बड़े लोग पैसे को दांत से दबाकर रखते हैं। बहुत सोच-समझकर चुनिंदा माध्यमों में लगाते हैं। वहीं, समझदार से समझदार नौकरीपेशा लोग भी शेयर बाजार के लंबा फासला बनाकर चलते हैं। किसान को तो हवा ही नहीं कि यह बाजार चलता कैसे है। बाकी जो लोग बचे हैं, जो कभी यहां से तो कभी वहां से थोड़ी-बहुत कमाई कर लेते हैं, वे उड़ती-उड़ती खबरों की तलाश में रहते हैं ताकि शेयर बाजार से ‘पक्की’ कमाई की जा सके। इन लोगों को रिसर्च या तहकीकात के जरिए कंपनी को जानने-समझने की जरूरत नहीं लगती। वे तो बस कंपनी के शेयर या स्टॉक की चाल को टेक्निकल चार्ट पर देखकर तीर चलाते हैं। लग गया तो ठीक, नहीं तो तुक्का। यही लोग बाजार में औरों से ज्यादा पिटते हैं। कारण, इस समय का भारतीय शेयर बाजार वो नहीं है, जो वह दस साल पहले हुआ करता था।
एफआईआई के आने और म्यूचुअल फंडों की सक्रियता से यहां अब बड़े सधे दांव चले जाते हैं। मूल में हमेशा रहता है कि कंपनी की मूलभूत स्थिति क्या है। बड़े-बड़े दिग्गज गणना करके देखते हैं कि भविष्य में कंपनी का कैश फ्लो कैसा रहेगा। उसकी लाभप्रदता की तुलना उसी उद्योग की अन्य कंपनियों से की जाती है। अगर दूसरी कंपनी 15 फीसदी रिटर्न कमा रही है, तो उसके मद्देनजर कॉस्ट ऑफ कैपिटल या पूंजी की लागत निकाली जाती है। भावी कैश फ्लो और पूंजी लागत को खास समीकरणों में कसने के बाद निकाला जाता है कि कंपनी के शेयर का मौजूदा वाजिब भाव क्या होना चाहिए। रिस्क और रिटर्न का संतुलन देखा जाता है। इसके बाद निवेश का फैसला होता है। वो दिन लदते जा रहे हैं जब अहमदाबाद, वडोदरा या कोलकाता में बैठा कोई उस्ताद तिनकों को पहाड़ बनाकर कमाई कर लेता था।
इसलिए वक्त के साथ चलने के लिए जरूरी है कि हम उड़ती-उड़ती खबरों और टेक्निकल चार्टों पर अंधा भरोसा करना छोड़ दें। अपने गणित के कौशल को मांजकर थोड़ा चमका लें। इंटरनेट की इस दुनिया में किसी भी कंपनी के बारे में मोटामोटा जितनी जानकारियां चाहिए, वे सभी पब्लिक डोमेन में हैं। थोड़ी-सी मशक्कत से आप उन्हें पा सकते हैं। निवेश कोई रॉकेट साइंट नहीं है। जिस भारत ने शून्य की खोज की हो, वहां के वाशिंदों के लिए निवेश की कला में सिद्धहस्त होना कोई मुश्किल नहीं है। लेकिन सबसे पहले उड़ती-उड़ती खबरों को कान देना बंद करना पड़ेगा। गांठ बांध दें कि कोई खबर टीवी, अखबार या किसी भी अन्य माध्यम से हमारे-आप तक तब पहुंचती है जब उस पर असली खेल हो चुका होता है। हमारे-आप के लिए अच्छा यही है कि हम तात्कालिकता के बजाय कम से कम चार-पांच साल के नजरिए के साथ किसी कंपनी के स्टॉक/शेयर या इक्विटी में निवेश करें।
