चलो चखते हैं तिलकनगर की ब्रांडी

नाम है तिलकनगर इंडस्ट्रीज, धंधा है दारू का। कुछ लोगों को परहेज हो सकता है कि शराब, सिगरेट व गुटखा जैसी नशीली चीजें बनानेवाली कंपनियों में निवेश नहीं करेंगे। अच्छी बात है। हालांकि धंधा तो धंधा होता है और हमें यही देखना है कि हमारी पूंजी कहां बढ़ सकती है। महाभारत खत्म होने पर श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को धर्म की शिक्षा लेने के लिए एक कसाई के पास भेजा था। खैर, तिलकनगर इंडस्ट्रीज (बीएसई – 507205, एनएसई – TI) दक्षिण भारत की कंपनी और उसकी बिक्री का 80 फीसदी हिस्सा वहीं से आता है। हालांकि कंपनी तेजी से पश्चिमी राज्यों में भी बढ़ रही है। रम, ह्विस्की, ब्रांडी, जिन व वोद्का के साथ पोर्ट वाइन भी बनाती है। लेकिन ब्रांडी में सबसे मजबूत है।

कंपनी का शेयर कल 2.10 फीसदी की गिरावट के साथ 83.85 रुपए पर बंद हुआ है। उसका ठीक पिछले बारह महीनों का ईपीएस (प्रति शेयर लाभ) 3.37 रुपए है और बुक वैल्यू 30.68 रुपए है। शेयर इस समय 24.90 के पी/ई अनुपात पर ट्रेड हो रहा है, जबकि इसी उद्योग की दो अन्य प्रमुख कंपनियों में यूनाइटेड स्पिरिट्स का पी/ई अनुपात 56.16 और रैडिको खैतान का 37.75 चल रहा है। इसे देखते हुए तिलकनगर इंडस्ट्रीज में निवेश आकर्षक लग रहा है और उसमें बढ़ने की अच्छी संभावना भी नजर आ रही है। वैसे भी पिछले महीने 10 नवंबर को यह 147.80 रुपए पर 52 हफ्ते का शिखर बना चुका है।

एचडीएफसी सिक्यूरिटीज ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में तिलकनगर इंडस्ट्रीज के प्रबंधन से मिलने के बाद इसमें निवेश की सिफारिश की है। कंपनी के पास 30 से ज्यादा ब्रांड हैं। लेकिन इसमें सबसे प्रमुख दो ब्रांड है मदिरा रम और मैन्सन हाउस ब्रांडी। बीते वित्त वर्ष में उसने एल्कोब्रिउ डिस्टिलिरीज के अधिग्रहण से सात और ब्रांड हासिल कर लिए। खास बात यह है कि एल्कोब्रिउ सेना के कैंटीन स्टोर्स डिपार्टमेंट (सीएसडी) में पंजीकृत है तो इससे कंपनी को एकमुश्त बड़ा ग्राहक मिल गया। यही वजह है कि जहां उसने पिछले साल की पहली छमाही में सीएसडी को एक लाख केस (प्रति केस चार से छह बोतल) शराब बेची थी, वहीं इस साल की पहली छमाही में यह बिक्री 6.17 लाख केसों की रही है।

कंपनी ने सितंबर 2010 की तिमाही में 127.09 करोड़ रुपए की बिक्री पर 12.61 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। उसकी बिक्री सितंबर 2009 की तिमाही की तुलना में 79.3 फीसदी और शुद्ध लाभ 69.71 फीसदी बढ़ा है। बीते वित्त वर्ष 2009-10 में कंपनी की बिक्री 386.21 करोड़ रुपए और शुद्ध लाभ 34.89 करोड़ रुपए रहा था। कंपनी बड़े आक्रामक अंदाज में बढ़ रही है। उसने पिछले ही महीने गोवा की एक कंपनी केसरवाल स्प्रिंग्स डिस्टिलरी का अधिग्रहण किया है। नंवबर में ही कंपनी ने 135 करोड़ रुपए क्यूआईपी (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल प्लेसमेंट) से जुटाए हैं जिसका इस्तेमाल वह अपने ऋणों का उतारने में करेगी।

कंपनी की इक्विटी 96.95 करोड़ रुपए है जो 10 रुपए अंकित मूल्य के शेयरों में विभाजित है। इसका 60.15 फीसदी हिस्सा प्रवर्तकों और 11.75 फीसदी एफआईआई व 2.63 फीसदी डीआईआई के पास है। शेयरधारकों के प्रति कंपनी के सकारात्मक रवैए का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि कंपनी लगातार हर साल लाभांश देती रही है। यही नहीं, उसने पिछले साल एक पर दो नए शेयर बोनस के रूप में दिए थे और इस साल भी यही क्रम दोहराया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *