अमेरिकी बाज़ार भयंकर रिस्क के मुहाने पर खड़ा है। यह रिस्क फटा तो भारत समेत दुनिया भर के बाज़ार टूट सकते हैं। वैश्विक विश्लेषक डग शॉर्ट के अध्ययन के मुताबिक अमेरिकी शेयर सूचकांक को मुद्रास्फीति से समायोजित कर 140 सालों की ट्रेंड लाइन खीचें तो बाज़ार अभी उस रेखा से करीब 86% ऊपर है। 1929 की महामंदी से ठीक पहले यह 81% ऊपर था। ऐसे में सीखनी होगी अफरातफरी में कमाने की कला। अब शुक्र का वार…औरऔर भी

ट्रेडिंग का वास्ता कंपनी के फंडामेंटल्स या बैलेंसशीट से ज्यादा लोगों की भावनाओं को पढ़ने से हैं। वर्तमान नहीं, भविष्य पर, यथार्थ नहीं, उम्मीद पर चलते हैं भाव। तभी तो घाटे में चल रही कंपनियों के भाव भी चढ़े रहते हैं और अच्छे नतीजों के बावजूद शेयर गिर जाते हैं। लोगों की भावना की ताकत बताती है टेक्निकल एनालिसिस। लेकिन पारंपरिक पद्धति की खामी यह है कि वह देर से देती है सिग्नल। हम चलें उससे आगे…औरऔर भी

नतीजों का दौर अपने उफान पर है। जैसे ही दिसंबर तिमाही का नतीजा आता है, कंपनी के शेयरो में हलचल मच जाती है। उम्मीद के मुताबिक रहे तो बिकवाली चलती है और खराब रहे तो ज्यादा ही निराशा छा जाती है। टीसीएस की बिक्री 33% बढ गई। लेकिन विश्लेषकों की अपेक्षा से कम थी तो उसके शेयर खटाक से 5.6% गिर गए। बीस महीनों में टीसीएस की सबसे तीखी गिरावट। ऐसी गहमागहनी के बीच बढ़ते हैं आगे…औरऔर भी

प्रोफेशनल ट्रेडर रिस्क नहीं लेते क्योंकि वे हमेशा शेयरों के ट्रेंड पर चलते हैं। 365, 200, 75 व 50 दिनों के सिम्पल मूविंग औसत (एसएमए) और फिर 20, 13 व 5 दिन के एक्सपोनेंशियल मूविंग औसत (ईएमए) से देखते हैं कि खास शेयर के भावों का रुझान क्या है। वे उठते शेयरों को खरीदते और गिरते शेयरों को शॉर्ट करते हैं। बाकी उछल-कूद मचानेवाले शेयरों पर ध्यान नहीं देते। अब देखें कि रुपया संभला, बाज़ार बढ़ा कैसे…औरऔर भी

शेयर का भाव ठीक उस वक्त खरीदारों और विक्रेताओं के बीच स्वीकृत मूल्य को दर्शाता है। तेजड़िया इस उम्मीद में खरीदता है कि भाव आगे बढ़ेगा। मंदड़िया इस भरोसे में बेचता है कि भाव गिरेगा। ये चारों तरफ से ऐसे निवेशकों/ट्रेडरों से घिरे रहते हैं जो दुविधाग्रस्त हैं। दुविधा छोड़ ऐसे लोग बाज़ी न मार ले जाएं, यह डर तेजड़ियों और मंदड़ियों से सौदा करवाता है और निकलता है भाव। उतरें अब भावों की ताज़ा भंवर में…औरऔर भी

ट्रेडिंग से पैसा कमाने के लिए किसी भविष्यवाणी की जरूरत नहीं। आपको बस यह जानना है कि ठीक इस वक्त बाज़ार पर हावी कौन है। तेजड़िए या मंदड़िए? इनमें से जो भी सोच हावी है, उसकी ताकत कितनी है? इस जानकारी के दम पर आपको आंकना होगा कि मौजूदा रुझान कब तक चल सकता है। इसके मद्देनज़र आपको भय और लालच से बचते-बचाते अपनी पूंजी को सही से लगाना है। अब चलें सिद्धांत से व्यवहार की ओर…औरऔर भी

तमाम अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि भारत की हालत सरकारी कर्मों व आम भारतीय स्वभाव के चलते अंदर ही अंदर इत्ती खोखली होती जा रही है कि हल्के धक्के से गिर जाए। रुपया डूब रहा है। विदेशी निवेशकों को रोक पाना बहुत कठिन है। वैसे, अर्थशास्त्रियों पर एक चर्चित लेखक कहते हैं कि जिज्ञासु जन वैज्ञानिक, संवेदनशील जन कलाकार और व्याहारिक लोग बिजनेस करते हैं; बाकी बचे लोग अर्थशास्त्री हो जाते हैं। सो, उन्हें छोड़ बढ़ें आगे…औरऔर भी

कुछ नहीं, बहुत-से लोग कहते हैं कि शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग साइंस के साथ-साथ आर्ट भी है। कला जो अंदर से आती है। लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं। ट्रेडिंग शुद्ध रूप से नंबरों का खेल है। किसी भाव पर लेनेवाले कितने हैं और बेचनेवाले कितने, इसी से तय होगा कि भाव आगे कहां जाएगा। चार्ट पर हमें चित्र-विचित्र आकृतियां नहीं, बल्कि खरीदने और बेचनेवालों का सही संतुलन दिखना चाहिए। शुरू करते हैं आज का अभ्यास…औरऔर भी