हर किसी के जेहन में एक ही सवाल है; बाज़ार यहां से कहां जाएगा? इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है जब तक इसे निश्चित टाइमफ्रेम में नहीं बांधा जाता। अभी वैश्विक अर्थव्यवस्था का जो हाल है और जिस तरह रुपया डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हो रहा है, उसमें छोटी अवधि में बाज़ार का गिरना तय है। लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावना को देखते हुए लंबी अवधि में बाज़ार का बढ़ना तय है। अब देखें गुरु का दशा-दिशा…औरऔर भी

ट्रेडिंग सरल तो है, पर आसान नहीं। सरल इसलिए कि हमें बाज़ार के काम करने का बुनियादी तरीका समझना और कारगर, वस्तुगत व तर्कसंगत तरीके से ट्रेड करना है। पर, यह सब समझना और ‘कारगर, वस्तुगत व तर्कसंगत’ तरीका अपनाना बेहद कठिन है। खास तौर पर, हम बाज़ार के बारे में वस्तुगत नहीं हो पाते, अपनी ही धारणाओं के गुलाम या आत्मगत बने रहते हैं। लगातार घाटे पर घाटे का यही सबक है। अब बुध की बुद्धि…औरऔर भी

हाल-फिलहाल वित्तीय बाज़ार एकदम विश्वमय हो गए हैं। आज और कल अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व की ओपन मार्केट कमिटी की बैठक होनी है। इसमें तय किया जाएगा कि ब्याज की दर कब बढ़ाई जाए। पिछले बैठक में तय हुआ था कि साल 2015 के मध्य में कभी ऐसा किया जा सकता है। लेकिन नवंबर में रोज़गार के बेहतर आंकड़ों के बाद ऐसा जल्दी हो गया तो अमेरिका वापस भागने लगेगा निवेश। अब देखें मंगल की नब्ज़…औरऔर भी

वित्तीय प्रपत्रों की ट्रेडिंग में कोई अगर दावा करे कि भाव पक्का कहां जाएंगे तो वह या तो खुद बहुत बड़ा मूर्ख है या आपको जान-बूझकर मूर्ख बना रहा है। कारण, भावी भाव को प्रभावित करनेवाले सारे कारकों को देख पाना इंसान ही नहीं, भगवान तक के लिए असंभव है। हम गिने-चुने कारकों को ध्यान में रखकर ही गणना करते हैं। एक भी नया कारक सारा समीकरण उलट-पुलट सकता है। अब करते हैं नए सप्ताह का आगाज़…औरऔर भी

अपने फैसलों के मोह में फंस जाना इंसान की सहज प्रवृत्ति है। एक बार मन ही मन कुछ तय कर लिया तो बाहर उसकी पुष्टि करनेवाली चीजें ही देखता है। खिलाफ जानेवाले तथ्यों को दरकिनार कर देता है। यही वजह है कि बहुतेरे ट्रेडर चार्ट पर वास्तविक स्थिति नहीं, बल्कि अपनी सोच की पुष्टि करनेवाली आकृतियां ही देख पाते हैं। तथ्यों की बेरोकटोक स्वीकृति और लचीलापन ट्रेडिंग में सफलता के लिए ज़रूरी है। अब शुक्र का चक्र…औरऔर भी

हवा में तीर जुआरी छोड़ते हैं। निवेशक या ट्रेडर हमेशा हिसाब लगाकर चलते हैं कि कोई शेयर कहां तक जा सकता है। आकलन सही हुआ तो कमाते हैं, नहीं तो गंवाते हैं। धुरंधर विश्लेषकों का भी आकलन सही होगा या गलत, यह प्रायिकता पर निर्भर करता है। लेकिन इतना तय है कि बिजनेस अखबारों या चैनलों पर आने वाले भावी आकलन खोखले होते हैं क्योंकि वे रुख को ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। अब गुरुवार की दशा-दिशा…औरऔर भी

बाज़ार की स्थिति 10-15 साल पहले से बहुत बदल चुकी है। भागीदारों की संख्या व स्तर के अलावा सबसे बड़ा बदलाव आया है पारदर्शिता का। बाज़ार में क्या-क्या हुआ, सारा कुछ शाम को मुफ्त में हमारे सामने होता है। यही नहीं, बीएसई व एनएसई दोनों ही टेक्निकल चार्ट की सुविधा देते हैं जिसमें हम बीसियों इंडीकेटर डालकर स्टडी कर सकते हैं। बस, हमें इन विशद आंकड़ों व संकेतकों की समझ होनी चाहिए। अब लगाएं बुध की बुद्धि…औरऔर भी

इतने बड़े बाज़ार व खिलाडियों में आम ट्रेडर की कोई औकात नहीं होती। सस्ता-मद्दा ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर और बहुत हुआ तो लाख दो लाख की पूंजी। क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा! वहीं लाखों के सॉफ्टवेयर, सामने बड़े-बड़े स्क्रीन और बारीक से बारीक जानकारी तक पहुंचने में सक्षम संस्थागत व प्रोफेशनल ट्रेडर। ऐसे में आम ट्रेडर इन दिग्गजों की चाल भांपने का तरीका भर सीख ले तो कमाई कर सकता है। अब पकड़ते हैं मंगल की दृष्टि…औरऔर भी

शेयर, कमोडिटी या फॉरेक्स, हर तरह के वित्तीय प्रपत्रों की ट्रेडिंग स्वभाव से ही रिस्की है। बुनियादी नियम यह भी है कि रिस्क और रिटर्न में सीधा रिश्ता है। रिस्क ज्यादा तो रिटर्न ज्यादा और रिस्क कम तो रिटर्न कम। लेकिन इंसान का अंतर्निहित स्वभाव तो रिस्क से बचना है। ऐसे में न्यूनतम रिस्क में अधिकतम रिटर्न ही सबसे तर्कसंगत तरीका हो सकता है। यही हम सीखने और सिखाने में लगे हैं। परखें अब सोमवार का व्योम…औरऔर भी

स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में 80-90% लाने से एकदम अलग बात है प्रतियोगिता में जीतना। आप 90% लाकर भी इसमें हार सकते हैं और 45% लाकर भी जीत सकते हैं। शर्त इतनी कि आपको औरों पर बीस पड़ना पड़ेगा। ट्रेडिंग भी शुद्ध रूप से प्रतियोगिता है और वो भी एक से एक की। दोनों एक ही स्टॉक पकड़ते हैं। फायदे की सोचकर एक खरीदता है, दूसरा बेचता है। कामयाब होता एक ही। अब समझते हैं शुक्रवार का चक्र…औरऔर भी