दो साल दो महीने पहले, दिसंबर 2009 में टाटा समूह द्वारा बड़े जोरशोर से लांच किया गया वॉटर प्यूरीफायर टाटा स्वच्छ पूरी तरह फ्लॉप साबित हो गया है। हालत इतनी खराब है कि टाटा केमिकल्स ने अपने तिमाही नतीजों में इस ‘युगांतरकारी’ उत्पाद का जिक्र तक करना बंद कर दिया है। जिन ग्राहकों ने इसे शुरुआती प्रचार की रौ में आकर खरीद लिया था, उन्होंने इसे किनारे कर दिया है। और, नए ग्राहक सस्ता होने के बावजूद इसे पूछ नहीं रहे हैं। अर्थकाम द्वारा पिछले कई महीनों से अपने स्तर पर जुटाई जा रही जानकारी से यह बात सामने आई है।
कंपनी भी कहीं न कहीं मान चुकी है कि टाटा स्वच्छ की मूल टेक्नोलॉजी में ही ऐसी खामी है कि उसे कस्टमर केयर विभाग या आफ्टर सेल्स-सर्विस से नहीं सुलझाया जा सकता। इसलिए कंपनी ने शिकायत करनेवाले ग्राहकों को अघोषित रूप से टरकाने की नीति अपना ली है। उन्हें 48-48 घंटे कहकर टाला जाता है और इस तरह कंपनी का टेक्निशियल कभी भी ग्राहक की शिकायत दूर करने पहुंचता ही नहीं। यह हालत मुंबई जैसे महानगर की है। अगर सस्ते वॉटर प्यूरीफायर व टाटा के नाम के चलते कस्बों व गांवों के लोगों ने इसे खरीद लिया होगा तो उनकी हालत की सहज कल्पना की जा सकती है।
गौरतलब है कि टाटा नैनो की तरह टाटा स्वच्छ को भी खुद समूह के चेयरमैन रतन टाटा की मौजूदगी में लांच किया गया था। कहा गया था कि यह भारत में सुरक्षित पीने के पानी की गंभीर सामाजिक व स्वास्थ्य संबंधी समस्या को हल कर देगा। इसमें धान की भूसी की राख और चांदी के नैनो कणों को मिलाकर पानी को शुद्ध, स्वच्छ व सुरक्षित बनाने की अनोखी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। बताया गया कि टाटा स्वच्छ प्यूरीफायर के लिए करीब 14 पैटेंट दाखिल किए गए हैं। इसके काम की क्षमता का परीक्षण भारत, ब्रिटेन और नीदरलैंड की प्रतिष्ठित प्रयोगशालाओं में अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी, यूएसईपीए के मानदंडों के आधार पर किया गया है।
हकीकत में पस्त हो चुका कंपनी का यह दावा अब भी जारी है। लेकिन ग्राहकों के बीच जाने पर टाटा स्वच्छ की पूरी कलई उतर चुकी है। इस वॉटर प्यूरीफायर के जिस फिल्टर या बल्ब से 3000 लीटर पानी को शुद्ध करने का दावा किया जाता है, वह 300 लीटर पानी छानने से पहले ही धान की भूसी की राख और चांदी के नैनो कण फेंकने लगता है। फिर यह ‘अत्याधुनिक’ बल्ब ऐसा जाम हो जाता है कि पानी का छनना ही बंद हो जाता है, जबकि प्यूरीफायर का संकेतक बताता है कि इसमें अभी बहुत सारी क्षमता बाकी बची है। इस संवाददाता ने इस सिलसिले में व्यक्तिगत ग्राहकों के साथ ही नर्सिंग होम या दुकानों जैसे संस्थागत ग्राहकों के अनुभव एकठ्ठा किए हैं। हालांकि संस्थागत ग्राहकों का कहना है कि चूंकि उनके यहां इसे बहुत सारे लोगों का हाथ लगता है, इसलिए यह खराब हो गया। खैर, जो भी हो, उन्होंने भी इस उत्पाद को कबाड़खाने के हवाले कर दिया है।
