हकीकत यह है कि हर सरकारी योजना में मंत्री से लेकर सत्ताधारी पार्टी के शीर्ष नेताओं का कट होता है। बताते हैं कि गुजरात में ज्यादा विकास इसलिए हो जाता है क्योंकि वह सड़क से लेकर इंफ्रास्ट्रक्चर की तमाम परियोजनाओं में सरकारी मंत्रियों व नेताओं का कमीशन 10-15% ही होता है, जबकि बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व राजस्थान में उतना विकास इसलिए नहीं होता क्योंकि वहां सत्ताधारी नेतागण 30-40% कमीशन लेते रहे हैं।

इस बार अगर बजट में केंद्र सरकार ने 10,00,961 करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय तय किया है तो एक प्रतिशत भी 10,000 करोड़ रुपए से ज्यादा बनता है। ध्यान दें कि यह सारा का सारा धन सरकारी योजनाओं के माध्यम से ही खर्च होगा और बिना मंत्री या सत्ताधारी राजनेता की मर्जी के ठेकेदार को एक धेला तक नहीं मिल सकता। इस तरह वित्त मंत्री ने बजट में भाजपा की चुनाव मशीनरी को ग्रीस लगाने और उसको पोसने का पूरा इंतजाम कर लिया है। फिर अगर मीडिया और विपक्ष कहता है कि सरकार ने अपने कार्यकाल के अंतिम पूर्ण बजट में भी चुनावी बजट नहीं पेश किया, लोकलुभावन स्कीमें नहीं चलाईं तो यह उनकी नादानी है। वे दरअसल भाजपा, उसकी सरकार और मोदीशाही के शातिरपने को या तो समझ नहीं पा रहे हैं या सत्ता में बांट-बखरे के लिए जान-बूझकर अनजान बनने का स्वांग कर रहे हैं।

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