दुनिया में इस समय 500 करोड़ मोबाइल सब्सक्राइबर हैं, जबकि इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या 180 करोड़ से ज्यादा है। इंटरनेशनल टेलिकम्युनिकेशंस यूनियन (आईटीयू) का आकलन है कि 2015 तक दुनिया की आधी आबादी तक ब्रॉडबैंड की पहुंच होगी। चीन में अभी 36.40 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन हैं, जबकि भारत में इनकी संख्या केवल 90 लाख है। इंटरनेट भाषाओं के बंधन भी तोड़ रहा है। 1996 में इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले 80 फीसदी लोग अंग्रेजी भाषी थे। 2007 तक यहऔरऔर भी

हर कोई अपनी-अपनी दुनिया में मस्त है। हम भी हैं। इसमें क्या बुराई! लेकिन यह तो पता होना चाहिए कि दुनिया की किन चीजों ने हमारी दुनिया को अपनी जद में ले रखा है। टिटिहरी या शुतुरमुर्ग जैसा भ्रम क्यों?और भीऔर भी

साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के मूल में होने के बावूजद अमेरिका के बैंक दुनिया के सबसे बड़े बैंकों में जगह बनाए हुए हैं। बैंकर पत्रिका की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक टियर-1 पूंजी के मामले में दुनिया के दस बड़े बैंकों में अमेरिका के चार बैंक शामिल हैं।  इनमें टॉप पर है बैंक ऑफ अमेरिका, जिसने वित्तीय संकट के दौरान मेरिल लिंच को खरीदा था। इससे पहले नंबर-1 पर रहनेवाला अमेरिकी बैंक जेपी मॉरगन चेज अबऔरऔर भी

साल 2009 में एशिया में करोड़पतियों की संख्या बढ़कर 30 लाख हो गई है और यह आज तक के इतिहास में पहली बार यूरोप की बराबरी में आई है। यही नहीं, एशिया के करोड़पतियों की कुल संपत्ति 9.7 लाख करोड़ डॉलर रही है जबकि यूरोप के करोड़पतियों की कुल संपत्ति 9.5 लाख करोड़ डॉलर ही रही है। यह निष्कर्ष है मेरिल लिंच-कैपगेमिनी की ताजा वर्ल्ड वेल्थ रिपोर्ट का। रिपोर्ट ने चुटकी लेते हुए कहा है कि जबऔरऔर भी