दिसंबर 2009 में इसे लांच करते वक्त कंपनी ने दावा किया था कि पहले साल 10 लाख इकाइयां बेच ली जाएंगी और इस उत्पाद से 100 करोड़ रुपए की आय होगी। लेकिन मार्च 2011 तक के नतीजों के अनुसार कंपनी ने वित्त वर्ष 2010-11 में कुल 4 लाख के आसपास ही टाटा स्वच्छ बेचे थे। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की शुरूआत में यह उत्पाद 9 राज्यों तक पहुंचा दिया गया। बिक्री फिर भी ठंडी रही तो जून 2011 से इसकी ऑनलाइन बिक्री भी शुरू कर दी गई, यह कहते हुए कि शहरी ग्राहकों से इसकी बड़ी मांग आई है। हालांकि कमाल की बात यह है कि टाटा समूह अपने खुद के स्टोर क्रोमा पर इसे उपलब्ध कराने से हिचकता रहा क्योंकि इसकी बिक्री इतनी कम थी कि स्टोर पर रखना उसे महंगा पड़ता था।
धीरे-धीरे हालत यह हो गई कि मार्च 2011 तक हर तिमाही के नतीजों में इस उत्पाद का विशेष जिक्र करनेवाली टाटा केमिकल्स ने जून 2011 की तिमाही से इसे परदे में रखना शुरू कर दिया। कंपनी इसके धंधे को टाटा सॉल्ट के साथ अन्य की मद में दिखाती रही है। जून 2011 की तिमाही में अन्य मद में कंपनी की आय 14.93 करोड़ रुपए रही, जिस पर उसे 13.15 करोड़ रुपए का घाटा हुआ। सितंबर तिमाही में इस अन्य नाम के सेगमेंट की बिक्री 20.16 करोड़ और घाटा 16.99 करोड़ रुपए का रहा।
कंपनी ने दिसंबर 2011 की तिमाही ने नतीजे बीते हफ्ते 10 फरवरी को घोषित किए हैं। इनके मुताबिक अन्य मद में उसकी बिक्री 36.10 करोड़ रुपए रही है, लेकिन घाटा बढ़कर 25.43 करोड़ रुपए हो गया। असल में टाटा केमिकल्स रसायनों के साथ ही उर्वरक, कृषि उत्पादों व उपभोक्ता उत्पादों के सेगमेंट में सक्रिय है। सारे कारोबार को मिलाकर दिंसंबर 2011 की तिमाही में कंपनी की बिक्री 32.92 फीसदी बढ़कर 2331.89 करोड़ रुपए हो गई, जबकि शुद्ध लाभ 15.32 फीसदी बढ़कर 153.04 करोड़ रुपए हो गया। मगर, पिछली दो तिमाहियों की तरह इस तिमाही में भी कंपनी ने उपभोक्ता उत्पादों में टाटा सॉल्ट से लेकर आई-शक्ति दालों का तो साफ-साफ उल्लेख किया। लेकिन टाटा स्वच्छ के बारे में कहीं भी एक शब्द तक नहीं कहा।
इस बाबत अर्थकाम ने सोमवार, 13 फरवरी को टाटा केमिकल्स को आधिकारिक ई-मेल भेजकर चालू वित्त वर्ष में दिसंबर 2011 तक के नौ महीनों के दौरान टाटा स्वच्छ की बिक्री व उससे हुई आय की जानकारी मांगी थी। लेकिन कंपनी ने खबर लिखे जाने तक कोई जानकारी नहीं भेजी है। ऐसे में लगता यही है कि कुछ तो है जिसकी परदादारी है। वैसे भी, कंपनी के वित्तीय नतीजों को देखकर साफ हो जाता है कि टाटा स्वच्छ अभी तक एक फ्लॉप उत्पाद रहा है और उसके साथ जुड़े उन्नत व नैनो तकनीक के दावे ग्राहकों के बीच जाकर किसी राजनेता के वादों की तरह खोखले साबित हो गए हैं।