ऐसी ही निवेश लायक एक कंपनी है टीटागढ़ वैगन्स। हर साल रेल बजट आने से पहले जरूर इसका नाम सामने आता है। लगता है कि जैसे यह कोई सरकारी कंपनी है। लेकिन ऐसा नहीं है। यह निजी क्षेत्र की कंपनी है। करीब पंद्रह साल पहले 1997 में इसका गठन हुआ है। इसकी दो उत्पादन इकाइयां पश्चिम बंगाल के टीटागढ़ और उत्तरपाड़ा में हैं। मुख्य रूप से रेल के वैगन और कोच बनाती है। साथ ही डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) के लिए भी कई इंजीनियरिंग उत्पाद बनाती है। 2008 में इसने वैगन बनानेवाली एक बीमार कंपनी सिम्मको का अधिग्रहण 35 करोड़ रुपए में किया और साल भर के अंदर इसे मुनाफे में ले आई। 2010 में उसने फ्रांस की एक वैगन कंपनी, आईजीएफ इंडस्ट्रीज – आरबेल फॉवेट रेल (एएफआर) का अधिग्रहण 1.50 करोड़ यूरो (करीब 10.5 करोड़ रुपए) में कर लिया। इससे कंपनी के बुलंद इरादों का पता चलता है।
वैसे, निवेशकों को इसने अभी तक खुश नहीं किया है। अप्रैल 2008 में आए इसके आईपीओ में दस रुपए अंकित मूल्य के शेयर 540 रुपए पर जारी किए गए थे। वही शेयर इस समय 330 रुपए के आसपास चल रहे हैं। शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2012 को यह बीएसई (कोड – 532966) में 330 रुपए और एनएसई (कोड – TWL) में 329.85 रुपए पर बंद हुआ है। पिछले पांच सालों में उसने हर साल दस रुपए के शेयर पर कभी 5 तो कभी 8 रुपए का लाभांश (डिविडेंड) दिया है। मगर कोई बोनस वगैरह नहीं दिया है। इस तरह इसके आईपीओ में निवेश करनेवालों को कुल करीब-करीब 38 फीसदी का घाटा हो चुका है। घाटे की सालाना चक्रवृद्धि दर 15.5 फीसदी है, जबकि इसी दौरान बीएसई सेंसेक्स के गिरने की सालाना चक्रवृद्धि दर 4.5 फीसदी रही है। लेकिन आगे की संभावनाएं बताती है कि यह शेयर चार से पांच साल में 660 रुपए तक जा सकता है।
कंपनी ने बीते वित्त वर्ष 2011-12 में 890.9 करोड़ रुपए की बिक्री पर 83.2 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार अनुमान है कि 2016-17 में इसकी बिक्री 1362.70 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 135.3 करोड़ रुपए हो जाएगा। कंपनी का ऋण-इक्विटी अनुपात अभी 0.21 का है। इसलिए कोई चिंता की बात नहीं है। चिंता की बात बस इतनी है कि कंपनी की 90 फीसदी बिक्री सरकारी निकायों – भारतीय रेल और रक्षा प्रतिष्ठान से आती है। ऐसे में कोई घपला-घोटाला सामने आ गया तो दिक्कत हो सकती है। हालांकि कंपनी और उसके प्रवर्तकों (जे पी चौधरी, उमेश चौधरी) का अब तक का रिकॉर्ड बड़ा पाक-साफ रहा है।
हमारा मानना है कि कंपनी का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड और आगे की संभावनाओं को देखते हुए इसके शेयर में निवेश किया जा सकता है। चार साल में धन दोगुना हो सकता है। लेकिन ध्यान रखें कि ज्यादा रिटर्न के साथ हमेशा ज्यादा जोखिम भी नत्थी रहता है। इसलिए रिटर्न को देखकर लार न टपकाएं, बल्कि रिस्क की गणना से उसे संतुलित कर लें। एक जानकार एनालिस्ट का मानना है कि साल भर में यह शेयर 363 से 485 रुपए तक जा सकता है। विश्लेषकों का मध्य-अनुमान 424 रुपए का है। यह स्मॉल कैप कंपनी है। इसकी इक्विटी 20.06 करोड़ रुपए है। इसका 53.11 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों के पास है। यह भी संतोष की बात है। एफआईआई ने जून से सितंबर 2012 के दौरान कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 4.27 फीसदी से बढ़ाकर 4.67 फीसदी कर ली है।